नई दिल्ली। चीन (China) और ताइवान (Taiwan) की स्थिति तनावपूर्ण है. रूस (Russia) ने यूक्रेन (Ukraine) पर हमला कर ही रहा है. वहां युद्ध चल ही रहा है. अभी जंग सिर्फ जमीन, पानी और हवा में होता है. लेकिन कुछ सालों में ही यह अंतरिक्ष में भी होने लगेगा. दुश्मन देश एकदूसरे के सैटेलाइट्स को मार गिराने के लिए एंटी-सैटेलाइट हथियार बना चुके हैं. सैटेलाइट्स को मार गिराने का मतलब है संचार, नेविगेशन, निगरानी समेत कई सुविधाओं का बंद होना.
क्या होते हैं एंटी-सैटेलाइट हथियार?
ऐसे प्रक्षेपास्त्र यानी मिसाइल या रॉकेट जो तेज गति से जाकर अंतरिक्ष में धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहे दुश्मन देश के सैटेलाइट को मार गिराए. उसे एंटी-सैटेलाइट हथियार (ASATs Weapons) कहते हैं.
एंटी-सैटेलाइट हथियारों का इतिहास
बात है 1957 की जब सोवियत संघ ने दुनिया का पहला सैटेलाइट स्पुतनिक-1 (Sputnik-1) लॉन्च किया था. अमेरिका को लगा कि शीत युद्ध का दुश्मन धरती की कक्षा में परमाणु हथियार से संपन्न सैटेलाइट तैनात कर रहा है. तब अमेरिका ने पहला ASAT बनाया था. यह हवा से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल थी, जिसका नाम था बोल्ड ओरियन (Bold Orion).
अब सोवियत तो चुप बैठते नहीं. उन्होंने भी अपना ASAT बना डाला. इन्हें नाम दिया को-ऑर्बिटल्स (Co-Orbitals). ये हथियार अपने और दुश्मन के सैटेलाइट के साथ-साथ उड़ते रहते. जैसी जरूरत पड़ती उसके मुताबिक ये खुद ही फट जाते. साथ ही अपनी या दुश्मन के सैटेलाइट को खत्म कर देते. इस तकनीक पर तबसे काम चल ही रहा है. विकसित हो रहा है.
साल 2007 में चीन भी इस रेस में शामिल हो गया. उसने अपने बैलिस्टिक मिसाइल से अंतरिक्ष में अपने पुराने मौसम सैटेलाइट को उड़ाया. जिसकी वजह से अंतरिक्ष में काफी ज्यादा कचरा फैल गया. साल 2019 में भारत ने भी ‘मिशन शक्ति’ (Mission Shakti) के तहत अपने पुराने सैटेलाइट को बैलिस्टिक मिसाइल से मार गिराया था. अप्रैल 2022 में अमेरिका पहला देश बना जिसने मिसाइलों से सैटेलाइट्स को मारना प्रतिबंधित किया.
कितने प्रकार के होते हैं एंटी-सैटेलाइट हथियार
ASATs को प्रमुख तौर पर दो तरह से बांटा जा सकता है. एक वो जो ताकतवर तरीके से हमला करते हैं. दूसरे वो जो नहीं करते. ASAT की काइनेटिक ऊर्जा का फायदा उठाकर उसे किसी सैटेलाइट से टकरा दिया जाए तो भी सैटेलाइट खत्म हो जाएगी. दूसरे होते हैं नॉन-काइनेटिक हथियार. यानी इसमें किसी तरह के मिसाइल, रॉकेट या ड्रोन का उपयोग नहीं करते, बल्कि साइबर अटैक किया जाता है. सैटेलाइट्स को लेजर के जरिए बेकार कर दिया जाता है. ऐसे हमले हवा, धरती की निचली कक्षा या फिर जमीन से भी किया जा सकता है.
कौन-कौन से देश है इस रेस में शामिल
चार देशों ने अब तक अपने पुराने सैटेलाइट्स को मार गिराने के लिए अपनी मिसाइलों का उपयोग किया है. ये है- भारत, अमेरिका, रूस और चीन. लेकिन बाद में अमेरिका और रूस ने आपस में यह तय किया कि वो ASATs को खत्म करेंगे. ताकि परमाणु हथियारों के जंग से राहत मिल सके. रूस ने जब अपने पुराने सैटेलाइट्स को उड़ाया तब अमेरिका ने मिसाइलों से सैटेलाइट्स को उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया. क्योंकि इससे निकलने वाला कचरा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station) के लिए खतरनाक साबित होता है. एक बार तो एस्ट्रोनॉट्स को एस्केप पैड्स में जाकर बैठना पड़ा था.
भारत के पास कौन सा ASAT हथियार है
भारत के पास एंटी-सैटेलाइट मिसाइल के लिए पृथ्वी एयर डिफेंस (पैड) सिस्टम है. इसे प्रद्युम्न बैलिस्टिक मिसाइइल इंटरसेप्टर भी कहते हैं. यह एक्सो-एटमॉसफियरिक (पृथ्वी के वातावरण से बाहर) और एंडो-एटमॉसफियरिक (पृथ्वी के वातावरण से अंदर) के टारगेट पर हमला करने में सक्षम हैं. हमारे वैज्ञानिकों ने पुराने मिसाइल सिस्टम को अपग्रेड किया है. उसमें नए एलीमेंट जोड़े हैं. इसका मतलब ये है कि पहले से मौजूद पैड सिस्टम को अपग्रेड कर तीन स्टेज वाला इंटरसेप्टर मिसाइल बनाया गया. फिर मिशन शक्ति के परीक्षण में उसी का मिसाइल का इस्तेमाल किया गया.
भारतीय ASAT मिसाइल की रेंज 2000 किमी है. यह 1470 से 6126 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से सैटेलाइट की तरफ बढ़ती है. हालांकि, बाद में इसे अपग्रेड कर ज्यादा ताकतवर और घातक बनाया जा सकता है. डीआरडीओ ने बैलिस्टिक इंटरसेप्टर मिसाइल के जरिए 300 किमी की ऊंचाई पर मौजूद उपग्रह को मार गिराया.