जोशीमठ : जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव को लेकर गिरीश चंद्र तिबाडी ‘गिर्दा’ की यह कविता इन दिनों चर्चा में है. अब तक एक बात तो साफ हो चुकी है कि जोशीमठ में जो हालात बने हैं, उसके पीछे प्राकृतिक कारणों से ज्यादा मानवजनित कारण जिम्मेदार हैं.
1976 में जब यहां लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ी थीं, तब मिश्रा कमेटी की अनुशंसाओं को इग्नोर किया गया. आज उसके दुष्परिणाम हालिया तबाही के रूप में सामने है. जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव की वजह से 561 से ज्यादा घरों में दरार आ गई हैं.
सवाल वही हैं कि जोशीमठ में हो रही तबाही का जिम्मेदार कौन है! प्रकृति, अवैध निर्माण, सरकारें या हम आम लोग भी… आइए समझने की कोशिश करते हैं.
1). नदियों का कटाव और प्राकृतिक आपदाएं
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट डॉ स्वप्नामिता चौधरी के अनुसार, उत्तराखंड के विष्णुप्रयाग क्षेत्र में धौलीगंगा और अलकनंदा नदियां लगातार नीचे से कटाव कर रही हैं. विष्णुप्रयाग से ही जोशीमठ का ढलान शुरू होता है. 2013 में आई केदारनाथ आपदा, 2021 की रैणी आपदा, 2022 का चमोली हादसा और बदरीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाओं को भी वो भू-धंसाव के लिए काफी हद तक जिम्मेदार मानती हैं.
सेंट्रल हिमालय क्षेत्र में पड़नेवाला जोशीमठ क्षेत्र एक्टिव टेक्टोनिक जोन है. डॉ चौधरी जोड़ती हैं कि पिछले दो दशक में जोशीमठ के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं तैयार की गई. ड्रेनेज यानी जलनिकासी का प्रबंधन बेहतर नहीं किया गया. मॉनसून के दौरान बारिश और पूरे साल घरों से निकलने वाला पानी नदियों में जाने की बजाय जमीन के भीतर समा रहा है. इससे भी जड़ें कमजोर हुई हैं.
2). लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा शहर
जोशीमठ मोरेन पर बसा हुआ शहर है. मोरेन यानी ग्लेशियर से लाया गया मटेरियल. 1939 में प्रकाशित पुस्तक सेंट्रल हिमालया में जियोलॉजिस्ट प्रो ए हेम और प्रो गैंसर ने यह बात लिख दी थी कि जोशीमठ बड़े लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा हुआ है. वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट और प्रोफेसर डॉ एसपी सती का कहना है कि 1976 में लैंडस्लाइड की घटनाओं के बाद यूपी गवर्मेंट ने तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी.
मिश्रा कमेटी ने पहाड़ों पर निर्माण कार्य नहीं करने, कंस्ट्रक्शन को हतोत्साहित करने, ब्लास्टिंग न करने समेत कमेटी ने कई रिकमेंडेशन दिए थे, जिन्हें इग्नोर किया जाता रहा. बड़े पैमाने पर आर्मी और आईटीबीपी की मौजूदगी बढ़ी. यात्रा मार्ग बनाए गए, जिसके दुष्परिणाम अवश्यमभावी थे. और ऐसा हुआ भी.
3). विकास ही विनाश का कारण!
जोशीमठ में एनटीपीसी का हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट चल रहा है. इसमें टनल निर्माण को भी एक कारण बताया जा रहा है. आरोप लग रहे हैं कि चमोली हादसे के बाद भी सबक नहीं लिया गया. एनटीपीसी ने तपोवन विष्णुगार्ड प्रोजेक्ट में पहाड़ पर ब्लास्ट नहीं कर TVM मशीन का इस्तेमाल किया, लेकिन 11 किमी सुरंग बनने के बाद सितंबर 2009 में मशीन ही धंस गई.
इसके करीब डेढ़ साल बाद मार्च 2011 में काम शुरू हुआ और फिर फरवरी 2012 में बंद हो गई. इसके बाद से कई बार मशीन बंद होती रही. इस प्रोजेक्ट के अलावा स्थानीय लोग हेलंग मारवाड़ी बाईपास का भी विरोध कर रहे हैं. हालांकि उत्तराखंड सरकार ने फिलहाल एनटीपीसी प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी है.
4). सरकारों की संवेदनहीनता
पहले का संयुक्त उत्तर प्रदेश हो या फिर विभाजन के बाद बना उत्तराखंड… सरकारों ने विकास के नाम पर पहाड़ों को हद से ज्यादा डिस्टर्ब किया. जियोलॉजिस्ट डॉ एसपी सती कहते हैं कि सरकारें डेवलपमेंट प्रोजेक्ट बनाती हैं तो संवेदनहीन हो जाती हैं. फरवरी 2021 में चमोली हादसे के बाद सरकार का सबसे पहले स्टेटमेंट ये था कि इस दुर्घटना के बहाने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के खिलाफ माहौल न बने.
वो कहते हैं, सड़कों ने पहाड़ों का कत्लेआम किया है. चारधाम प्रोजेक्ट में भी यह दिखता है. राज्य सरकार ने जो सड़कें बनाई हैं, वे तो और बेतरतीब हैं. उत्तराखंड में विकास प्रोजेक्ट्स में पहाड़ की संवेदना का ध्यान रखना जरूरी है. सड़क और बिल्डिंग्स के निर्माण पर लगाम लगनी चाहिए.
5). कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार
पहाड़ों पर जिस तरह टूरिज्म और तीर्थ के बहाने अवैध निर्माण हो रहे हैं, वे भी ऐसे हालात के जिम्मेदार हैं. टूरिस्ट के तौर पर भी हम जाते हैं तो हमें वहां सारी सुविधाएं चाहिए होती हैं. कई जियोलाॅजिस्ट यह बात कह चुके हैं कि टूरिज्म सेक्टर का तेजी से विस्तार हुआ और पहाड़ों पर बोझ बढ़ता गया. टूरिस्ट की बढ़ती संख्या के साथ होटल-रेस्तरां निर्माण भी बढ़े. स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से भी लोग आकर निवेश करने लगे, निर्माण करने लगे. इनमें बहुतेरे अवैध निर्माण भी हुए.
अब आगे क्या?
डॉ एसपी सती कहते हैं कि अब जो स्थिति बनी है, उसमें कोई साइंस काम नहीं करनेवाला. वो कहते हैं, अब साइंस भी नहीं बचा सकता. एक-दो साल तक यह स्थिति रहेगी, इसलिए सबसे पहली जरूरत लोगों की शिफ्टिंग है. सरकारों के लिए लोगों की जान बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए. कैटगराइज कर के कम से कम 15 से 20 हजार लोगों को विस्थापित कर बसाना होगा. अगर लोगों की जानें जाती हैं तो सरकारें क्या मुंह दिखााएंगी!