धमतरी। लोकसभा चुनाव में कुछ ही दिन बचे हैं. इस चुनाव के बीच कई दिलचस्प कहानियां भी सामने आ रही हैं. ऐसी ही कहानी छत्तीसगढ़ की महासमुंद संसदीय सीट की भी है. इस संसदीय सीट के तहत धमतरी जिला भी आता है. ये धमतरी जिला आजादी के 75 साल बाद भी अपने सांसद के लिए तरस रहा है. जिस धमतरी ने महात्मा गांधी को सत्याग्रह की अवधारणा यानी कॉन्सेप्ट दिया, जिस धमतरी में 100 साल से रेल, बांध, अस्पताल, स्कूल है, जिस धमतरी में सबसे पुराना निकाय हो, वहां से कोई सांसद न होना अचरज में डालता है. किसी भी राजनीतिक दल ने आज तक धमतरी से किसी शख्स को प्रत्याशी ही नहीं बनाया. साल 1952 से 2024 तक 18 लोकसभा चुनाव हो गए लेकिन, धमतरी से कोई भी लोकसभा नहीं पहुंचा.
बता दें, ये ऐतिहासिक तथ्य है कि साल 1920 में धमतरी के कंडेल में स्थानीय नेताओं ने अंग्रेजो के नहर पानी के टैक्स के विरोध में जल सत्याग्रह किया था. उन्होंने अंग्रेजों को यह टैक्स वापस लेने पर मजबूर किया था. इस आंदोलन से महात्मा गांधी प्रभावित हुए थे. वे इस सत्याग्रह को समझने दो बार धमतरी भी आए थे. उन्होंने यहां सभा भी की थी. बता दें, धमतरी में हर चुनाव में रिकॉर्ड मतदान होता है. यहां के लोग लोकतंत्र को लेकर जागरूक हैं. अंग्रजों के जमान में ही यहां विकास की नींव रख दी गई थी. यहां 100 साल से रेल लाइन बिछी हुई है. 100 साल से ही बाकायदा स्कूल है, बांध है, अस्पताल है. इसीका नतीजा है कि आज धमतरी सबसे सफल और समृद्ध किसानों वाला जिला है.
वो सांसद बन गए, जो मतदाता ही नहीं थे
आजादी के लिए आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान, विकास की भरपूर संभावनाओं के बावजूद जब में साल 1952 में लोकसभा के पहले चुनाव हुए तो धमतरी को महासमुंद लोकसभा का हिस्सा बनाया गया. महासमुंद लोकसभा में 8 विधानसभा शामिल हैं. इनमें धमतरी जिले के धमतरी और कुरूद, गरियाबांद जिले के राजिम और बिंद्रनवागढ़, महासमुंद जिले के महासमुंद, बसना, खल्लारी और सराईपाली शामिल हैं. हैरानी की बात यह है कि यहां के सांसदों की सूची में कई ऐसे लोग हैं जो यहां के मतदाता ही नहीं थे. लेकिन यहां से सांसद बन कर लोकसभा पहुंचे.
यहां से ये नेता बने सांसद
1952 में पहले सांसद श्योदास डागा और उसके बाद मगनलाल बागड़ी बने. 1962 से लेकर 1967 तक विद्याचरण शुक्ल सांसद रहे. 1967 से 1977 तक कृष्णा अग्रवाल और बृजलाल शर्मा सांसद रहे. बृजलाल शर्मा के तौर पर पहली बार कोई गैर कांग्रेसी यहां से जीता था. इसके बाद फिर 1980 से 1989 तक विद्याचरण सांसद रहे. उनके बाद कांग्रेस की तरफ से ही पवन दीवान को प्रत्याशी बनाया गया. भाजपा यहां से पहली बार 1998 में जीती लेकिन वो भी अपना प्रत्याशी चंद्रशेखर साहू के रूप में बाहर से लेकर आई. उनके बाद फिर शुक्ल परिवार से श्यामाचरण जीते. वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री भी रहे.