प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में 23वां वित्तीय स्थिरता प्रतिवेदन जारी किया है। इस प्रतिवेदन में बताया गया है कि कोरोना महामारी के द्वितीय दौर के बाद से चूंकि कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम विश्व के लगभग सभी देशों में अब गति पकड़ता दिख रहा है एवं साथ ही विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों के कारण कोरोना महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर अब आर्थिक गतिविधियों में कुछ सुधार देखने में आ रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के दूसरे दौर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ नुकसान जरूर पहुंचाया है।
भारत में केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय क्षेत्र में लागू किए गए कई सुधार कार्यक्रमों के कारण बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार दृष्टिगोचर है। परंतु, कुछ बैकों में चूंकि आगे आने वाले समय में गैर निष्पादनकारी आस्तियों में वृद्धि हो सकती है अतः भारतीय बैकों को सावधान रहने की जरूरत है एवं इन बैकों को अतिरिक्त पूंजी एवं तरलता की आवश्यकता पड़ सकती है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी पिछले वित्तीय स्थिरता प्रतिवेदन में हालांकि भारतीय बैकों, विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैकों, में गैर निष्पादनकारी आस्तियों में वृद्धि की भविष्यवाणी की गई थी और बताया गया था कि यह अनुपात सितम्बर 2021 तक 12 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा। परंतु, वर्तमान परिस्तिथियों को देखते हुए अब यह कहा जा रहा है कि गैर निष्पादनकारी आस्तियों का अनुपात 9 प्रतिशत के आसपास बना रह सकता है। सख्त तनाव टेस्टिंग परिदृश्य के अंतर्गत भी यह 11 प्रतिशत तक ही जा सकता है। अर्थात, पिछले वित्तीय प्रतिवेदन में की गई 12 प्रतिशत की शंका से तो यह कम ही है। इस प्रकार बैकिंग क्षेत्र को तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में बने रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है।
हालांकि यह शंका व्यक्त की गई है कि आगे आने वाले समय में खुदरा व्यापारी एवं एमएसएमई क्षेत्रों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों की संख्या बढ़ सकती है। अतः इन क्षेत्रों की ओर भारतीय बैंकों को विशेष ध्यान देने की जरूरत जताई गई है।
दूसरा क्षेत्र जिसमें भारतीय बैंकों की स्थिति में लगातार सुधार दृष्टिगोचर हो रहा है, वह है पूंजी पर्याप्तता अनुपात। केंद्र सरकार द्वारा प्रतिवर्ष सरकारी क्षेत्र के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराई जा रही है जिसके कारण भारतीय बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात में भी सुधार हो रहा है। हालांकि इन बैंकों द्वारा भी अपनी कार्यक्षमता एवं कार्य करने की तकनीक में बहुत सुधार किया गया है। नई तकनीकी के अपनाने से इन बैंकों की ग्राहक सेवा में, विशेष रूप से कोरोना महामारी के दौर में, सुधार पाया गया है।
भारतीय बैकों के व्यवसाय में कुल मिलकर सुधार तो हुआ है परंतु कोरोना महामारी के चलते ऋण खातों पर कुछ खतरा जरूर मंडरा रहा है। देश का आर्थिक विकास विपरीत रूप से प्रभावित हुआ है। जिसका असर आगे आने वाले समय में बैकों पर पड़ सकता है। कोरोना महामारी के दौर में चूंकि वित्तीय उत्पादों की मांग कम रही इससे सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम हुई है। सकल पूंजी निर्माण एवं निजी उपभोग में वर्ष 2020-21 के दौरान कमी आई है जिससे कारण भी देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कमी आई है। इस दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने मिलकर कई प्रयास किए हैं ताकि देश के आर्थिक तंत्र में पर्याप्त तरलता बनी रहे। उद्योग, कृषि एमएसएमई एवं व्यक्तिगत क्षेत्रों को कम ब्याज की दर एवं आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से कई नए उत्पाद भी जारी किए गए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैकों के ऊपर इस प्रकार का दबाव बनाया जा रहा है कि वे रिवर्स रेपो खिड़की का कम से कम उपयोग करें एवं इसके स्थान पर अधिक से अधिक ऋणों को स्वीकृत करें। रिवर्स रेपो खिड़की को बिल्कुल ही अनाकर्षक बना दिया गया है। अब चूंकि बैंकों को रिवर्स रेपो खिड़की के उपयोग से लाभ नहीं हो पा रहा है अतः भारतीय बैंक अधिक से अधिक ऋण प्रदान करने की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस प्रकार देश में ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। यह प्रतिशत भारत में अन्य विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। इससे हो सकता है कि आगे आने वाले समय में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत कुछ बढ़े लेकिन आर्थिक गतिविधियों की गति तेज करने के लिए यह कीमत तो चुकानी ही पड़ सकती है।
आज आर्थिक स्तर पर देश दो विशेष परेशानियों से जूझ रहा है। एक तो कोरोना महामारी के चलते देश में राजस्व घाटा बढ़ गया है जो 9.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है जबकि इसे आदर्श स्थिति, अर्थात 3 प्रतिशत तक, नीचे लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, निकट भविष्य में यह कार्य होता दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरे, निकट भविष्य में भारतीय बैंकों में बढ़ने वाली गैर निष्पादनकारी आस्तियों की दर की सम्भावना। हालांकि केंद्र सरकार के प्रयासों से बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात संतोषजनक स्तर पर बना हुआ है बल्कि इसमें लगातार कुछ कुछ सुधार ही हो रहा है। आगे आने समय में पूंजी पर्याप्तता अनुपात, बढ़ते गैर निष्पादनकारी आस्तियों को सम्हालने में सहायक सिद्ध होगा। इस प्रकार, कुल मिलाकर वर्तमान समय में तो बैकों की वित्तीय स्थिति काफी हद्द तक संतोषजनक ही है।
एक बात और देखी जा रही है कि भारतीय बैंकें मौका मिलते ही केंद्र सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की ओर लालायित रहती हैं, इससे इनकी ऋण प्रदान करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जबकि, भारतीय बैंकों को देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उद्योग, एमएसएमई, कृषि एवं निजी क्षेत्र को ऋण प्रदान करने के लिए आगे आना चाहिए। देश में “सुस्त बैकिंग” चलायी जा रही है जिसके अंतर्गत सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक निवेश हो रहा है जो कि देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे ले जाने में रुकावट बन सकता है। उत्पादन करने वाले क्षेत्रों एवं निजी क्षेत्र को बैकों से अधिक से अधिक रकम लेकर आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए ताकि देश में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हों सकें एवं देश की आर्थिक गतिविधियों को गति मिल सके। इससे देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में भी आसानी होगी। उत्पादन करने वाली इकाईयों को अधिक से अधिक वित्त उपलब्ध कराया जाना चाहिए। हाल ही के समय में भारतीय बैंकों के उद्योग जगत को प्रदान की जाने वाली राशि में कमी देखी गई है। एमएसएमई क्षेत्र एवं कृषि क्षेत्र को तो वित्त की अत्यधिक आवश्यकता है। देश में ग्रामीण इलाकों में आधारभूत संरचनाओं के अभाव में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की कृषि उपज खराब हो जाती है। इतनी बड़ी बर्बादी को बचाने के लिए देश में इन क्षेत्रों में निवेश किए जाने की आज बहुत आवश्यकता है।
ये लेखक के अपने निजी विचार है l