अनिल तिवारी
नई दिल्ली : परीक्षाओं में नकल के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश एक बार फिर नकल के आरोप में घिर गया है। आरओ/ एसआरओ की परीक्षा हो या फिर पुलिस भर्ती परीक्षा। दोनों ही मामलों में पेपर लीक और नकल के गंभीर आरोप सामने आये हैं।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित होनेवाली आरओ/एआरओ परीक्षा का पेपर व्यापक स्तर पर लीक होने का आरोप लगाते हुए भारी संख्या में छात्र-छात्राएं उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से दोबारा परीक्षा कराने की मांग कर रहे हैं। तो वहीं पुलिस भर्ती में भी प्रदेश के कई स्थानों पर पेपर लीक होने तथा परीक्षा में गड़बड़ी करने के मामले प्रकाश में आए हैं। खबर है कि पुलिस भर्ती परीक्षा भी अब दोबारा आयोजित की जाएगी।
हालांकि वह दिन दूर नहीं जब नकल माफिया और पेपर लीक गिरोह पर कठोर कार्रवाई की जा सकेगी। अब तक ऐसे किसी कानून का अभाव था लेकिन अब केन्द्र की मोदी सरकार ने सरकारी भर्ती परीक्षा में पेपर लीक और फर्जी वेबसाइटों जैसी अन्य गड़बड़ियों पर लगाम लगाने विषयक लोकसभा में ‘लोक परीक्षा (अनुचित साधन रोकथाम) विधेयक 2024 पास कर दिया है।
अब अगर राज्य सरकारें ईमानदारी से नकल माफिया के खिलाफ नकेल कसेंगी तो उनके पास मजबूत कानूनी आधार है जिसके जरिए वो नकल माफियाओं पर नकेल डाल सकती हैं। हालांकि शिक्षा मुख्य रूप से राज्य सूची का विषय है लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने आगे बढ़कर पहल की तथा विधेयक पेश करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों के पास परीक्षाओं में पेपर लीक होने या नकल करने जैसे अपराधों से निपटने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है, इसलिए जरूरी है कि परीक्षा की प्रणाली की कमजोरी का फायदा उठाने वालों की पहचान की जाए और उनसे सख्ती से निपटा जाए।
पिछले कुछ वर्षों से भारत के कुछ राज्यों में पेपर लीक की घटनाओं में व्यापक बढ़ोतरी देखने को मिलती रही है। ऐसी घटनाओं से न केवल परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता में कमी हुई है बल्कि छात्रों के भविष्य पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
मालूम हो कि बहुत दिनों बाद उत्तर प्रदेश में आरओ एआरओ के पद की रिक्तियों के लिए आयोग द्वारा भर्ती परीक्षा आयोजित की गई। इस परीक्षा के लिए 10 लाख 69 हजार 725 उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। परीक्षा के दौरान यह बात सामने आई कि परीक्षा का पेपर पहले ही लीक हो गया। इसी तरह पुलिस भर्ती परीक्षा में भी प्रदेश के 22 स्थानों पर गड़बड़ियां पकड़ी गई। राज्य पुलिस ने कई स्थानों पर लोगों की धर पकड़ भी की।
पेपर लीक की बढ़ती घटनाएं वर्षों से समाज की चिंता का मुख्य विषय रहे हैं। ऐसे मामले किसी भी राष्ट्र की शिक्षा और शिक्षा नीति की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान खड़ा करते हैं। पेपर लीक होने से शिक्षा क्षेत्र की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचती है, वहीं लोगों के मन में शिक्षा प्रणाली के प्रति भरोसे में कमी आती है। शिक्षा जगत का यह संकट मूलतः विद्यार्थियों के भविष्य से जुड़ा है। विधेयक के उद्देश्य में लिखा भी है कि सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार के कारण देरी होती है और परीक्षाएं रद्द हो जाती हैं, जिससे लाखों युवाओं की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
विगत कुछ वर्षों में राज्यों में पेपर लीक की बढ़ती घटनाओं की वजह से अनेक परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी। पिछले वर्ष राजस्थान में एक दर्जन से ज्यादा प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक होने के बाद शिक्षक भर्ती परीक्षा को रद्द कर दिया गया था। हरियाणा में ग्रुप डी के पदों के लिए सामान्य पात्रता परीक्षा, गुजरात में कनिष्ठ लेखाकार की भर्ती परीक्षा और बिहार में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा रद्द करनी पड़ी। ऐसे ही राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश में पेपर लीक होने के कारण अनेक परीक्षाएं रद्द कर दोबारा करनी पड़ी।
झारखंड के बारे में प्रतियोगी छात्रों की राय है कि वहां कोई भी परीक्षा एक बार में संपन्न नहीं होती। कई बार तो खुद राज्य सरकार की मशीनरी परीक्षा के लिए रुकावट डालने के लिए आगे आ जाती है। कई राज्यों ने पेपर लीक करने, परीक्षाओं में गड़बड़ी करने आदि पर प्रतिबंध लगाने के लिए अपने कानून पहले से ही बनाए हुए हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ अभी तक कोई ठोस प्रभावी कानून नहीं थे।
राजस्थान में पेपर लीक माफियाओं पर लगाम लगाने के लिए नकल विरोधी कानून पहले से बना हुआ था, जिसमें पहले 10 साल की सजा का प्रावधान था। बाद में बेरोजगार युवाओं की मांग को ध्यान में रखते हुए इसमें संशोधन करते हुए आजीवन कारावास का प्रावधान कर दिया गया। गुजरात राज्य में भी इस समस्या से निपटने के लिए अपने कानून बने हुए हैं, परंतु कठोर एवं प्रभावी कानून के अभाव में पेपर लीक होने की घटनाएं रुकने की बजाय बढ़ती ही जा रही थी।
ऐसे में अधिकतर राज्य चाहते थे कि केंद्र सरकार एक सख्त कानून लेकर आए ताकि सभी राज्य उसके दायरे में हों और पेपर लीक की घटनाओं को अंजाम देने वाले माफियाओं पर अंकुश लग सके। उम्मीद की गई है कि आदर्श मसौदा मार्गदर्शन के रूप में कार्य करेगा। इसीलिए कानून में ढेर सारे कठोर प्रावधान शामिल किए गए। कानून में असली परीक्षार्थी के स्थान पर फर्जी अभ्यर्थी परीक्षा देने का दोषी पाया गया तो 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान है। अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों को कम से कम 3 साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। साथ में 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
किसी गड़बड़ी में यदि परीक्षा केंद्र की भूमिका पाई जाती है तो उस केंद्र को अगले 4 साल तक के लिए कोई भी सरकारी परीक्षा कराने के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। परीक्षा में गड़बड़ी करने में मिलीभगत पाए जाने पर परीक्षा एजेंसी पर भी एक करोड़ तक का जुर्माना लगेगा। पेपर लीक और नकल के मामले में कोई भी संस्थान शामिल होता है तो उससे परीक्षा का पूरा खर्च वसूला जाएगा, उसकी संपत्ति भी जब्त की जाएगी। यदि सरकारी अधिकारी इसमें शामिल पाए जाते हैं तो उन्हें भी अपराधी माना जाएगा।
कानून के तहत बिना किसी वारंट के संदिग्ध को गिरफ्तार करने का अधिकार है। गड़बड़ी के आरोपी अधिकारियों के साथ कड़ाई बरती जाएगी तथा उनके द्वारा कारित अपराधों को समझौते से नहीं सुलझाया जा सकेगा। बिल में बताए गए किसी भी अपराध की जांच पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा। परीक्षार्थियों को इस कानून से अलग रखा गया है, वह इसके दायरे में नहीं आएंगे और ना ही किसी अभ्यर्थी का उत्पीड़न होगा।
इस कानून के तहत उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी जो परीक्षा की पारदर्शी प्रणाली के साथ छेड़छाड़ करेंगे। कानून का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में पारदर्शिता निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है और युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार और वास्तविक प्रयासों को उचित पुरस्कार मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। पेपर लीक के मामलों से उच्चतम शिक्षा संस्थानों की प्रतिष्ठा को जो क्षति पहुंची है वह फिर से स्थापित होगी। योग्यता, प्रतिभा और परिश्रम के आधार पर छात्रों को विषय पढ़ने तथा रोजगार का विकल्प चुनने का अवसर मिलेगा।
सरकार ने अपना काम तो कर दिया, अब नागरिकों को इस दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि कुछ राज्यों में नकल एक उद्योग की तरह फलता-फूलता रहा है। खासकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में तो बोर्ड परीक्षाओं के दौरान नकल माफियाओं द्वारा बाकायदा रेट तय किए जाते रहे हैं। इसलिए भी कानूनी पहलू से इतर नैतिक रूप से जागृत होकर हमें इसे अपने भीतर लागू करना होगा तभी यह कानून ज्यादा सार्थक, असरदार और स्थाई होगा। तभी परीक्षाओं में होने वाली गड़बड़ियों पर अंकुश लग पाएगा।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।