नई दिल्ली। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अवैध कब्जा हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के विरोध में हजारों लोगों का विरोध जारी है। विरोध के बीच करीब 50 हजार लोगों के लिए आज का दिन अहम था। बनभूलपुरा और गफूर बस्ती में रेलवे की जमीन से अवैध कब्जा हटाने को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर स्टे लगा दिया है, जिसमें रेलवे को सात दिन में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 7 दिन में अतिक्रमण हटाने का फैसला सही नहीं है।। ट्विटर पर भी हल्द्वानी ट्रेंड होने लगा है। तो चलिए आपको अपनी इस रिपोर्ट में बताते हैं कि आखिर ये पूरा मामला है क्या।
जानें पूरा मामला
दरअसल, रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रेलवे ने सार्वजनिक नोटिस जारी कर दिया। इसमें रेलवे स्टेशन से 2.19 किमी दूर तक अतिक्रमण हटाया जाना है। खुद अतिक्रमण हटाने के लिए सात दिन की मोहलत दी गई थी। जारी नोटिस में कहा गया कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन 82.900 किमी से 80.710 किमी के बीच रेलवे की भूमि पर सभी अनाधिकृत कब्जों को तोड़ा जाएगा। सात दिन के अंदर अतिक्रमणकारी खुद अपना कब्जा हटा लें, अन्यथा हाईकोर्ट के आदेशानुसार अतिक्रमण तोड़ दिया जाएगा। उसका खर्च भी अतिक्रमणकारियों से वसूला जाएगा। अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए सोमवार 2 जनवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में हल्द्वानी के शराफत खान समेत 11 लोगों की याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद की ओर से दाखिल की गई है।
करीब 50 साल पहले शुरू हुआ खेल
बताया जाता है कि बनभूलपुरा और गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर करीब 50 साल पहले अतिक्रमण शुरू हुआ था। अतिक्रमण अब रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर फैल गया है। स्थानीय लोगों का दावा है कि वो 50 साल से भी अधिक समय से यहां रह रहे हैं। उन्हें वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल आदि सभी सुविधाएं भी सरकारों ने ही दी हैं। लोग सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। पीएम आवास योजना से भी लोग लाभान्वित हो चुके हैं। दावा है कि वो नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। इनमें मुस्लिम आबादी की बहुलता है।
2016 में आरपीएफ ने दर्ज किया मुकदमा
बता दें कि, नैनीताल हाईकोर्ट की सख्ती के बाद 2016 में आरपीएफ ने अतिक्रमण का मुकदमा दर्ज किया। लेकिन तब तक करीब 50 हजार लोग रेलवे की जमीन पर आबाद हो चुके थे। नैनीताल हाईकोर्ट ने नवंबर 2016 में रेलवे को 10 सप्ताह में अतिक्रमण हटाने के सख्त आदेश दिए। इसके बाद भी रेलवे, आरपीएफ और प्रशासन नरमी दिखाता रहा। रेलवे का दावा है कि उसकी 78 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है। रेलवे की जमीन पर 4365 कच्चे-पक्के मकान बने हैं।
अतिक्रमणकारी नहीं दिखा सके ठोस सबूत
2016 में नैनीताल हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने का आदेश तो दिया लेकिन इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अतिक्रमणकारियों को व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी करने और उनकी आपत्तियों को तीन महीने में निस्तारित करने का आदेश रेलवे को देते हुए मामले को वापस हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए भेज दिया। इसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे को 31 मार्च 2020 तक उनके समक्ष दायर वादों को निस्तारित करने का आदेश दिया। रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की रेलवे प्राधिकरण में सुनवाई हुई। जिसमें 4356 वादों का निस्तारण हो चुका है। अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं दिखा पाए।
शाहीन बाग पैटर्न पर विरोध
नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद अतिक्रमणकारियों की तरफ से दिल्ली के शाहीन बाग वाला पैटर्न देखने को मिल रहा है। अतिक्रमण की जद में आए बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो को बेघर ना करने की सरकार से मांग की है। महिलाएं ठंड के मौसम में बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं और कार्रवाई को गलत बता रही हैं। कुछ एक्टिविस्टों का एक धड़ा भी इस कार्रवाई को समुदाय विशेष का उत्पीड़न बताकर लोगों को भड़काने में लगा है।
सरकार नहीं है पार्टी
मामले को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि सभी को न्यायालय पर विश्वास रखना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा, “न्यायालय का जो भी फैसला आएगा। सरकार उसी हिसाब से काम करेगी। ये न्यायालय और रेलवे के बीच की बात है, राज्य सरकार इसमें कोई पार्टी नहीं है। उच्चतम न्यायालय का जो भी निर्णय आएगा, राज्य सरकार उस पर काम करेगी।”
जारी है सियासत
उत्तराखंड के पूर्व सीएम और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत भी विरोध कर रहे हैं। रावत ने रेलवे भूमि के अतिक्रमण के मामले में कहा कि पुराने समय से रह रहे लोगों का पुनर्वास किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सरकार योजनाबद्ध तरीके से इनका पुनर्वास कर सकती है। वहीं नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि राज्य सरकार ने न्यायालय में अपना पक्ष सही तरह से नहीं रखा है। उन्होंने कहा कि रेलवे जिसको अपनी जमीन बता रहा है, उस जगह पर कई सरकारी स्कूल, फ्री होल्ड जमीन और सरकारी संपत्तियां हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के मन में खोट है और वो किसी भी तरह से पीड़ितों को बेदखल करना चाहती है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ जोरदार हमला बोला है। उनके निशाने पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।