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कृत्रिम बुद्धिमता के दावे और हकीकत

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
05/07/21
in अंतरराष्ट्रीय, मुख्य खबर, राष्ट्रीय
कृत्रिम बुद्धिमता के दावे और हकीकत

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अजय प्रताप तिवारी अजय प्रताप तिवारी
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विज्ञान मामलों के जानकार


इंसानी सभ्यता के विकास के साथ मशीनों से इंसान काम लेने की कोशिश शुरू हुई । इंसानी सभ्यता का जैसे-जैसे विकास हुआ और एक दूसरे से मजबूत बनने की होड़ शुरू हुई। मशीनों को लेकर इंसान की कल्पना आसमान से आगे जाने लगी । इंसानों को उन देवताओं की तलाश थी जो ना सिर्फ मूर्तियों में हो बल्कि वो प्रगट भी हो जाए। बोतल से ऐसा जिन निकले जो उनकी तमाम जरूरतों को पूरा कर दे। हमें कहानियों में बताया जाता था एक ऐसे चमत्कारी शक्तियों के बारे में जिसे सुनकर हर कोई भयभीत हो जाता था। मानव उन तमाम चमत्कारी शक्तियों को प्रकट करने के बारे में सोच विचार करने लगा। प्राचीन यूनानी कथाओं में यांत्रिक दास के बारे में उल्लेख मिलता है। अरब वैज्ञानिक इब्न अल जजरी ने अपने किताबों में इंसान जैसे सोचने समझने वाले रोबोट के बार में जिक्र किया है।

इंसानी विकास का क्रम जितनी तेजी से फैला उतने ही तेज रफ्तार से इंसान अपने जीवन को सरल बनाने के लिए तमाम कोशिशे जारी रखी। यह बात तो सच है कि आज हम दुनिया को जिस शक्ल में देख रहे हैं। यह उसके पीछे इंसानी दिमाग ही है। इस आधुनिक युग में तेज दिमाग से ही कुछ कर सकते हैं । इंसान के तेज दिमाग का कमाल ही तो है जो अपने से भी कही ज्यादा तेज दिमाग का निर्माण प्रयोगशाला में कर चुका है। कृत्रिम बुद्धि की पहचान मैकुलच और पिट्स ने 1943 में किया था। कृत्रिम बुद्धि, कंप्यूटर विज्ञान की एक शाखा है जो मशीनों और सॉफ्टवेयर को बुद्धि के साथ विकसित करता है। 1955 में जॉन मकार्ति ने इसको कृत्रिम बुद्धि का नाम दिया और उसके बारे में यह विज्ञान और इंजीनियरिंग के बुद्धिमान मशीनों बनाने के के रूप परिभाषित किया। कृत्रिम बुद्धि अनुसंधान के लक्ष्यों में तर्क, ज्ञान की योजना बनाना, सीखने, धारणा और वस्तुओं में हेरफेर करने की क्षमता, आदि शामिल हैं। वर्तमान में, इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सांख्यिकीय विधियों, कम्प्यूटेशनल बुद्धि और पारंपरिक खुफिया शामिल हैं। कृत्रिम बुद्धि का दावा इतना है कि मानव की बुद्धि का एक केंद्रीय संपत्ति एक मशीन द्वारा अनुकरण कर सकता है। वहाँ दार्शनिक मुद्दों के प्राणी बनाने की नैतिकता के बारे में प्रश्न् उठाए गए थे। लेकिन आज, यह प्रौद्योगिकी उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा बन गया है।

कृत्रिम बुद्धिमता की उपयोगिता दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस बढ़ते उपयोग को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कृत्रिम बुद्धिमता वाली तकनीकी के संदर्भ में छात्रों के मध्य जागरूकता लाने और उन्हें इस क्षेत्र में कौशल युक्त बनाने के लिए प्राइवेंट कंपनी इंटेल के साथ मिलकर एक कम्युनिटी प्लेटफार्म को आरंभ किया है । सतत विकास लक्ष्यों पर कृत्रिम बुद्धिमता के प्रभावों की समीक्षा के संदर्भ में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के संदर्भ किए जाने वाले सभी कार्यो में कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा लभगभ 80 फीसद कार्य संपादित किए जा सकते हैं।

भारत की बात करे तो नीति आयोग के अनुसार साल 2035 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में 957 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। साथ ही साल 2035 तक भारत की आर्थिक विकास की वृद्धि दर को वार्षिक रूप से 1.3फीसद तक बढ़ाया जा सकता है। तेजी से बढ़ती कृत्रिम बुद्धिमता को लेकर कुछ समस्याएं भी आ सकती है । कृत्रिम बुद्धिमता से न केवल गरीबी एवं बेरोजगारी जैसी अनेक समस्याएं पैदा होगी बल्कि आम जनता में राजस्व के वितरण में कमी आने से उनके क्रय शक्ति क्षमता भी प्रभावित होगी। श्रमिक अधिकार से जुड़े हुए कानूनों के आभाव में इस प्रकार की स्थितियां किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक विकास को पीछे ले जाने वाली समस्या उत्पन्न हो सकती है।कृत्रिम बुद्धिमता के पीछे की कुछ समस्या को नजरअंदाज कर दिया जाए तो इस तकनीकी के प्रयोग से समाज के लिए इ अधिक लाभकारी अवसर प्रदान करता है।

कोविड -19 को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने एक कृत्रिम बुद्धिमता वाली तकनीक विकसित की है, जो कोविड-19 के मामलों की गंभीरता से सटीक आकलन करने में सक्षम है। यह शोध वाटरलू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और एक सिस्टम डिजाइन इंजीनियरिंग प्रोफेसर और सॉफ्टवेयर कंपनी डार्विनएआई के द्वारा किया गया है। यह तकनीक डॉक्टरों के मामलों का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण दे सकती है। साथ ही कोविड -19 के साथ एक रोगी की गंभीरता का आकलन करना उपचार और देखभाल के लिए सर्वोत्तम कार्रवाई का निर्धारण करने के लिए कोविड-19 कार्यप्रवाह में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। चाहे वह रोगी को आईसीयू में भर्ती करना हो या रोगी को ऑक्सीजन थेरेपी देना हो, या रोगी को यांत्रिक वेंटिलेटर पर रखना हो। कृत्रिम बुद्धिमता के बारे में वैज्ञानिकों का राय है कि कृत्रिम बुद्धिमता के अनगिनत लाभों के बीच सबसे ज्यादा नकारात्मक परिणाम इंसान को ही झेलना पड़ा सकता है ।इस लिए यह आवश्यक है कि इसे अपनाए जाने के क्रम में लाभ एवं हानियों को दृष्टिकोण में रखते हुए सतत रूप से इसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

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