विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बनारस में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि मंदिर हमारी संस्कृति और इतिहास के रखवाले हैं। मोदी सरकार का पूरा ध्यान दुनिया में भारत की समृद्ध परंपराओं के निर्माण, पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापन पर है। इतिहास का पहिया अब घूम रहा है। यह भारत का उदय है। दुनिया में भारतीय संस्कृति और विरासत को उचित स्थान मिले, इसे लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। इस कड़ी में उन्होंने मंदिरों के विश्वस्तरीय संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि भारत कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार कर रहा है, क्योंकि हमारी सभ्यता कई देशों तक विस्तृत है। आइए जानते हैं विश्व प्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर की खासियत और इतिहास…
यशोधरपुर था पहले इस मंदिर का नाम
हिंदू धर्म सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। इसकी पुरातन संस्कृति की झलक पूरी दुनिया में दिखती है। यही कारण है कि इस धर्म के प्रतीक, अवशेष, चिन्ह यहां तक प्राचीन मंदिर विदेशों में भी मिलते हैं। इन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक है कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर। यह एक हिंदू मंदिर है। 402 एकड़ में फैला यह मंदिर कंबोडिया के अंकोर में है। प्राचीन समय में इस मंदिर का नाम ‘यशोधरपुर’ था। बताया जाता है कि इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई॰) के शासनकाल में हुआ था।
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित है यहां का स्थापत्य
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस विष्णु मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारंभ जरूर किया, लेकिन वे इसे पूरा नहीं कर सके। मंदिर का कार्य उनके भांजे व उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में पूरा हुआ। मिश्र व मैक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लंबी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौड़ी खाई है। विद्वानों के अनुसार, यह चोल वंश के मंदिरों से मिलता-जुलता है।
इस मंदिर में स्थापित हैं भगवान विष्णु
इस मंदिर की रक्षा के लिए चारों तरफ खाई बनवाई गई, जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से यह खाई झील की तरह दिखती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। पुल के पार मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार है, जो लगभग 1,000 फुट चौड़ा है। अंकोरवाट यहां का एक अकेला ऐसा स्थान है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की मूर्तियां एक साथ हैं। अंगकोरवाट मंदिर की खासियत है कि विष्णु भगवान का यह दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है।
मीकांग नदी के किनारे स्थापित है यह मंदिर
कंबोडिया के मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में स्थापित इस मंदिर के प्रति वहां के लोगों में अपार श्रद्धा है। यही वजह है कि इस मंदिर को राष्ट्र के लिए सम्मान का प्रतीक माना जाता है और इसे कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है।
दीवारों पर उकेरे गए हैं हिंदू धर्म से जुड़े प्रसंग
यह मंदिर सनातन संस्कृति का साक्ष्य है। इसकी दीवारों पर हिंदू धर्मग्रंथों के प्रसंगों का अद्भुत चित्रण है। आप यहां अप्सराओं का सुंदर चित्र देख सकते हैं। यहां तक कि असुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन के दृश्य को भी बड़े ही सुंदरता से उकेरा गया है।
यूनेस्को के विश्व धरोहरों में से एक है यह मंदिर
अंकोरवाट मंदिर विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यही कारण है कि इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया हुआ है। यहां लोगों को वास्तुशास्त्र का अनोखा स्वरूप देखने को मिलता है। पर्यटक यहां सिर्फ मंदिर की खूबसूरती और इतिहास जानने ही नहीं आते, बल्कि यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त देखने का अनुभव भी असाधारण होता है। सनातन धर्म के लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।
भारतीय गुप्त कला की दिखती है झलक
इस विशाल मंदिर की दीवारों पर रामायण की कथाएं मूर्तियों में दर्शायी गई हैं। ऐसा लगता है कि विदेशों में जाकर भी प्रवासी कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखा था। मंदिर में की गई कलाकारी को देखकर लगता है कि यह भारतीय गुप्त कला से प्रभावित है। यहां के मंदिरों में तोरण द्वार और अलंकृति शिखर दिखते हैं।
मंदिर पर बौद्ध धर्म का भी पड़ा असर
अंगकोरवात के हिंदू मंदिरों पर बाद में बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। कालांतर में उनमें बौद्ध भिक्षुओं ने निवास भी किया था। इस क्षेत्र में 20वीं सदी की शुरुआत में जो पुरातात्विक खुदाई हुई हैं, उनसे ख्मेर के धार्मिक विश्वासों, कलाकृतियों और भारतीय परंपराओं की प्रवासात परिस्थितियों पर बहुत प्रकाश पड़ा है। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं।