पटना : राज्य की तांती-तंतवा जाति के लोगों को अब अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलेगा। उन्हें पहले की तरह अत्यंत पिछड़ा वर्ग की मिलनेवाली सुविधाएं ही मिलेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के 1 जुलाई 2015 को जारी संकल्प को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि संकल्प जारी होने के बाद तांती-तंतवा को अनुसूचित जाति मानकर जो लाभ दिये गये हैं उन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में वापस कर दिया जाए। जिन्हें इसका लाभ मिला वैसे तांती-तंतवा के उम्मीदवारों को राज्य सरकार उचित उपाय करते हुए अत्यंत पिछड़ा वर्ग की मूल श्रेणी में समायोजित करें।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने डॉ. भीम राव आंबेडकर विचार मंच और आशीष रजक की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 2015 के जुलाई में संकल्प जारी कर तांती-तंतवा जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग से हटा कर अनुसूचित जाति के क्रम-20 में पान स्वासी के साथ जोड़ दिया। सरकार ने कहा कि पिछड़े वर्ग के राज्य आयोग की सलाह के बाद तांती-तंतवा को पान स्वासी के साथ समावेश कर उन्हें अनुसूचित जाति का लाभ दिया जाएगा।
इस संकल्प के बाद तांती-तंतवा को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण-पत्र निर्गत होने लगा और इसके आधार पर सरकारी नौकरी में लाभ मिलने लगे। राज्य सरकार के इस संकल्प को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई के बाद सरकार के संकल्प में हस्तक्षेप करने से इनकार कर करते हुए 3 अप्रैल 2017 को याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आवेदकों सहित राज्य सरकार से इस केस में हस्तक्षेप करने वालों की ओर से पेश दलील को सुनने के बाद संकल्प को निरस्त कर दिया।
सबसे पहले अनुसूचित जाति की अधिसूचना 11 अगस्त 1950 को भारत के गजट में प्रकाशित की गई थी, जिसके क्रम संख्या 18 पर पान जाति को अनुसूचित जाति के रूप में रखा गया था। आवेदकों के वकीलों का कहना था कि संविधान में राज्य सरकार को पिछड़ा आयोग का गठन करने का अधिकार दिया है।
जिसके बाद बिहार विधानमंडल ने पिछड़े वर्गों के लिए राज्य आयोग की स्थापना की और आयोग के कानून की धारा-11 में किये गये प्रावधान के अनुसार राज्य सरकार प्रत्येक दस वर्ष में पिछड़े वर्गों की सूचियों का आवधिक संशोधन कर सकती है। सरकार सूची में संशोधन करने के पूर्व आयोग से परामर्श करना होगा।
राज्य सरकार के 1991 एक्ट में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के क्रम-33 पर तांती तंतवा जाति को रखा गया था। राज्य सरकार ने 5 अगस्त 2011 को एक पत्र केन्द्र सरकार को भेज तांती-तंतवा को पान, स्वासी और पनर को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन केन्द्र सरकार ने रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) के परामर्श एवं तय तौर-तरीकों के जांच के बाद 24 जनवरी 2013 को टिप्पणियों के साथ राज्य सरकार के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
उनका कहना था कि केन्द्रीय विभाग ने राज्य सरकार को 2015, 2016, 2018, 2019 और 2020 में पत्र भेज तांती तंतवा को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं करने के बारे में अपने अधिकारियों को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया, लेकिन राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
वहीं राज्य सरकार की ओर से मुंगेरी लाल आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि तांती-तंतवा वास्तव में पान जाति से संबंध रखते हैं। इस कारण उन्हें अनुसूचित जाति में रखा गया है। उन्होंने तांती-तंतवा को अत्यंत पिछड़ा वर्ग से हटा कर अनुसूचित जाति में शामिल करने के निर्णय को सही करार दिया।