नई दिल्ली: ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का नाम न केवल पढ़े-लिखे लोग, बल्कि ऐसे लोग भी जानते होंगे, जो कभी स्कूल-कॉलेज न गए हों. आखिर यही वो कंपनी ने जिसने लंबे समय तक भारतीयों को गुलाम बनाकर रखा था और भारत पर राज किया था. सन 1600 ईस्वी के आस-पास भारत की जमीन पर इस कंपनी का पहला कदम पड़ा था और फिर इसने ऐसी जड़ें जमाईं कि सैकड़ों सालों तक पूरे देश पर शासन किया. साल 1857 तक भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का ही राज था, उस समय को कंपनी राज (Company Raj) के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन, वर्तमान में देखें तो इस कंपनी का नाम और कारोबार आज भी जारी है, लेकिन भारत को गुलाम बनाने वाली ये कंपनी आज खुद एक भारतीय की गुलाम है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से…
भारतीय मसालों ने दिलाई एंट्री
17वीं सदी की शुरुआत में यानी 1600 के दशक के दौर में साम्राज्यवाद और व्यापार के मामले में स्पेन और पुर्तगाल सबसे आगे थे. इसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस की इसमें एंट्री हुई, लेकिन देर से मैदान में उतरने के बावजूद इनक दबदबा तेजी से बढ़ा. दरअसल, पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा भारत आने के बाद यहां से जहाजों में भरकर भारतीय मसाले (Indian Spices) ले गया था और पूरे यूरोप में इनकी डिमांड बढ़ती ही गई और Vasco da Gama ने बेशुमार दौलत कमाई. भारतीय मसालों की महक ऐसी फैली कि देश की संपन्नता के चर्चे बढ़ने लगे औऱ यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों की नजर इस पर पड़ी. ब्रिटेन की ओर से यह काम किया ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया.
ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने का मकसद
अंग्रेजों ने East India Company की स्थापना 17वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद और औनपिवेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए की थी और ब्रिटिश साम्राज्य को बड़ा बनाने में इसी कंपनी ने सबसे बड़ा रोल निभाया. हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी को मूलत: व्यापार के लिए बनाया गया था, लेकिन ब्रिटिश शासन ने इसे तमाम खास अधिकार भी दिए हुए थे. इन विशेषाधिकार में युद्ध (War) करने का अधिकार शामिल था. ऐसे में कंपनी के पास अपनी खुद की बड़ी और ताकतवर सेना हुआ करती थी.
पुर्तगाल भारत से मसालों के जहाज भरकर ले जाते थे. लेकिन East India ने सबसे पहले इन्ही जहाजों को निशाना बनाया और पूर्व रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहला जहाज लूटने पर ईस्ट इंडिया कंपनी को 900 टन मसाले मिले, जिसे बेचकर कंपनी ने मोटा मुनाफा कमाया. इतिहास पर नजर डालें तो पहली लूट के बाद मसालों के व्यापार में ईस्ट इंडिया कंपनी को करीब 300% का जबरदस्त मुनाफा हुआ था.
भारत में ऐसे बढ़ता गया कंपनी का राज
लूट का ये सिलसिला चलता रहा और ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया. सर थॉमस रो ने मुगल बादशाह से कंपनी के व्यापार का अधिकार प्राप्त किया और कलकत्ता (अभी कोलकाता) से भारत में कारोबार शुरू किया. इसके बाद चेन्नई से लेकर मुंबई तक से बिजनेस संचालित होने लगा. कंपनी की पहली स्थायी फैक्ट्री साल 1613 में सूरत में स्थापित की गई थी. 1764 ईस्वी का बक्सर युद्ध East India Company के लिए निर्णायक साबित हुआ और कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे देश पर अधिकार जमा लिया और सालों तक राज कायम रखा. हालांकि, 1857 ईस्वी के विद्रोह के चलते ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया और कंपनी खाली हाथ रह गई.
125 करोड़ रुपये में भारतीय ने खरीदा
इतिहास देखें तो ये East India Company ही भारत की पहली कंपनी थी, ये भारतीय नहीं बल्कि ब्रिटेन की थी. इसी कंपनी ने भारत को लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा. हालांकि, कंपनी का राज खत्म हो गया, लेकिन इसका कारोबार अब भी जारी है, लेकिन समय ने बाजी ऐसे पलटी कि जो कंपनी पूरे भारत पर राज करती थी, आज उस पर एक भारतीय का राज है. भारतीय मूल के संजीव मेहता ने 2010 में ईस्ट इंडिया कंपनी को 15 मिलियन डॉलर यानी 125 करोड़ रुपये में खरीद लिया.बता दें इसे ऐतिहासिक ईस्ट इंडिया कंपनी के पुनरुद्धार के रूप में पेश किया गया था जिसे 1 जून 1874 को भंग कर दिया गया था.
चाय-कॉफी से लेकर चॉकलेट का बिजनेस
तबसे लेकर अब तक करीब डेढ़ दशक से East India Compamy में संजीव मेहता का ही राज चल रहा है. अब ये कंपनी पूरी तरह से एक ई-कॉमर्स फर्म (E-Commerce Firm) में तब्दील हो चुकी है और भारतीय मूल के संजीव मेहता के नेतृत्व में कारोबार कर रही है. खास बात ये है कि कभी युद्ध के मैदान तक में दमखम दिखाने वाली इस ये कंपनी अपनी चाय, कॉफी और चॉकलेट जैसी चीजें बेच रही है.