शुभ देपावत चारण
वैसे तो कोरोना संकट में सभी काम-धंधों पर विपरीत असर पड़ा है और दुनिया भर की सरकारें अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार स्टेम्युल पैकेज भी दे रही है लेकिन एक समाज जो वास्तव में ही सबार्ल्टन कैटेगरी में आता है वो है सेक्स वर्कर का समाज जिस पर किसी भी देश की सरकारों का ध्यान नही है।
दुनियाभर के जिन विकसित देशों में प्रॉस्टिट्यूशन लीगल है वहां की सरकारें भी सेक्स वर्कर को लेकर संवेदनशील नही है। उनकी आर्थिक सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नही उठाये गए हैं लिहाजा वो जान जोखिम में डालकर रात को सड़कों पर उतर रही है क्योंकि उनकी बचत खत्म हो गई है और उनके सामने रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है।
भारत जैसे देश में तो स्थिति और भयावह है। भारत में अनऑरगोनाइज्ड रूप से करोड़ो सेक्स वर्कर है जिनके सामने भी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। अब दुविधा ये है कि भारत मे प्रॉस्टिट्यूशन गैर-कानूनी है l तो भारत सरकार उनके लिए आधिकारिक रूप से किसी स्टेम्युल पैकेज की घोषणा भी नही कर सकती लेकिन एक समाज के तौर पर हम इस सच्चाई से आंख नही मूंद सकते।
अगर ये करोड़ो सेक्स वर्कर किसी दूसरे कार्य की तरफ विस्थापित होती है तो शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, तकनीकी कौशल का अभाव, उनका पेशेवर बैकग्राउण्ड, हमारे समाज का ढांचा कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो उनके सामने पहाड़ की तरह खड़े हो जाएंगे और उनसे सरकारें भी नही निपट पाएगी।
लॉकडाउन खुलने के बाद एक जिम्मेदार व संवेदनशील समाज के नाते हम सबकी ये जिम्मेदारी है कि ऐसी सैक्स वर्कर को दूसरा कोई बिजनेस या जॉब करने के लिए उनकी यथासंभव मदद करे वरना भविष्य में हाशिये पर खिसके हुए एक वर्ग की दुर्दशा यहां से साफ-साफ दिखाई दे रही है।