कर्नाटक में चुनाव अब बहुत ही नजदीक आ चुका है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि जब एक मतदाता मतदान के लिए पहुंचेगा, तो वह किन फैक्टर को ध्यान में रखकर वोटिंग कर सकता है। सभी दलों ने अपने-अपने हिसाब से सारे फैक्टर को फुलप्रूफ रखने की कोशिश की है। यहां हम मोटे तौर पर ऐसे 5 फैक्टर पर चर्चा कर रहे हैं।
कर्नाटक में तीनों प्रमुख दलों के अपने-अपने मंसूबे
कर्नाटक चुनाव में बीजेपी इसबार प्रदेश का इतिहास बदलने के लिए पूरा जोर लगा रही है। क्योंकि, वहां का रिकॉर्ड ऐसा रहा है कि कोई भी सरकार पूर्ण बहुमत से साथ सत्ता में वापसी नहीं कर पाती। 1985 में सिर्फ जनता पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े को यह सौभाग्य मिला था, जब वे 139 सीटों के साथ सत्ता में लौटे थे।
जहां तक कांग्रेस की बात है तो न सिर्फ कर्नाटक में, बल्कि पूरे देश में इसका राजनीतिक भविष्य काफी कुछ इसी चुनाव के भरोसे है। जबकि, जेडीएस त्रिशंकु विधानसभा का मंसूबा पाले बैठी है। ऐसा होने पर वह खुद को किंगमेकर की भूमिका में ला सकती है। ऐसा होने पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की उम्मीदों को झटका लग सकता है।
जाति फैक्टर
कर्नाटक चुनाव अब 20 दिन से भी कम रह गए हैं। अभी तक की स्थिति से स्पष्ट है कि इस बार भी वहां जाति फैक्टर सबसे प्रभावी भूमिका निभाने वाला है। इस लिहाज से वहां दो जातियां महत्वपूर्ण हैं- लिंगायत और वोक्कालिगा। बीजेपी और कांग्रेस दोनों की नजरें इनपर टिकी हैं।
वहीं जेडीएस का तो आधार ही वोक्कालिगा हैं। पार्टी के 24 एमएलए इसी जाति के हैं। कांग्रेस का भी इस जाति में बड़ा जनाधार रहा है। इनकी जनसंख्या करीब 15 फीसदी है। माना जाता है कि भाजपा का लिंगायतों पर काफी प्रभाव है। इनकी आबादी करीब 17 फीसदी है। अबकी बार भाजपा वोक्कालिगा समाज में भी अपनी पैठ बढ़ाने में लगी है
बीजेपी ने 2018 के चुनाव में 34 की जगह इसबार 47 वोक्कालिगा को टिकट दिया है। कांग्रेस के पास प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के रूप में बहुत कद्दावर वोक्कालिगा चेहरा हैं। पार्टी ने इसबार 43 वोक्कालिगा को टिकट दिया है, जो पिछली बार से 2 ज्यादा हैं।
बीएस येदियुरप्पा के रूप में भाजपा के पास लिंगायतों के सबसे बड़े चेहरे हैं। बावजूद इसके इसबार पार्टी इस वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए सभी कोशिशें कर रही है। इसने 68 लिंगायत उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो 2018 से अधिक है। बीजेपी सरकार ने 4% मुस्लिम कोटा खत्म करके लिंगायतों और वोक्कालिगा का आरक्षण भी 2 फीसदी बढ़ाया है।
कांग्रेस ने भी पिछली बार से ज्यादा लिंगायत उम्मीदवार उतारे हैं। जगदीश शेट्टार जैसे दिग्गज लिंगायत चेहरों को भाजपा से छीनकर पार्टी वही नरेटिव गढ़ रही है, जो कभी भाजपा उसके खिलाफ गढ़ती रही थी। इनके अलावा दलित और आदिवासी वोट बैंक भी बहुत बड़ा फैक्टर है।
राज्य में करीब 24 फीसदी दलित-आदिवासी वोट है। इस वोट बैंक पर कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस तीनों की नजरें टिकी हैं। इन्हीं में पिछड़ों के एक वर्ग और अल्पसंख्यक को मिलाकर कांग्रेस AHINDA फॉर्मूले पर काम कर रही है। जबकि, बीजेपी भी इसमें सेंध लगाना चाहती है।
धर्म और राष्ट्रवाद फैक्टर
मध्य कर्नाटक के तटवर्ती क्षेत्र को कर्नाटक में हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहा जाता है। यहां बीजेपी पहले से मजबूत है। मुसलमानों का 4 फीसदी कोटा छीनकर उसे लिंगायत और वोक्कालिगा में बांटकर भाजपा ने अपना चुनावी संदेश दे दिया है। कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप वह पहले से लगाती रही है।
इसके अलावा कांग्रेस के AHINDA फॉर्मूले की काट में इसने HIND फॉर्मूला पेश किया है- हिंदू, राष्ट्रवाद और विकास। यह वही इलाका है, जहां पिछले दो वर्षों से हलाल और हिजाब को लेकर राजनीति होती रही है। कुल मिलाकर धार्मिक ध्रुवीकरण में कांग्रेस और भाजपा दोनों को फायदा दिख रहा है।
क्षेत्रीय फैक्टर
स्थानीय राजनीति के हिसाब से कर्नाटक मोटे तौर पर 6 क्षेत्रों में विभाजित है। तटवर्ती कर्नाटक, कित्तूर या बॉम्बे कर्नाटक और मध्य कर्नाटक में भाजपा मजबूत स्थिति में रही है। 2018 में भाजपा की 104 सीटों में से 70 इन्हीं तीन क्षेत्रों से आई थी।
हैदराबाद कर्नाटक और बेंगलुरु शहरी क्षेत्र में कांग्रेस बाकियों से ज्यादा मजबूत रही है। वहीं पुराने मैसुरू क्षेत्र को जेडीएस का गढ़ माना जा सकता है। पार्टी को 57 में से 27 सीटें इसी क्षेत्र में मिली थी। यह इलाका वोक्कालिगा लैंड कहलाता है, जिससे कांग्रेस और भाजपा को भी अबकी बार काफी उम्मीदें हैं।
बीजेपी ने पुराने मैसुरू को जीतने के लिए इस बार खास रणनीति बनाई है। पार्टी वोक्कालिगा के साथ-साथ दलित-आदिवासी वोट के लिए भी संघर्ष में जुटी हुई है। वहीं कांग्रेस भी इसबार भाजपा के दबदबे वाले इलाकों में घुसपैठ करने की कोशिशों में जुटी हुई है।
भ्रष्टाचार फैक्टर
कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है और कांग्रेस-बीजेपी दोनों एक-दूसरे को इस मसले पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस भाजपा सरकार पर 40 फीसदी रिश्वत लेने का आरोप लगा रही है। वहीं बीजेपी भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच का सामना कर रहे कांग्रेस नेताओं को लेकर पार्टी को घेर रही है।
बागी फैक्टर
कर्नाटक चुनाव में इस बार भाजपा को बागियों का संकट बहुत बड़े स्तर पर झेलना पड़ रहा है। 10 से ज्यादा एमएलए और एमएलसी पार्टी छोड़कर कांग्रेस या जेडीएस ज्वाइन कर चुके हैं। इनमें से ज्यादातर को उन दलों ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी दे दिया है।
दलबदल का समस्या कांग्रेस और जेडीएस भी झेल रही है। इन दलों के कुछ नेता बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस यह धारणा बनाने में जुटी है कि बीजेपी से उसके खेमे में आने वाले नेताओं की संख्या ज्यादा है। लेकिन, भाजपा नेताओं का दावा है कि इन दलबदलुओं की वजह से पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं होगा।