नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारतीय सेना की तरफ से प्रेस ब्रीफिंग की गई है. इस दौरान भारतीय सेना के एयर मार्शल एके भारती ने रामचरितमानस की एक चौपाई का जिक्र किया. पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए तुलसी दास द्वारा रचित रामचरितमानस की चौपाई पढ़ी और कहा, ‘विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।। . ऐसे में चलिए आपको इस चौपाई का अर्थ बताते हैं और जानते हैं कि यह किस संदर्भ में कही गई है.
क्या से इस चौपाई का अर्थ?
“भय बिन होई न प्रीति” का अर्थ है कि बिना भय के प्रेम या सम्मान नहीं हो सकता है. यह तुलसी दास की एक प्रसिद्ध चौपाई है, जो रामायण में भी मिलती है. यहां भय का मतलब डर नहीं है, बल्कि वह सम्मान और अनुशासन है, जो किसी के प्रति होना चाहिए.
यह दोहा, या दो पंक्तियां, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में वर्णित है. इसका अर्थ है कि बिना भय के, चाहे वह डर हो या सम्मान, किसी के प्रति प्रीति (प्रेम, स्नेह, या सम्मान) नहीं हो सकती है.
प्रभु श्रीराम ने क्यों कहा था ‘भय बिनु होई न प्रीति’?
रामायण में जब प्रभु श्रीराम लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता मांगते हैं और समुद्र से आग्रह करते हुए श्रीराम को तीन दिन बीत गए, लेकिन समुद्र उनकी विनती को नहीं मानता. तब भगवान राम समझ गए कि अब अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना जरूरी है.
ऐसे में इस घटना को श्री रामचरितमानस में तुलसी दास ने समुद्र को जड़ बताते हुए इस प्रकार लिखा –
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।
समुद्र पर कोई प्रभाव न पड़ता देख प्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देख समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय से काम चलेगा. तब श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के अंद आग लग गई. आग को देख समुद्र प्रभु श्रीराम से अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगा. ऐसे में भगवान श्रीराम ने शस्त्र उठाकर समुद्र को उचित सीख दी. इस प्रकार रामायण की इस चौपाई से हमें यह सीख मिलती है कि अगर आग्रह से जब काम न बने तो फिर भय से काम निकाला जाता है.