फलों के राजा आम का स्वाद अधिकतर लोगों को पसंद होता है और अगर दशहरी आम मिल जाए तो बात ही अलग है. इस आम की उत्पत्ति का केंद्र काकोरी का एक गांव बताया जाता है. काकोरी के इस गांव का नाम दशहरी है. इसी गांव में सबसे पहले एक नए प्रजाति के आम का पेड़ लगाया गया था. इस पेड़ पर जब पहली बार फल आए तो इसका स्वाद सभी को पसंद आया. फिर इसे वहां से दूसरे जगहों पर भी भेजा गया. यहीं से इस आम का नाम दशहरी बताने का सिलसिला शुरू हो गया.
200 साल पुराना पेड़
दशहरी गांव के रहने वाले जयदीप यादव बताते हैं कि दशहरी आम का जो पहला पेड़ लगाया गया था वह 200 साल पुराना है. यह अभी भी इस गांव में मौजूद है. उन्होंने अपने दादा जी से इस पेड़ से जुड़े कई किस्से सुने हैं. जयदीप बताते हैं कि दशहरी आम के इस पेड़ में एक बार फिर फल लगने शुरू हो गए हैं. हालांकि, अभी फल छोटे हैं और आने वाले समय में यह जल्दी बड़े हो जाएंगे.
इस पेड़ को देखने आते हैं लोग
जयदीप ने जानकारी दी कि दूरदराज से लोग इस पेड़ को देखने आते हैं. इनमें विदेशी भी शामिल हैं. वह इस दशहरी पेड़ के साथ फोटो भी खिंचवाते हैं. इसी पेड़ के आम की गुठली से अन्य जगह पौधारोपण किया गया. ऐसे करते हुए तमाम जगहों पर दशहरी आम के पेड़ों का फैलाव किया गया. इसलिए इस पेड़ को “मदर ऑफ ट्री” कहा जाता है.
ऐसे की जाती है इस आम के पेड़ की सुरक्षा
दशहरी आम के पेड़ का संरक्षण गांव के ही समीर जैदी करते हैं. आम को किसी तरीके की हानि ना पहुंचे इसके लिए चारों तरफ से तारों का घेराव किया गया है. इससे बाग में जानवर भी प्रवेश नहीं कर पाते हैं. पेड़ों के इर्द-गिर्द जाल लगाए गए हैं, ताकि चिड़िया भी इस फल को नुकसान नहीं पहुंचा पाए. समय-समय पर पेड़ों पर कीटनाशक का छिड़काव भी किया जाता है ताकि कीड़े ना लग सकें.
ऐतिहासिक वृक्ष की मिली संज्ञा
बता दें कि लखनऊ के मलिहाबाद, काकोरी आम उत्पादन के लिए मशहूर हैं. यहां पर जहां तक नजर दौड़ाएंगे दूर-दूर तक आम के बाग ही नजर आएंगे. वहीं, काकोरी के दशहरी गांव में मौजूद सबसे पुराने दशहरी आम के पेड़ को सरकार ने भी ऐतिहासिक वृक्ष का दर्जा दिया है.