नई दिल्ली। वर्ल्ड टेलीकॉम सिस्टम के सबसे अहम हिस्से एसएस-7 (Signaling System 7) तकनीक में सेंधमारी की बात सच निकली है। अमेरिका की साइबर सिक्योरिटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर सिक्योरिटी एजेंसी के एक अफसर केविन ब्रिग्स ने नियामक संघीय संचार आयोग (Federal Communications Commission) के सामने इस बात को स्वीकारा है।
टेलीकॉम सिस्टम की रीढ़ की हड्डी एसएस-7
दुनिया भर में बात करने और एसएमएस के लिए एसएस-7 (Signaling System 7 ) तकनीक का इस्तेमाल होता है। एक तरह से यह तकनीक टेलीकॉम सिस्टम की रीढ़ की हड्डी है। सामने आया कि अमेरिका में कई बार इस तकनीक का इस्तेमाल जासूसी करने के लिए हुआ है। इस तकनीक का इस्तेमाल लोकेशन डेटा, वॉइस कॉल और टेक्स्ट मैसेज की निगरानी जैसे कामों में हुआ।
चुनाव के दौरान मतदाता भी हुए प्रभावित
केविन ब्रिग्स ने जानकारी दी कि इस तकनीक के इस्तेमाल के साथ पिछले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान टेक्स्ट मैसेज के जरिए कई अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित भी किया गया।
वे कहते हैं कि यह असल में हकीकत में घट रही घटनाओं का एक छोटा-सा उदाहरण है। एसएस-7 तकनीक का इस्तेमाल एक बड़े लेवल पर हो रहा है। एसएस-7 तकनीक के जरिए हैकर फोन का डेटा खुद को फॉर्वर्ड कर सकते हैं। इतना ही नहीं, किसी स्थिति में हैकर फोन के करीब है तो फोन का डेटा भी साफ किया जा सकता है।
वॉट्सऐप जैसे ऐप्स भी नहीं सुरक्षित
रिपोर्ट्स की मानें तो इस तकनीक के साथ हैकर स्पाईवेयर के जरिए एनक्रिप्टेड ऐप्स को भी कंट्रोल कर सकते हैं। हैकर यूजर की स्क्रीन देख सकते हैं। इतना ही नहीं, तकनीक के जरिए लोकेशन ट्रैकिंग भी की जा सकती है।
सिग्नलिंग सिस्टम 7 क्या है?
सिग्नलिंग सिस्टम 7 एक अंतरराष्ट्रीय टेलीकम्युनिकेशन प्रोटोकॉल स्टैंडर्ड है। यह बताता है कि सार्वजनिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क (PSTN) में नेटवर्क एलिमेंट जानकारियों को कैसे एक्सचेंज करते हैं और सिग्नल को कैसे कंट्रोल करते हैं। SS7 नेटवर्क में नोड्स को सिग्नलिंग पॉइंट कहा जाता है।
1970 के दशक में दूरसंचार कंपनियों को कॉल मैनेज करने के लिए इस प्रोटोकॉल को विकसित किया गया था। हालांकि, आज के समय में इस तकनीक के हजारों एंट्री पॉइंट हैं।
यह ऐसे कई देशों द्वारा कंट्रोल किया जाता है, जो जासूसी और आतंकवाद का समर्थन करते हैं।