सोनभद्र. जिला मुख्यालय से महज दो किमी दूर राबर्ट्सगंज-घोरावल मार्ग स्थित बरैला महादेव की महिमा अपरंपार है. राजा विक्रमादित्य के काल में स्थापित शिवलिंग के दर्शन-पूजन से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. इसी वजह से इस शिवलिंग का बरैला (वर देने वाला) महादेव नामकरण ही कर दिया. एकमुखी शिवलिंग होने के कारण इसका विशेष महत्व बताया जाता है. यहां का शिलालेख भी अबूझ पहेली बना हुआ है.
शिलालेख पर खुदे शब्द अब भी है अबूझ पहेली
पुरातत्व विभाग के लोग भी इस शिलालेख पर अंकित संवत 700 से ज्यादा कुछ नहीं पढ़ पाए हैं. मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य ने स्वयं यहां आकर पूजा-अर्चना की थी. वहीं अज्ञातवास के समय गुप्तेश्वर महादेव जाते समय पांडव भी यहां कुछ देर के लिए ठहरे थे और उन्होंने पूजा-अर्चना कर भगवान शिव से दुखों को दूर करने की कामना की थी. मौजूदा समय भी मंदिर में स्थापित शिवलिंग कब का है और किसने स्थापित किया था, इसको लेकर कोई विशेष जानकारी नहीं है. पांच साल पूर्व लखनऊ से आई पुरातत्व विभाग की टीम ने भी इस शिवलिंग और यहां जारी पूजा-अर्चना को काफी प्राचीन माना है. पीढिय़ों से भगवान भोलेनाथ की पूजा करते आ रहे पुजारी परिवार के देवनाथ (मुख्य पुजारी) बताते हैं कि पुरातत्व विभाग के लोगों ने शिलालेख पर खुदे शब्दों का विश्लेषण कर इस मंदिर का इतिहास विक्रम संवत 700 के समय का या इससे भी पुराना माना था.
एकमुखी स्वरूप के कारण रूद्राभिषेक का है विशेष महत्व
मुख्य पुजारी देवनाथ ने बताया कि पुरातत्व विभाग की टीम पूरा लेख वह भी नहीं पढ़ पाए थे. दो साल पूर्व कुछ भक्तों ने ही मौजूदा मंदिर का निर्माण कराया था. वहीं बड़हर राजपरिवार ने 300 वर्ष पूर्व मंदिर के पश्चिमी तरफ स्थित मां शीतला की मूर्ति स्थापित की थी. मान्यता है कि जिस किसी युवक या युवती के विवाह में बाधा आ रही है, वह इस मंदिर में दर्शन-पूजन करे तो उसकी बाधा दूर हो जाती है. वहीं संतान से वंचित, रोग एवं अन्य परेशानियों से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी बरैला महादेव का दर्शन काफी लाभप्रद माना जाता है. एकमुखी स्वरूप होने के कारण यहां रूद्राभिषेक का विशेष महत्व माना जाता है. इस कारण विशेष अवसरों पर यहां रूद्राभिषेक के लिए लोगों की उत्सुकता देखते ही बनती है.