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केदारनाथ में फिर तबाही का खतरा! इन कार्यों पर रोक की सिफारिश

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
29/10/22
in उत्तराखंड, मुख्य खबर
केदारनाथ में फिर तबाही का खतरा! इन कार्यों पर रोक की सिफारिश

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भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में शामिल उत्तराखंड के केदारनाथ धाम पर एक बार फिर तबाही का खतरा मंड़राने लगा है. यह खुलासा केदारनाथ धाम में एवलांच के अध्ययन के लिए भेजी गई कमेटी ने किया है. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. इसमें एक्सपर्ट कमेटी ने सरकार को आगाह किया है कि केदारनाथ मंदिर के उत्तरी क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण ना होने दिया जाए. वैज्ञानिकों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में यहां सभी तरह के निर्माण पर तत्काल रोक लगाने की भी सिफारिश की है.

बता दें कि केदारनाथ धाम में सितंबर और अक्टूबर महीने में एवलांच देखने को मिले थे. एवलांच की तस्वीरों को देखकर ना केवल लोगों में डर बैठ गया, बल्कि शासन और प्रशासन भी अलर्ट मोड में आ गया. चूंकि केदारनाथ में वर्ष 2013 में भारी तबाही झेल चुका है. ऐसे में किसी बड़े खतरे का अंदेशा मान कर शासन ने आनन फानन में एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर अध्ययन के लिए केदारनाथ भेज दिया. पांच सदस्यीय इस कमेटी ने अपने अध्ययन की रिपोर्ट अब सरकार को सौंप दी है. इसमें केदारनाथ मंदिर के उत्तरी क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की सिफारिश की है.

नुकसान से बचाव के लिए दिए सुझाव
कमेटी ने 2013 जैसे किसी हादसे की स्थिति में बचाव के लिए भी कुछ सिफारिशें की है. इसमें बताया है कि केदारनाथ मंदिर के उत्तरी ढलान के साथ ही अलग-अलग ऊंचाई पर बेंचिंग की जानी चाहिए. इससे ढलान की तीव्रता कम हो जाएगी. इसी के साथ ढलानों पर कंक्रीट के अवरोधक लगाने की भी बात कही है. इन अवरोधकों की डिजाइन, आकार और लगाने की जगह आदि के बारे में बाद में अलग से सुझाव दिया जाएगा.

हवाई और स्थलीय सर्वे के बाद बनाई रिपोर्ट
वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पूरी टीम ने अक्तूबर के पहले सप्ताह में केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्रों में हवाई सर्वे किया था. इसके बाद स्थलीय सर्वेक्षण कर पूरे क्षेत्र की स्थिति और परिस्थिति का अध्ययन किया गया. इसी अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट तैयार किया गया है. टीम में शामिल विशेषज्ञों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर के उत्तरी क्षेत्र में रेत के टीले बना कर हादसे की तीव्रता को कम किया जा सकता है. बदरीनाथ मंदिर के पीछे इस तरह के टीले बनाए जा चुके हैं.

जागरुकता अभियान पर जोर
टीम ने अपनी रिपोर्ट में लोगों के अंदर जागरुकता पर जोर दिया. कहा कि इसके लिए अभियान चलना चाहिए. ग्लेशियर प्रभावित क्षेत्रों में हिमस्खलन आम बात है. ऐसे में मीडिया और अन्य जिम्मेदार लोग अफवाह फैलाने के बजाय लोगों को जागरुक करें तो नुकसान को कम किया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने अपनी जांच में पाया है कि केदारनाथ मंदिर से करीब पांच से छह किलोमीटर ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के सहयोगी ग्लेशियर में हिमस्खलन हुआ है.

प्राधिकरण ने खतरे की आशंका को नकारा
एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर उत्तराखंड आपदा प्राधिकरण के जॉइंट सीईओ मोहम्मद ओबेदुल्ला अंसारी का कहना है कि एवलांच से किसी भी तरह के खतरे की फिलहाल कोई बात नहीं है. कहा कि कमेटी ने यह भी सुझाव दिए हैं कि मंदिर के पीछे की ओर यानी उत्तर दिशा में मोरेन मौजूद हैं. इसलिए क्षेत्र में भविष्य में भी कोई बड़ा कंस्ट्रक्शन ना हो. एक्सपर्ट कमेटी ने यह भी कहा है कि केदारधाम में ज्यादा कंस्ट्रक्शन भी भविष्य में दिक्कतें पैदा कर सकता है.

2013 के बाद बड़े पैमाने पर हुआ कंस्ट्रक्शन
केदारनाथ धाम में वर्ष 2013 की आपदा के बाद बड़े स्तर पर कंस्ट्रक्शन हुआ है. स्टोन क्रेशर से उड़ने वाले डस्ट पार्टिकल से ग्लेशियर को काफी नुकसान हुआ है. कंस्ट्रक्शन में ट्रैक्टर और बड़े ट्रक चलाए गए. इससे न सिर्फ धूल बल्कि डीजल के धुएं से भी ब्लैक पार्टिकल्स ग्लेशियर पर जम गए. वहीं लगातार पत्थरों को तोड़ा गया. जिससे वाइब्रेशन जनरेट हुई और उसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ा. इसी प्रकार लगातार हेलीकॉप्टर की मूवमेंट से साउंड वाइब्रेशन भी जनरेट हुआ. जिसने हैंगिंग ग्लेशियर और दूसरे ग्लेशियरों को प्रभावित किया है. वाडिया इंस्टीट्यूट के रिटायर वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के मुताबिक यह सारी डस्ट ग्लेशियर पर जम गई. इससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. जिस तरीके से यहां कंस्ट्रक्शन हुआ, पूरे इलाके का एनवायरनमेंट खतरे में आ गया है.

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