प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
विशेष रूप से कोरोना महामारी एवं रूस यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिकी डॉलर की कीमत अन्य देशों की मुद्रा की कीमत की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। एक अमेरिकी डॉलर आज लगभग 80 रुपए का हो गया है। इसका आश्य यह है कि भारत सहित अन्य देशों की मुद्रा की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरती जा रही है। दरअसल अमेरिकी डॉलर की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाल ही के समय में बहुत बढ़ी है। एक तो, कच्चे तेल की कीमतें बहुत तेज गति से बढ़ी हैं और यह लगभग 130 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच कर अब लगभग 110 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। प्रायः समस्त देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की खरीद का सामान्यतः अमेरिकी डॉलर में ही भुगतान करते हैं जिसके कारण अमेरिकी डॉलर की मांग भी बढ़ी है और जिसके चलते अमेरिकी डॉलर की कीमत में भी वृद्धि दर्ज हुई है। दूसरे, अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में मुद्रा स्फीति की दर 8 प्रतिशत के पार (अमेरिका में 9.1 प्रतिशत) पहुंच गई है जो कि इन देशों में पिछले 40-45 वर्षों में सबसे अधिक महंगाई की दर है। महंगाई पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से इन देशों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की जा रही है, जिसके कारण इन देशों द्वारा जारी किए जाने वाले बांडस पर प्रतिफल बहुत आकर्षित हो रहे है एवं विदेशी निवेशक विकासशील देशों के शेयर बाजार से अपना निवेश निकालकर अमेरिकी बांडस में अपना निवेश बढ़ाते जा रहे हैं। जिन विकासशील देशों से डॉलर का निवेश निकाला जा रहा है उन देशों के विदेशी मुद्रा के भंडार कम होते जा रहे हैं जिससे उनकी अपनी मुद्रा पर दबाव आ रहा है और डॉलर की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है।
भारतीय रुपए की कीमत भी केलेंडर वर्ष 2022 में अभी तक अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगभग 6 प्रतिशत नीचे आ चुकी है। अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में लगातार हो रही ब्याज दरों में वृद्धि के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत से पिछले 6 माह के दौरान लगभग 230,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि निकाली है। दूसरे, भारत पूरे विश्व में कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक देशों में शामिल है। भारत अपनी तेल खपत का लगभग 80 प्रतिशत से अधिक भाग आयात करता है। हाल ही के समय में भारत में आर्थिक गतिविधियों में आई तेजी के चलते कच्चे तेल की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम भी रिकार्ड 130 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। अतः भारत को कच्चे तेल की कीमत चुकाने के लिए अमेरिकी डॉलर की जरूरत हुई है और इसकी मांग बढ़ने से अमेरिकी डॉलर की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही है। केवल भारतीय रुपया ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी देशों की मुद्राओं की कीमत में कमी दृष्टिगोचर है। बल्कि अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत भारतीय रुपए की तुलना में और अधिक तेजी से गिरी है। इस दृष्टि से भारतीय रुपए की कीमत अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में (अमेरिकी डॉलर को छोड़कर) बढ़ रही है। अभी हाल ही के समय में यूरो की कीमत गिरते गिरते अब अमेरिकी डॉलर की कीमत तक नीचे आ गई है। इसका मुख्य कारण भी निवेशकों द्वारा यूरोजोन से निवेश बाहर निकाल कर अमेरिका की ओर मोड़ते जाना है। वर्ष 2021 में एक यूरो की कीमत लगभग 90 रुपए थी जो अब लगभग 80 रुपए तक नीचे आ गई है। इस प्रकार यूरो की तुलना में रुपए की कीमत में सुधार हुआ है। इसी प्रकार, एक जापानी येन की कीमत वर्ष 2021 में 0.70 रुपए थी जो आज 0.58 रुपए हो गई है तथा एक पाउंड स्टर्लिंग की कीमत वर्ष 2021 में 101 रुपए थी जो अब घटकर 94 रुपए हो गई है एवं एक फ्रेंच फ़्रैंक की कीमत वर्ष 2021 में 13.60 रुपए थी जो अब घटकर 12.2 रुपए हो गई है। इस प्रकार उक्त चारों मुख्य मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी है परंतु केवल अमेरिकी डॉलर की तुलना में उक्त वर्णित कारणों के चलते घटी है।
वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर का लगातार इस प्रकार मजबूत होते जाना एवं अन्य देशों की मुद्रा की कीमत गिरते जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि, जैसे यदि भारत का ही उदाहरण लें, भारतीय रुपए की कीमत लगातार अमेरिकी डॉलर की तुलना में गिरते जाने के मायने यह है कि भारत द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं का महंगा होते जाना एवं भारत द्वारा अधिक अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया जाना। इसके परिणाम स्वरूप भारत में भी मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि हो रही है एवं इसे आयातित महंगाई भी कहा जाता है। इस प्रकार भारत सहित विश्व के अन्य देशों की विदेशी व्यापार करने पर अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता बढ़ गई है। हालांकि विश्व के समस्त देश वैश्विक स्तर पर विदेशी व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा, जैसे डॉलर, यूरो, रॅन्मिन्बी और पाउंड का इस्तेमाल करते रहे हैं, और अब चीन की मुद्रा युआन का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। परंतु, अमेरिकी डॉलर अभी भी विदेशी व्यापार के लिए सबसे प्रभावी मुद्रा बना हुआ है और इसीलिए पूरी दुनिया में अमेरिका की बादशाहत भी है।
परंतु अब विदेशी व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में भारतीय रुपए को विदेशी व्यापार में भुगतान के माध्यम के रूप में स्वीकार्यता प्रदान की है। विशेष रूप से रूस एवं यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के बाद रूस और इसके पूर्व ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते इन देशों से कच्चे तेल के आयात में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए इन देशों द्वारा कच्चे तेल के भुगतान के रूप में भारतीय रुपए को स्वीकार करने पर अपनी सहमति दे दी गई थी। अतः अब न केवल रूस और ईरान बल्कि कई अन्य कई देशों यथा श्रीलंका, बंगलादेश, एवं अरब राष्ट्र भी भारत से आयात और निर्यात करने पर भारतीय रुपए में भुगतान कर सकेंगे एवं भुगतान प्राप्त कर सकेंगे। इससे अमेरिकी डॉलर की मांग भारत के लिए कम होगी। भारत द्वारा केवल रूस से ही प्रति माह लगभग 300 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं (विशेष रूप से कच्चा तेल) का आयात किए जाने के स्तर को शीघ्र ही प्राप्त किया जा रहा है जो पूरे वर्ष में लगभग 3600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने की सम्भावना है। भारत द्वारा इस राशि का भुगतान रुपए में किया जा सकेगा एवं भारत की अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता इस स्तर तक कम हो जाएगी और रुपए की कीमत पर दबाव भी कम होगा। जो अंततः भारत में मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने में भी सहायक होगा। इससे भारत के साथ विदेशी व्यापार करने वाले देशों को भी लाभ होगा क्योंकि इन देशों द्वारा भारत से आयात की जाने वस्तुओं की कीमत को भी भारतीय रुपए में ही भुगतान किया जा सकेगा। अतः इन देशों की निर्भरता भी अमेरिकी डॉलर पर कम होगी और इन देशों को भारत से निर्यात और अधिक मात्रा में होने लगेंगे।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही कच्चे तेल की कीमतों के बावजूद भारत में कच्चे तेल का आयात बढ़ता जा रहा है साथ ही कोयला एवं सोने के आयात में भी हाल ही के समय में भारी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है जिससे भारत के व्यापार घाटे में भी रिकार्ड स्तर पर वृद्धि हो रही है जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर अत्यधिक दबाव महसूस किया जा रहा है। हाल ही में जारी की गई एक जानकारी के अनुसार, जून 2022 माह में भारत से वस्तुओं का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़कर 4,013 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। जबकि भारत के आयात में 57.55 प्रतिशत का उछाल आया है और जून 2022 माह में भारत का आयात बढ़कर 6,631 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है। इस प्रकार जून 2022 माह में भारत का व्यापार घाटा 2,618 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। इसका सीधा असर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है और यह अब 8 जुलाई 2022 को कम होकर 58,020 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर आ गया है। 8 जुलाई 2022 को समाप्त सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 810 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कमी दर्ज हुई है।
भारत द्वारा भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशी व्यापार में भुगतान माध्यम के रूप में स्वीकृति प्रदान करना भारत के लिए गेम चेंजर साबित होगा एवं इससे हाल ही के समय में भारत के विदेश मुद्रा भंडार पर लगातार बढ़ रहे दबाव को न केवल कम किया जा सकेगा बल्कि व्यापार घाटे को भी नियंत्रण में रखा जा सकेगा एवं इससे आयातित मुद्रा स्फीति पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। साथ ही, भारतीय रुपए की भुगतान माध्यम के रूप में स्वीकार्यता, अंतरराष्ट्रीय बाजार में, और भी तेजी से बढ़ने लगेगी।