Saturday, June 7, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home अंतरराष्ट्रीय

अमेरिकी स्वपन का अंत निकट तो नहीं!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
31/08/24
in अंतरराष्ट्रीय, मुख्य खबर
अमेरिकी स्वपन का अंत निकट तो नहीं!
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

प्रहलाद सबनानीप्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक


नई दिल्ली: अमेरिका विश्व के लगभग समस्त देशों पर अपनी चौधराहट सफलतापूर्वक लागू करता रहा है। पूरे विश्व में, एक तरह से लगभग समस्त क्षेत्रों में, विभिन्न प्रकार की नीतियों को प्रभावित करने में अमेरिका सफल रहा है एवं इस प्रकार अपनी प्रसारवादी नीतियों को भी लागू करता रहा है। परंतु, हाल ही के वर्षों में अमेरिका की आंतरिक स्थिति, लगभग समस्त क्षेत्रों यथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आदि, में लगातार बिगड़ती जा रही है। अमेरिका सहित विकसित देशों की, आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में, आंतरिक स्थिति को देखते हुए अब तो पश्चिमी सभ्यता पर ही प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं।

अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में आर्थिक विपन्नता एवं परिवार तथा समाज के खंड खंड होने के बाद पश्चिमी सभ्यता को पतित सभ्यता कहा जाने लगा है और इसे अब अमेरिकी स्वपन के अंत की शुरुआत भी माना जाने लगा है। अमेरिका में तो राष्ट्रीय ऋण 35 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार, सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर, लगभग 25 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। इसका आश्य यह है कि आय की तुलना में ऋण अधिक ले लिया गया है। अमेरिकी वित्त व्यवस्था पर दबाव इतना अधिक बढ़ गया है कि अमेरिकी सरकार को अपने सामान्य खर्चों को चलाने के लिए भी बाजार से और अधिक ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है और इस उद्देश्य से प्रति वर्ष अमेरिकी संसद में स्वीकृति प्राप्त करने हेतु पहुंचना होता है। यह स्थिति है विश्व के सबसे अधिक शक्तिशाली देश अमेरिका की।

वर्ष 1776 में जब पूंजीवाद के जनक कहे जाने वाले एडम स्मिथ ने अपनी कृति “द वेल्थ आफ नेशनस” नामक किताब जारी की थी उस समय पूंजीवाद अपने शैशावस्था में ही था। उनका महत्वपूर्ण मुख्य सिद्धांत था कि व्यवसायी, जो अपनी लाभप्रदता को अधिकतम करना चाहते हैं, वे अपने व्यवसाय को बहुत ही कुशलता के साथ चलाना चाहते हैं। इस तरह ये व्यवसायी न केवल अपने आप को धनाडय बनाएंगे बल्कि वह देश इन धनाडयों के संसाधनों को जोड़कर स्वयं भी एक धनी देश बन जाएगा। पूरी 19वीं शताब्दी एवं 20वीं शताब्दी में अमेरिका इसी सिद्धांत पर कार्य करता रहा है एवं अपने देश में धनाडयों की संख्या में अपार वृद्धि करता रहा है। इससे अमेरिकी नागरिकों में व्यक्तिवाद पनपा एवं वे परिवार एवं समाज के भले को भूलकर केवल अपने बारे में ही सोचने लगे एवं अपने व्यापार को पूरे विश्व में फैलाने लगे। इससे अमेरिका में गरीबों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही।

अमेरिका की 1940 के दशक में पूरे विश्व के विनिर्माण क्षेत्र में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी हो गई थी, परंतु अब यह घटकर 17 प्रतिशत से भी कम हो गई है। कई उद्योगों के मामले में उत्पादन का जो एकाधिकार अमेरिका के पास होता था वह एकाधिकार अब अन्य देशों के पास चला गया है। अमेरिकी कम्पनियों ने कुशल कर्मचारियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से कर्मचारियों के स्वास्थ्य खर्चे की पूरी लागत स्वयं वहन करना प्रारम्भ किया था। अमेरिका में श्रम लागत भी बहुत अधिक बढ़ चुकी थी, अन्य देशों में श्रमिक, अमेरिकी श्रम लागत की तुलना में, आधी से भी कम राशि में ही काम करने को तैयार हो रहे थे। इस बीच अमेरिकी सरकार ने आय कर की दरें भी बढ़ाकर 35 प्रतिशत से अधिक कर दी थीं। जबकि अन्य देशों में आय कर की दरें 20/25 प्रतिशत थीं। इससे अमेरिका में विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ने लगी। अतः धीरे धीरे अमेरिका में विनिर्माण इकाईयां बंद होने लगीं।

वर्ष 1979 में अमेरिका में 20 प्रतिशत श्रमिक विनिर्माण इकाईयों में कार्यरत थे अब यह संख्या घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है। अमेरिका में 2 करोड़ कर्मचारी विनिर्माण इकाईयों में कार्य कर रहे थे जो घटकर 1 करोड़ 20 लाख हो गए हैं। अमेरिका में जब प्रथम राष्ट्रपति ने शपथ ली थी उस समय 10 श्रमिकों में से 9 श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे (छोटे कृषक) जबकि आज केवल 2 प्रतिशत श्रमिक ही कृषि क्षेत्र में कार्य करते हैं। इस प्रकार अमेरिका में रोजगार की दृष्टि से कृषि एवं उद्योग क्षेत्र में बहुत अधिक संकुचन हुआ है।

1950 के दशक से लेकर अमेरिका में स्टील उद्योग, कपड़ा उद्योग (वस्त्र, परिधान एवं टेक्सटाइल), उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग लगभग समाप्त से हो गए हैं। वाहन उद्योग के क्षेत्र की बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपनी विनिर्माण इकाईयां चीन आदि देशों में स्थापित की हैं। साथ ही, जापान की कई कम्पनियों ने वाहन के क्षेत्र में अमेरिका में आकर अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना की है। इस प्रकार, कुल मिलाकर उक्त उद्योगों में अमेरिकी मूल के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बहुत कम हो गए हैं अथवा बिलकुल ही समाप्त हो गए हैं। अमेरिका में उपयोग हो रहे स्मार्ट सेल फोन के 50 प्रतिशत से अधिक उपकरण आयात किए जा रहे हैं एवं इनका उत्पादन अमेरिका में नहीं हो रहा है।

ब्यूरो आफ लेबर स्टेटिस्टिक्स – मासिक लेबर रिव्यू दिसम्बर 2016 के अनुसार, अमेरिका में प्रति घंटा वास्तविक मजदूरी दर – वर्ष 1947 में 5.35 अमेरिकी डॉलर थी जो वर्ष 1973 में बढ़कर 9.26 अमेरिकी डॉलर हो गई। परंतु, उसके बाद से लगभग उसी स्तर पर बनी हुई है जो वर्ष 2015 में 9.07 अमेरिकी डॉलर थी। वर्ष 1947 से 1973 के बीच प्रति घंटा वास्तविक मजदूरी दर 73 प्रतिशत से बढ़ी थी जबकि इसी दौरान उत्पादकता में 95 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।

वहीं वर्ष 1973 से 2015 के बीच प्रति घंटा वास्तविक मजदूरी दर 3 प्रतिशत कम हुई है और उत्पादकता 109 प्रतिशत बढ़ी है। इस बीच रोजगार के नए अधिकतम अवसर उच्च मजदूरी वाले क्षेत्रों से घटकर कम मजदूरी वाले क्षेत्रों में बढ़े हैं। जैसे विनिर्माण इकाईयों के बंद होने से भारी संख्या में श्रमिक वर्ग को सेवा क्षेत्र में कम मजदूरी के रोजगार स्वीकार करने पड़े है। वर्ष 1979 के बाद से 40 प्रतिशत से अधिक रोजगार के अवसर विनिर्माण क्षेत्र में कम हुए हैं। साथ ही, तकनीकी विकास ने भी उत्पादकता तो बढ़ाई है परंतु मजदूरी की दरें नहीं बढ़ पाई हैं।

अमेरिका में समय के साथ साथ विनिर्माण इकाईयां बंद होती गईं एवं उच्च तकनीकी, सूचना आधारित सेवा क्षेत्र में, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र में, रोजगार के अधिक अवसर उभरते गए। अब तो बहि:स्त्रोतन (आउट्सॉर्सिंग) के चलते सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है। अतः अमेरिका में आने वाले समय में विनिर्माण इकाईयों के साथ साथ सेवा क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों में कमी आ सकती है।

उक्त कारणों के चलते अमेरिका में गरीबी की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। गरीबी के चलते इस वर्ग के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पाती है, यह वर्ग बहुत ही तंग हालत में रहता है एवं अंततः सामाजिक अपराधी गतिविधियों में संलग्न हो जाता है। इनके मकानों में बहुत कम सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। अमेरिका में गरीबी रेखा का निर्धारण अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा प्रति वर्ष किया जाता है। वर्ष 2015 में गरीबी आंकलन के लिए प्रत्येक चार व्यक्तियों के परिवार के लिए प्रतिवर्ष 24,300 अमेरिकी डॉलर की आय तय की गई थी। इससे कम आय वाले परिवार गरीबी रेखा के नीचे माने जाते हैं। आय की उक्त गणना के आधार पर अमेरिका में 13.5 प्रतिशत परिवार (4.31 करोड़ अमेरिकी नागरिक) गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे।

गरीब वर्ग के नागरिकों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहने के चलते अमेरिका में 22 लाख अमेरिकी गरीब नागरिक जेलों में बंद थे एवं 50 लाख गरीब नागरिक पैरोल अथवा परीक्षण पर थे एवं अन्य 10 लाख नागरिक जो जेलों से छूट गए थे, वे न तो पेरोल पर थे और न ही परीक्षण पर थे, परंतु वे कभी भी पुनः जेलों में भेजे जा सकते हैं।

आपराधिक गतिविधियों में लिप्त नागरिकों के अतिरिक्त 20 लाख से 30 लाख नागरिक ऐसे भी हैं जिनके पास रहने के लिए अपना घर नहीं है जिन्हें यहां “होमलेस” कहा जाता है। 50 लाख अमेरिकी नागरिक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं एवं 80 लाख नागरिक सामाजिक सुरक्षा एवं विकलांग योजना का लाभ ले रहे हैं।

एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में तीन से साढ़े तीन करोड़ नागरिक स्थायी निम्नवर्ग की श्रेणी में आते हैं, जो अमेरिका की कुल 32.5 करोड़ जनसंख्या का 10 प्रतिशत है। प्रत्येक 5 अमेरिकी बच्चों में से एक बच्चा गरीब वर्ग का है। इतना अधिक खर्च करने के बाद भी अमेरिका में सामाजिक सहायता व्यवस्था अन्य अमीर एवं विकसित देशों की तुलना में कमतर ही मानी जाती है। करोड़ों अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिक केयर डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यदि यह सुविधा उपलब्ध भी है तो चार में से केवल एक नागरिक को ही डॉक्टर से उसी दिन का मिलने का समय मिल पाता है।

अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में इस प्रकार के हालात देख कर अब तो कई अर्थशास्त्रियों द्वारा आर्थिक विकास के पूंजीवादी मॉडल पर ही प्रश्नचिन्ह लगाया जाने लगा है एवं यह कहा जा रहा है कि कहीं अमेरिकी स्वपन का अंत निकट तो नहीं है।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.