देहरादून: जून 2013 केदारनाथ के ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील के टूटने से जो तबाही बरपी, उसे आज भी कोई भूल नहीं सकता है। 2021 में चमोली में ग्लेश्यिर टूटने से धौली गंगा में आई बाढ़ से 200 से अधिक लोगो की जान चली गई।
ऐसे में उत्तराखंड में इस तरह की दोबारा कोई घटना न हो इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग लगातार नजर बनाए हुए है। इस बीच एक खबर ने आपदा प्रबंधन विभाग की नींद उड़ा दी है। उत्तराखंड में उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर में 13 झील चिन्हित की गई हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें से 4,351 से 4,868 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेश्यिर मोरेन में बनी पांच बड़ी झीलें बेहद खतरनाक हैं, जो टूटी तो निचले क्षेत्रों में तबाही बरपा सकती हैं।
उत्तराखंड में वैज्ञानिकों ने गंगा से लेकर धौलीगंगा और पिथौरागढ़ की दारमा वैली तक उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेश्यिर मोरेन में बनी 13 झीलें चिन्हित की हैं। इन 13 झीलों में से भी पांच झीलों को हाई रिस्क कैटागरी में रखा गया है, जो काफी बडे़ आकार की हैं जिनमें एक चमोली और चार पिथौरागढ़ में हैं।
ग्लेशियर में लेक फ़ार्मेशन ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। आपदा प्रबंधन विभाग दो जुलाई को सबसे पहले वसुधारा ताल के वैज्ञानिक परीक्षण के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम भेजने जा रहा है।
SDRF जवान ने रचा कीर्तिमान,नार्थ अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट देनाली को किया फतह,बताया आगे क्या है लक्ष्यSDRF जवान ने रचा कीर्तिमान,नार्थ अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट देनाली को किया फतह,बताया आगे क्या है लक्ष्य
उत्तराखंड के सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत सिंह का कहना है कि इस टीम में जएसआई, आईआईआरएस, एनआईएच के साइंटिस्ट शामिल होंगे।
टीम के साथ आईटीबीपी और एनडीआरएफ के जवान भी रहेंगे। टीम वसुधारा ताल पहुंचकर लेक का वैज्ञानिक अध्ययन करेगी। वहां जरूरी उपकरण लगाने की भी योजना है। अगर जरूरी हुआ तो झील को पंचर भी किया जा सकता है।
डॉ.सिन्हा ने बताया कि इन झीलों को वैज्ञानिक तरीके से पंचर किया जाएगा, ताकि आपदा का खतरा न हो। लगातार पिघल रहे ग्लेशियरों की वजह से इन झीलों का जल स्तर बढ़ रहा है। सैटेलाइट और स्थानीय स्तर पर इनकी निगरानी की जा रही है।
धामी सरकार का धाकड़ फैसला, पीसीएस की परीक्षा से नौकरी में कुशल खिलाड़ियों के चार प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत धामी सरकार का धाकड़ फैसला, पीसीएस की परीक्षा से नौकरी में कुशल खिलाड़ियों के चार प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत
आपदा प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार, पांचों झीलों के अध्ययन व न्यूनीकरण के लिए सी-डैक पुणे के नेतृत्व में टीम जाएगी, जिनमें वाडिया इंस्टीट्यूट, जीएसआई लखनऊ, एनआईएच रुड़की, आईआईआरएस देहरादून समेत विभिन्न एजेंसियों के विशेष शामिल होंगे।
ऐसे किया जाएगा पंचर
झीलों की निगरानी के लिए मौके पर उपकरण स्थापित किए जाएंगे। सैटेलाइट से भी उन्हें लिंक किया जाएगा। इसके अलावा न्यूनीकरण के लिए ग्लेशियर झीलों की परिस्थितियों को देखते हुए, वहां पर डिस्चार्ज क्लिप पाइप्स डाले जाएंगे, जिससे झीलें पंचर होंगी। तकनीकी टीम अपने अध्ययन में ये भी देखेगी कि इन झीलों की दीवारें कितनी मजबूत व गहरी हैं।