नई दिल्ली: बिहार में सियासी हालात बदल गए हैं. महागठबंधन सरकार की अगुवाई कर रही नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के बीच तल्खी इस कदर बढ़ गई है कि सरकार पर बन आई है. नीतीश कुमार ने सीएम हाउस पर जेडीयू नेताओं के साथ बैठक की है वहीं लालू यादव और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने राबड़ी देवी के आवास पर आरजेडी नेताओं के साथ. दिल्ली में अमित शाह ने बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी, पूर्व डिप्टी सीएम रेणु देवी और अन्य नेताओं के साथ बैठ की तो वहीं इससे पहले बिहार बीजेपी प्रभारी के आवास पर भी बैठक हुई.
दिल्ली में सियासी गहमा-गहमी के बीच अब यह करीब-करीब तय हो गया है कि बिहार में अब बीजेपी और जेडीयू मिलकर सरकार बनाएंगे. 28 जनवरी को नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. ऐसे में अब चर्चा चिराग पासवान, पशुपति पारस, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं और उनकी पार्टियों के एनडीए में भविष्य को लेकर भी होने लगी है. अब इन नेताओं और इनकी पार्टियों का क्या होगा?
नीतीश की वापसी के बाद चिराग का क्या होगा?
नीतीश और चिराग के बीच की तल्खी जगजाहिर है. चिराग ने तब भी नीतीश के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रखा था जब वह एनडीए में थे. बिहार चुनाव में चिराग ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार तक उतार दिए थे. चिराग की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी लेकिन करीब दो दर्जन सीटों पर नीतीश कुमार की पार्टी की हार की वजह जरूर बन गई.
बिहार चुनाव के बाद नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के तीखे तेवरों को देख बीजेपी ने चिराग को एक तरह से उनके हाल पर छोड़ दिया था. एलजेपी टूट गई और पशुपति पारस को एलजेपी कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री बना दिया गया. चिराग अपनी पार्टी में अकेले सांसद रह गए, बाकी सभी पारस के साथ हो लिए. चिराग की कुछ ही महीनों पहले एनडीए में वापसी हुई है.
बिहार के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर चिराग पासवान ने कहा है कि हम हालात पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि हमारी गृह मंत्री अमित शाह से बात हुई है. हमने अपने नेताओं के साथ बैठक कर भी चर्चा की है. तस्वीर साफ होने दीजिए फिर हम सभी सवालों के जवाब देंगे. चिराग नीतीश से जुड़े सवाल टालते ही नजर आए. ऐसे में ये सवाल और गहरा हो गया है कि नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद चिराग और उनकी पार्टी का एनडीए में भविष्य क्या होगा, भूमिका क्या होगी?
पशुपति पारस की राह कैसी होगी?
चर्चा चिराग के चाचा पशुपति पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) को लेकर भी हो रही है. पशुपति पारस भी एनडीए में चिराग की वापसी के विरोधी रहे हैं. हाजीपुर सीट को लेकर भी चाचा-भतीजा की रार जगजाहिर है. पशुपति अपनी सीटिंग सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं. वहीं, चिराग ने हाजीपुर में अपनी मां रीना पासवान को मंच पर लाकर इमोशनल कार्ड खेल पशुपति पारस और बीजेपी को मुश्किल में डाल रखा है. ऐसे में नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद हो सकता है कि चिराग गठबंधन में हाशिए पर चले जाएं और पशुपति पारस की बारगेन पावर अधिक हो जाए.
जीतनराम मांझी कभी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक माने जाते थे लेकिन पिछले कुछ साल, खासकर कुछ महीनों में दोनों नेताओं के रिश्ते तल्ख रहे हैं. नीतीश कुमार ने विधानसभा में जिस तरह से मांझी पर हमला बोला था, उसे लेकर भी दोनों नेताओं के रिश्ते कैसे रहते हैं? इस पर भी नजरें होंगी. मांझी ने पिछले कुछ दिनों में नीतीश को लेकर नरम रुख दिखाया है.
मांझी ने यह भी कहा है कि नीतीश अगर एनडीए में वापस आते हैं तो उनका स्वागत करेंगे. मांझी, मुसहर जाति से आते हैं जो महादलित कैटेगरी में आती है. ऐसे में एनडीए में उनकी पोजिशन जस की तस ही रहेगी, ऐसे अनुमान जताए जा रहे हैं लेकिन नीतीश के साथ उनकी ट्यूनिंग कैसी रहती है? यह देखने वाली बात होगी.
उपेंद्र कुशवाहा पर भी होगी नजर
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा थी. तब जेडीयू अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी थी. उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का बाद में जेडीयू में विलय कर दिया था लेकिन कुछ महीने पहले ही उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ अपनी अलग पार्टी बना ली. उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू छोड़ने के बाद भी नीतीश पर कम, आरजेडी और लालू यादव पर अधिक हमलावर रहे.
उपेंद्र कुशवाहा ने तो यहां तक कहा था कि नीतीश कुमार अगर एनडीए में आना चाहें तो हम उनके लिए लॉबिंग करने को भी तैयार हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के एनडीए में आने पर स्वागत करने की बात भी कही थी. नीतीश अगर एनडीए में जाते हैं तो उपेंद्र कुशवाहा को लेकर उनका रुख कैसा रहता है, एनडीए में उनकी बारगेन पावर कितनी प्रभावित होती हैं? नजरें इस पर भी होंगी.
नीतीश के लौटने पर इन नेताओं के भविष्य की चर्चा क्यों?
अब सवाल यह भी उठता है कि नीतीश कुमार एनडीए में लौटते हैं तो उसका इन नेताओं से क्या कनेक्शन? इनके भविष्य को लेकर चर्चा क्यों हो रही है. दरअसल, नीतीश कुमार की इमेज ऐसे नेता की है जो चीजों को अपने हिसाब से हैंडल करता है. नीतीश जिस किसी भी गठबंधन में रहें, प्रभाव इतना मजबूत रखते हैं कि चीजें उनके हिसाब से ही होती हैं.
जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी है और एनडीए रहा हो या महागठबंधन, सरकार का नेतृत्व नीतीश के ही हाथ होना भी उनकी सुप्रीमेसी को अपने आप ही बताता है. ऐसे में अगर नीतीश एनडीए में वापस लौटते हैं तो घटक दलों के नेताओं के साथ उनकी ट्यूनिंग काफी हद तक गठबंधन की तस्वीर प्रभावित कर सकती है.