नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन और तेजी से पिघलती बर्फ पृथ्वी की गतिविधियों को भी प्रभावित कर रही है। ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ताओं के हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन और ग्रह की इंटरनल डायनेमिक्स की वजह से पृथ्वी की स्पिन धुरी बदल रही है। शोधकर्ताओं ने ध्रुवीय गति को बेहतर ढंग से समझने के लिए एआई-मॉडल का उपयोग किया है, जो क्रस्ट के सापेक्ष पृथ्वी की रोटेशन धुरी की रफ्तार है।
डेक्कन हेराल्डॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, ईटीएच ज्यूरिख में स्पेस जियोडेसी के प्रोफेसर बेनेडिक्ट सोजा ने बताया है कि इंसानों की गतिविधियों का हमारे ग्रह पर काफी अधिक प्रभाव पड़ता है। हाल के दो अध्ययनों में पृथ्वी की घूमने की रफ्तार, बर्फ की परतों के पिघलने और दिन-रात की अवधि के बीच संबंध की जांच की गई है। पृथ्वी की सतह पर बर्फ पिघलने की वजह से धरती का रोटेशन धीमा हो जाता है और दिन बढ़ जाता है। शोध से पता चला है कि धीमा रोटेशन दिनों को सामान्य 86,4000 सेकंड की तुलना में कुछ मिलीसेकंड तक बढ़ा देता है।
जलवायु परिवर्तन के चलते पृथ्वी की धुरी हिल रही
पृथ्वी का घूर्णन धीमा होने की वजह ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने से द्रव्यमान भूमध्य रेखा की ओर पुनर्वितरित हो जाता है। यहां ध्रुवों से भूमध्य रेखा तक आने वाले पानी के कारण पृथ्वी का संतुलन गड़बड़ा जाता है। बेनेडिक्ट सोजा का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की घूर्णन धुरी हिल रही है। कोणीय गति के सरंक्षण से मिलने वाली प्रतिक्रिया भी पृथ्वी के कोर की गतिशीलता को बदल रही है।
सोजा ने कहा कि भले ही पृथ्वी का घूर्णन केवल धीरे-धीरे बदल रहा हो लेकिन अंतरिक्ष में नेविगेट करते समय इस प्रभाव को ध्यान में रखा जाना चाहिए। थोड़ा से भी विचलन में सैकड़ों मीटर की भारी दूरी शामिल होती है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि ना केवल बर्फ के पिघलने से पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन देखा गया है, बल्कि इस घटना ने घूर्णन की धुरी को भी बदल दिया है। इसका मतलब है कि वे बिंदु जहां घूर्णन की धुरी वास्तव में पृथ्वी की सतह से मिलती है।