गुरु पूर्णिमा मनाए जाने के हर संप्रदाय में कई मत है. दूसरा वह योग साधना और योग विद्या से संबंधित है. इसके अनुसार गुरु पूर्णिमा को ही शिवजी आदिगुरु यानी धरती के प्रथम गुरु बने. आज से करीब 15000 वर्ष पहले हिमालय में एक योगी का उदय हुआ. उनके बारे में किसी को कुछ नहीं पता था. मगर यह योगी कोई और नहीं, स्वयं भगवान शिव थे. साधारण दिखने वाले योगी का तेज और व्यक्तित्व असाधारण था.
उन्हें देखने से जीवन का कोई लक्षण नहीं था. मगर कभी-कभी आंखों से परमानंद के आंसू जरूर बहा करते थे. लोगों को कुछ कारण समझ नहीं आता था. थककर वह धीरे-धीरे जाने लगे, मगर सात दृढ़ निश्चयी लोग रुके रहे. जब शिव ने आंखें खोली तो उन सात लोगों ने जानना चाहा. उन्हें क्या हुआ था और स्वयं भी वह परमानंद अनुभव करना चाहा, लेकिन शिव ने उनकी बात पर ध्यान नहीं देते हुए कहा कि अभी इस अनुभव के लिए परिपक्व नहीं है.
उन्होंने उन सात लोगों को साधना के तरीके बताए और फिर ध्यान मग्न हो गए. इस तरह कई दिन और वर्ष बीत गए, लेकिन शिवजी ने उन सातों पर ध्यान नहीं दिया. 84 वर्ष की साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति में दक्षिणायन के समय योगी रुपी शिव ने उन्हें देखा तो पाया कि अब वह सातों व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति के लिए तैयार है. ऐसे में उन्हें ज्ञान देने में अब देरी नहीं हो सकती थी. अगले पूर्णिमा के दिन शिव ने इनका गुरु बनना स्वीकार किया. इसके बाद शिवजी दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गए और इन सातों व्यक्तियों को योग विज्ञान प्रदान की, यही सातों व्यक्ति आगे चलकर सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध हुए. यही कारण है कि भगवान शिव को आदियोगी या आदिगुरु भी कहा जाता है.
बौद्ध धर्म
ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने तो उन्हें पांच साथी मिले. बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन इन पांचों को सारनाथ में पहला उपदेश दिया, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से भी जाना गया. यही कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का यह पर्व मनाया जाता है.
जैन धर्म
जैन धर्म में कहा जाता है कि 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने गांधार के इंद्रभुती गौतम को पहला शिष्य बनाया था. इस कारण उन्हें त्रिनोक गुहा भी कहा गया. इसका अर्थ होता है प्रथम गुरु. तभी से जैन इसे त्रिनोक गुहा पूर्णिमा भी कहते हैं.
खबर इनपुट एजेंसी से