नैनीताल: उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. बदलता मौसम, अनियमित वर्षा और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण राज्य की जैव विविधता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है. हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण उत्तराखंड का पर्यावरण हमेशा संवेदनशील रहा है लेकिन हाल के वर्षों में यहां प्राकृतिक संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है. उत्तराखंड के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों के जलस्तर में अस्थिरता देखने को मिल रही है. यह न सिर्फ पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है बल्कि इससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.
जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाली कंपनी ट्राई इंपेक्ट ग्लोबल के सीईओ मनोज भट्ट ने लोकल 18 को बताया कि उत्तराखंड के ग्लेशियर के पास होने के कारण यहां क्लाइमेट चेंज का सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है. गंगोत्री और पिंडारी ग्लेशियरों के आकार में तेजी से कमी आ रही है, जो भविष्य में जल संकट का संकेत दे रही है. राज्य में जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर भी दिख रहा है. पारंपरिक फसलें जैसे- झंगोरा, चौलाई और मंडुवा का उत्पादन घट रहा है. वहीं सेब और अन्य फलों की फसलें भी प्रभावित हो रही हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. प्राकृतिक जल स्रोतों का जलस्तर भी गिर रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
जीव-जंतु और पक्षियों पर असर
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड के जंगलों और वन्यजीवों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. कई स्थानों पर वनस्पतियां सूख रही हैं और बाघ, तेंदुआ, कस्तूरी मृग और हिमालयी मोनाल जैसे दुर्लभ जीवों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है. साथ ही प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी गिरावट देखी जा रही है क्योंकि बदलते मौसम चक्र के कारण वे अपने पारंपरिक प्रवास स्थलों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.
खेती और जल स्रोतों पर असर
राज्य में जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर भी दिख रहा है. पारंपरिक फसलें, जैसे झंगोरा, चौलाई और मंडुवा का उत्पादन घट रहा है. वहीं, सेब और अन्य फलों की फसलें भी प्रभावित हो रही हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. प्राकृतिक जल स्रोतों का जलस्तर भी गिर रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
आगे क्या किया जा सकता है?
मनोज भट्ट बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए वनों का संरक्षण, जल संसाधनों का प्रबंधन और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने की जरूरत है. इसके अलावा पारंपरिक खेती को बढ़ावा देकर पर्यावरण अनुकूल कृषि अपनाने पर जोर देना होगा. उत्तराखंड की जैव विविधता और पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार और आम जनता दोनों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है. यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है.