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मध्यप्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर बिखरे हैं प्रकृति, वन्य जीवन, धरोहर और अध्यात्म के चटख रंग

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
26/09/24
in मुख्य खबर, राज्य
मध्यप्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर बिखरे हैं प्रकृति, वन्य जीवन, धरोहर और अध्यात्म के चटख रंग
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लोकेन्द्र सिंहलोकेन्द्र सिंह


भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ पर्यटन के क्षेत्र में अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है।

इस प्रदेश में प्रत्येक श्रेणी के पर्यटकों के लिए कई चुम्बकीय स्थल हैं, जो उन्हें बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं। यह प्रदेश उस बड़े ह्रदय के मेजबान की तरह है, जो किसी भी अतिथि को निराश नहीं करता है।

वैभव की इस भूमि पर पराक्रम की गाथाएं सुनाते और आसमान का मुख चूमते दुर्ग हैं। भारत का जिब्राल्टर ‘ग्वालियर का किला’, महेश्वर में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर का राजमहल, मांडू का जहाज महल, दतिया में सतखंडा महल, रायसेन का दुर्ग, दुर्गावती का मदन महल, जलमग्न रहनेवाला रानी कमलापति का महल और गिन्नौरगढ़ सहित अनेक किले हैं, जो मध्यप्रदेश के स्थापत्य की विविधता का बखान करते हैं। देवों के चरण भी इस धरा पर पड़े हैं। उज्जैन, जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण पढ़े।

चित्रकूट, जहाँ प्रभु श्रीराम माता सीता और भ्राता लखन सहित वनवास में रहे। ओंकारेश्वर, जहाँ आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा ली। मध्यप्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग- महाकाल और ओंकारेश्वर हैं। इसके साथ ही भगवान शिव ने कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को परिवार सहित रहने के लिए चुना है। एक ओर जहाँ द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण प्रतिवर्ष मुरैना में आकर ढ़ाई दिन रहते हैं तो वहीं ओरछा में राजा राम का शासन है। महारानी कुंवर गणेश के पीछे-पीछे श्रीराम अयोध्या से ओरछा तक चले आये थे। ओरछा राजाराम के मंदिर के लिए ही नहीं, अपितु अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

पर्यटन

मध्यप्रदेश अपने वनों के लिए भी प्रसिद्ध है। सतपुड़ा के घने जंगल का तो अद्भुत वर्णन कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता में आता ही है। चम्बल के भरकों से लेकर कटनी, उमरिया और जबलपुर से लगा शाहडार का जंगल भी रोमांचक यात्राओं का ठिकाना है। मेकल पर्वत पर सदानीरा माँ नर्मदा का उद्गम स्थल ही नहीं, अपितु वहां का सघन वन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

पर्यटन

मध्यप्रदेश भारत का इकलौता राज्य है जहाँ सर्वाधिक 12 राष्ट्रीय उद्यान हैं। कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, शिवपुरी, पन्ना और कई अन्य राष्ट्रीय उद्यान लोगों को वन्य जीवन को देखने का दुर्लभ, रोमांचपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं। मध्यप्रदेश सफ़ेद बाघ ‘मोहन’ का ही घर नहीं है, अपितु यह रहस्य और कौतुहल बढ़ानेवाले बालक ‘मोगली’ का भी जन्मस्थान है। सर विलियम हेनरी स्लीमन ने ‘एन एकाउंट ऑफ वाल्वस नरचरिंग चिल्ड्रन इन देयर डेन्स’ शीर्षक से लिखे अपने एक दस्तावेज में उल्लेख किया है कि मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के जंगल (पेंच टाइगर रिजर्व) में मोगली का घर था। वाइल्डलाइफ पर्यटन मध्यप्रदेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाता है।

पर्यटन

वन्य जीवों के संरक्षण के कारण मध्यप्रदेश के पास ‘टाइगर स्टेट’ के साथ ही ‘द लेपर्ड स्टेट’ और ‘घड़ियाल स्टेट’ का दर्जा भी है। बाघ देखने के लिए न केवल देशभर से बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से भी लोग मध्यप्रदेश में आते हैं। भिंड और मुरैना के समीप स्थित चम्बल सफारी तो घडियाल संरक्षण का बड़ा केंद्र बन गई है। कभी डाकुओं के लिए कुख्यात रहे चम्बल के बीहड़ अब डोल्फिन के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत में गंगा के बाद सबसे अधिक डोल्फिन चम्बल सफारी में पाए जाते हैं।

जनजातीय संस्कृति से साक्षात्कार करने का अवसर भी मध्यप्रदेश देता है। मंडला, उमरिया, छिंदवाडा, बालाघाट, झाबुआ और अनूपपुर में कई स्थान हैं, जो पर्यटन के तौर पर विकसित किये गए हैं। कुछ समय के लिए दुनिया की भागम-भाग से दूर प्रकृति की गोद में सुख की अनुभूति करने के लिए तामिया और पातालकोट जैसे स्थान भी हैं, जो आम पर्यटकों से छिपे हुए हैं।

वहीं, मढ़ई, तवा, परसिली, हनुमंतिया जैसे अनेक स्थल भी हैं, जिन्हें पर्यटन गतिविधियों का केंद्र बनाया जा रहा है। पर्यटकों द्वारा खोजे जा रहे नये पर्यटन स्थलों को भी व्यवस्थित करने में मध्यप्रदेश की सरकार अग्रणी है। इंदौर के समीप महू से पातालपानी-कालाकुंड तक चलनेवाली हेरिटेज ट्रेन भी सीटी बजाकर उन पर्यटकों को बुलाती है, जो प्रकृति के नजारों में खोना चाहते हैं।

सब प्रकार के पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध मध्यप्रदेश के ऐसे अनेक स्थान हैं, जो अभी भी पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वर्तमान में यूनेस्को की ‘विश्व विरासत’ की सूची में मध्यप्रदेश के चार स्थल है- बुद्ध का सन्देश देते साँची के स्तूप, प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह भीमबेटिका, सौंदर्य के साक्षी खजुराहो के साथ त्यागमय संस्कृति का प्रतीक ओरछा। ये चारों ही स्थान विदेशी पर्यटकों को लुभाते हैं।

मध्यप्रदेश का कोई कोना ऐसा नहीं है, जो पर्यटन की दृष्टि से मरुस्थल हो। ग्वालियर के आसपास ककनमठ, मितावली, पड़ावली, दतिया, सोनागिर, ओरछा, चंदेरी और शिवपुरी का एक ट्रेवल रूट बनता है। भोपाल के आसपास साँची, विदिशा, ग्यारसपुर, उदयगिरी की गुफाएं, भोजपुर, भीमबेटका, देलावाडी और रायसेन एक पर्यटन स्थल समूह बनता है।

इंदौर को केंद्र मानकर उज्जैन, हनुमंतिया, ओंकारेश्वर, ब्रह्मपुर (बुरहानपुर), महेश्वर और मांडू का एक पर्यटन स्थल का समूह बनता है। वहीं, जबलपुर से भेड़ाघाट, बरगी, बांधवगढ़, अमरकंटक, कान्हा और पेंच जा सकते हैं। खजुराहो के साथ ओरछा, अजयगढ़, चित्रकूट, मुकुंदपुर वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी, संजय राष्ट्रीय उद्यान, मैहर और हीरों के साथ अपने जंगलों के लिए प्रसिद्ध पन्ना के पर्यटन स्थल घुमे जा सकते हैं। उधर, सतपुड़ा की रानी ‘पचमढ़ी’ के साथ मढ़ई, तवा, तामिया और पातालकोट का एक पर्यटन समूह बनता है।

मध्यप्रदेश के पर्यटन, उसकी समृद्ध विरासत और गौरव का दर्शन करना है तो एक बार मध्यप्रदेश गान पढ़/सुन लेना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने इस गीत में मध्यप्रदेश की एक खूबसूरत और गौरवपूर्ण तस्वीर उतार दी है।

मध्यप्रदेश घूमने का सबसे अच्छा समय

वैसे तो मध्यप्रदेश राज्य का वर्ष के किसी भी समय दौरा किया जा सकता है। मध्य भारत में स्थित होने के कारण, मध्य प्रदेश की जलवायु आमतौर पर गर्म और शुष्क होती है। परन्तु अच्छा होगा कि अक्टूबर से मार्च के बीच मध्यप्रदेश घूमने की योजना बनायी जाए। इस दौरान यहाँ का तापमान अनुकूल होता है और बारिश के बाद कई पर्यटन स्थल अपने पूर्ण सौंदर्य के साथ उपस्थित होते हैं। प्रदेश में सर्दियों का मौसम वन्यजीव अभयारण्यों, ऐतिहासिक स्थलों, नदी घाटियों और प्राचीन मंदिरों में जाने के लिए एकदम सही है।


लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं और पर्यटन में विशेष रुचि रखते हैं।

 

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