नई दिल्ली l दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान सरकार को नसीहत दी। उसने कहा कि हमारे राष्ट्र की नींव बहुत मजबूत है और यह ‘कॉलेज के कुछ छात्रों’ के विरोध प्रदर्शन से हिलने वाली नहीं है। कोर्ट ने जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने तनहा को मंगलवार को जमानत दे दी।
अदालत ने कहा कि यूएपीए कानून के तहत पहली नजर में तनहा के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। हाई कोर्ट ने कहा कि कानून विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम यानी यूएपीए के कड़े प्रावधानों के तहत लोगों पर मामला दर्ज करना संसद के उस उद्देश्य की अवहेलना करना होगा जिसके लिए यह कानून बनाया गया था।
अदालत ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य राष्ट्र के अस्तित्व के प्रति पैदा हो रहे खतरे से निपटना है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भाणी की पीठ ने 133 पन्नों के आदेश में कहा, ‘खतरे और आतंकवाद की आशंका के इस पक्ष को संज्ञान में लेने के बाद हमारा मत है कि हमारे राष्ट्र की नींव मजबूत है। इसे दिल्ली के बीचोबीच स्थित विश्वविद्यालय परिसर के भीतर से संचालित कॉलेज के छात्रों या किसी और के आयोजित विरोध प्रदर्शन नहीं हिला सकते। चाहे वे कितने भी द्वेषपूर्ण हों।’
अदालत ने कहा कि चार्जशीट में लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। पीठ ने कहा, ‘अपीलकर्ता (तनहा) ने जो भी अपराध किए होंगे या नहीं किए होंगे, कम से कम पहली नजर में सरकार हमें अपनी दलीलों से संतुष्ट नहीं कर सकी कि यूएपीए की धाराओं 15, 17 या 18 के तहत अपराध किया गया।’
क्या था मामला?
तनहा और अन्य पर भारतीय दंड संहिता, यूएपीए, आर्म्स एक्ट और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण कानून की कई धाराओं में मामले दर्ज हैं। तनहा को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा क्योंकि एक अन्य मामले में भी उसे जमानत मिल गई है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में पिछले साल 24 फरवरी को दंगे हुए थे। इसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और लभगग 200 घायल हो गए थे। तनहा पर इसी मामले में आरोप थे ।
विरोध का अधिकार, मौलिक अधिकार है
एक अन्य मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि विरोध का अधिकार, मौलिक अधिकार है और इसे ‘आतंकी गतिविधि’ करार नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे के एक मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा देवांगना कालिता को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि अदालत को गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून में उपयोग किए गए निश्चित शब्दों और वाक्यांशों को लागू करने के दौरान बेहद सावधानी बरतनी होगी। साथ ही ऐसे शब्दों और वाक्याशों को आतंकवादी कृत्य जैसे जघन्य अपराधों में हल्के में लेने से सावधान रहना होगा, बिना यह समझे कि आतंकवाद किस तरह पारंपरिक और जघन्य अपराध से अलग है।
खबर इनपुट एजेन्सी से