मुंबई : एनसीपी पर किसका कब्जा होगा… महाराष्ट्र की राजनीति में यह सवाल अब भी बना हुआ है, लेकिन शरद पवार की मोर्चेबंदी ने भतीजे अजित की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी है. शरद पवार ने एनसीपी में कथित ऑपरेशन लोटस को फेल करने के लिए 5 मजबूत योद्धाओं को तैनात कर दिया है. ये सभी पवार की रणनीति को जमीन पर अमलीजामा पहनाने का काम कर रहे हैं.
प्रेशर पॉलिटिक्स में माहिर शरद पवार की रणनीति का ही परिणाम है कि पिछले 5 दिनों में 3 विधायक अजित गुट से वापस आ चुके हैं. शरद पवार के पोते रोहित की मानें तो आने वाले 15 दिनों में बाकी विधायक भी वापस आ जाएंगे. वर्तमान में महाराष्ट्र विधानसभा में एनसीपी के 53 विधायक हैं.
अजित के बागी होने के तुरंत बाद शरद पवार ने पोते रोहित के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जमीन पर लड़ाई लड़ने की बात कही. पवार इसके बाद मुंबई और दिल्ली में रणनीति तैयार करने के साथ-साथ नासिक में एक रैली में भी हिस्सा लिया. पवार ने इसके बाद नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंप दी.
जानकारों के मुताबिक एनसीपी बचाने के लिए पवार के सामने 2 बड़ी चुनौतियां है जिसमें पहली अपने पक्ष में संख्या बल मजबूत करना और दूसरी साथ आए नेताओं को साधे रखना.
शरद पवार की रणनीति क्या है?
कौन हैं वो 5 नेता, एक-एक कर पढ़िए…
जयंत पाटिल- शरद पवार के सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट जयंत पाटिल अजित गुट के रडार पर सबसे अधिक हैं. जयंत संयुक्त एनसीपी में महाराष्ट्र के अध्यक्ष थे.अजित गुट ने बगावत के बाद सबसे पहले जयंत को हटाने का ही नोटिफिकेशन जारी किया था. जयंत एनसीपी में क्राइसिस मैनेजमेंट करने में माहिर हैं. 2019 में जब अजित ने चाचा के खिलाफ बगावत कर दी थी, उस वक्त भी जयंत को ही विधायकों को साथ रखने की जिम्मेदारी मिली थी. जयंत को 2019 में विधायक दल का नेता भी बनाया गया था.
वर्तमान में पाटिल के जिम्मे एनसीपी की महाराष्ट्र इकाई हैं. वे लगातार हर जिले के अध्यक्षों को साध रहे हैं और बहुमत जुटाने में लगे हैं. अजित गुट में जाने वाले नेताओं पर कार्रवाई भी कर रहे हैं. जयंत पाटिल ही शरद पवार के समर्थन में नेताओं से हलफनामा तैयार करवा रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव आयोग में शरद पवार गुट ने अभी तक 3000 हलफनामें दाखिल किए हैं. इतना ही नहीं, पाटिल नए सिरे से संगठन भी तैयार कर रहे हैं, जिससे अस्थाई रूप से मिलने वाली नई पार्टी को चलाने में कोई दिक्कत न हो.
पाटिल ने राजनीतिक करियर की शुरुआत अपने पिता के देखरेख में की थी. पाटिल 1990 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बनकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे. 1999 में जब शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ एनसीपी का गठन किया तो पाटिल उनके साथ आ गए.
1999-2014 तक पाटिल लगातार मंत्री रहे. उन्हें वित्त, गृह और योजना जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी दिए गए. 2018 में शरद पवार ने सुनील ततकड़े की जगह पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी. 2019 के चुनाव में एनसीपी का परफॉर्मेंस बढ़ा तो वे उद्धव सरकार में जल संसाधन मंत्री बनाए गए.
पाटिल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रडार पर भी हैं. मई 2023 में आईएल एंड एफएस मामले में ईडी ने जयंत पाटिल से पूछताछ भी की थी.
जितेंद्र अव्हाद- खुद को जन्मजात विद्रोही मानने वाले जितेंद्र आव्हाद भी एनसीपी में ‘ऑपरेशन लोटस’ को फेल करने में जुटे हैं. अजित पवार के बागी होने के बाद शरद पवार ने आव्हाद को ही विधायक दल का नेता बनाया है. आव्हाद अजित गुट के नेताओं के खिलाफ कानूनी मोर्चे पर लड़ रहे हैं.
आव्हाद ने स्पीकर राहुल नार्वेकर के समक्ष याचिका दाखिल की है. आव्हाद एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं. बीते दिनों एनसीपी के संविधान में बदलाव को लेकर आव्हाद ने बड़ी भूमिका निभाई. एनसीपी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यसमिति ही पार्टी पर फैसला कर सकती है.
इतना ही नहीं, एनसीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने शरद पवार के पक्ष में भी प्रस्ताव पास किया. हाल ही में नासिक दौरे के दौरान शरद पवार की एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी, जिसमें वे भीगे हुए थे. इस तस्वीर को भी आव्हाद ने ही शेयर किया था.
छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत करने वाले आव्हाद 1991 में एनएसयूआई के राष्ट्रीय महासचिव बने. शरद पवार के कहने पर 1996 में उन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस के युवा इकाई का अध्यक्ष बनाया गया. मूल रूप से ठाणे के रहने वाले आव्हाद एनसीपी गठन के बाद शरद पवार के साथ आ गए.
उन्हें उस वक्त एनसीपी के युवा इकाई का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. साल 2004 और 2008 में महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य के रूप में एनसीपी ने उन्हें नामित किया. 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार में आव्हाद चिकित्सा शिक्षा मंत्री बनाए गए. साल 2019 में उद्धव सरकार में आव्हाद आवास मंत्री थे.
रोहित पवार- शरद पवार के बड़े भाई अप्पा साहब पवार के पोते रोहित पवार एनसीपी में ऑपरेशन लोटस को सफल होने से रोकने के लिए मजबूत मोर्चेबंदी कर रखी है. रोहित सोशल मीडिया और शरद पवार की रैली आयोजन का काम देख रहे है.
दरअसल, सड़क पर शक्ति प्रदर्शन कर शरद पवार अजित गुट पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना चाह रहे हैं, जिससे उन्हें चुनाव हारने का डर सताए. शरद की रैली में भीड़ देखकर अब तक 3 विधायक अजित गुट से वापस आ चुके हैं. शरद किस जगह रैली करेंगे, इसे तय करने में रोहित पवार बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. रोहित के रडार पर अजित के छोड़कर बाकी के 8 मंत्री हैं. शरद पवार ने रैली की शुरुआत छगन भुजबल के क्षेत्र से की है.
शरद पवार के इस मिशन को सफल बनाने के लिए रोहित अलग-अलग तरह की रणनीति तैयार कर रहे हैं. रोहित अजित के साथ गए नेताओं को शरद पवार ने क्या-क्या दिया, इसका प्रोफाइल बना रहे हैं और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं.
इसके अलावा, शरद पवार के बयानों को शेरों-शायरी के जरिए एनसीपी के पेज से शेयर किया जा रहा है. रोहित शरद पवार परिवार के तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं, जो किसी सदन के सदस्य हैं. 2019 में रोहित अहमदनगर के काराजाट-जामखेड़ा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
अमोल कोल्हे- सिने जगत से राजनीति में आने वाले अमोल कोल्हे भी एनसीपी में ऑपरेशन लोटस रोकने में जुटे हैं. 2014 में फिल्म इंडस्ट्री छोड़ कोल्हे ने शिवसेना ज्वॉइन किया. उद्धव ठाकरे ने उन्हें उस वक्त स्टार प्रचारक नियुक्त किया. कोल्हे की लोकप्रियता को देखते हुए उद्धव ठाकरे ने उन्हें शिवसेना में उपनेता भी बनाया. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने शिवसेना छोड़ शरद पवार का दामन थाम लिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने शिरुर सीट से शिवसेना के कद्दावर शिवाजीराव पाटिल को चुनाव हराया.
अजित ने जब बगावत की तो अमोल कोल्हे उनके साथ ही नजर आए, लेकिन बाद में उन्होंने पलटी मार दी. अब कोल्हे लगातार शरद पवार के साथ फील्ड का दौरा कर रहे हैं. अजित के साथ-साथ बीजेपी पर भी जमकर निशाना साध रहे हैं.
छोटे-छोटे वीडियो बनाकर कोल्हे लगातार सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. नासिक के येवला में रैली के दौरान अमोल कोल्हे की कुर्सी शरद पवार से दूर लगाई गई थी, लेकिन शरद पवार ने उन्हें मंच पर बुलाकर अपने पास बैठाया.
शरद पवार की रणनीति कोल्हे के जरिए एनसीपी के युवा नेता और कार्यकर्ताओं को साधने की है, जिससे अजित गुट कमजोर पड़ जाए. इसके अलावा कोल्हे मीडिया में भी पवार गुट का पक्ष मजबूती से रख रहे हैं.
सुप्रिया सुले- एनसीपी में ऑपरेशन लोटस को रोकने की सबसे अहम जिम्मेदारी सुप्रिया सुले निभा रही हैं. अजित के बागी होने की मुख्य वजह सुप्रिया का बढ़ता कद ही माना जा रहा है. सुप्रिया संगठन में शरद पवार के बाद नंबर-2 के पद पर हैं. सुप्रिया शरद गुट के सभी नेताओं से कॉर्डिनेशन बनाने का काम कर रही हैं. शरद पवार की रणनीति को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी सुप्रिया पर ही है. पर्दे के पीछे सभी नेताओं को साध रही है. सुप्रिया जिले स्तर के नेताओं से भी लगातार मिल रही हैं.
सुप्रिया की रणनीति पूरे लड़ाई को शरद पवार बनाम अजित पवार करने की है, जबकि अजित गुट इस लड़ाई से शरद पवार को बाहर रखने की बात लगातार कह रहे हैं. सुप्रिया के निशाने पर चचेरे भाई अजित पवार ही हैं.
2006 में सुप्रिया ने राजनीतिक में एंट्री की. उन्हें उस वक्त राज्यसभा भेजा गया. 2009 में एनसीपी के सेफ सीट बारामती से सुप्रिया लोकसभा चुनाव लड़ीं और जीत दर्ज कर सदन में पहुंचीं. सुप्रिया इसके बाद 2014 और 2019 में भी बारामती सीट से जीत दर्ज की. 2023 में शरद पवार ने सुप्रिया को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया.