देहरादून: देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु चारधाम (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) की यात्रा पर आ रहे हैं. सरकार और प्रशासन पूरी तरह से चारधाम में तीर्थयात्रियों के स्वागत के लिए तैयार है. यदि आप भी चारधाम यात्रा पर आने का विचार कर रहे हैं, तो चारधाम के आसपास और यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कुछ बेहतरीन पर्यटक स्थलों की सैर कर सकते हैं, जहां आपको प्रकृति के काफी करीब रहने का मौका मिलेगा. इसमें आपका खर्च भी काफी कम आएगा. चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कुछ ऐसे ही स्थलों के बारे में आज आपको जानकारी देते हैं.
यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ यात्रा के पड़ाव पर कुछ जगह ऐसी आती हैं, जहां पर पर्यटक आसानी से जा सकते हैं. इन स्थलों की सबसे रोचक बात ये है कि यहां न सिर्फ आपको प्रकृति के सुंदर नजारे देखने को मिलेंगे, बल्कि पर्यटकों को पहाड़ की संस्कृति से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा.
हरिद्वार और ऋषिकेश: हरिद्वार और ऋषिकेश को चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है. इन दोनों शहरों से ही तीर्थयात्री बस और अन्य संसाधनों से चारधाम के लिए निकलते हैं. ऐसे में आप जब चारधाम यात्रा आएं तो हरिद्वार में कुछ जगहों पर जाना कभी न भूलें. हरिद्वार में आप रोज शाम को हरकी पैड़ी पर होने वाली गंगा आरती की आनंद ले सकते हैं. इसके अलावा हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान के बाद हरिद्वार में ही मां मनसा देवी और चंडी देवी के दर्शन के लिए जा सकते हैं, जो हरकी पैड़ी से कुछ ही दूरी है. माता के ये दोनों धाम शक्ति पीठ हैं.
हरिद्वार के साथ ही ऋषिकेश भी चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव और अहम केंद्र है. ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट और परमार्थ निकेतन पर होने वाली गंगा आरती काफी प्रसिद्ध है. गंगा आरती के समय त्रिवेणी घाट का नजारा देखने लायक होता है. एडवेंचर के शौकीन पर्यटक गंगा में राफ्टिग कर सकते हैं.
देवी मंदिर और देवप्रयाग: ऋषिकेश से जब आप बदरीनाथ या केदारनाथ धाम के लिए निकलेंगे तो रास्ते में श्रीनगर में धारी देवी मंदिर पड़ेगा. इस मंदिर में स्थित माता की मूर्ति तीन में तीन बार अपना रूप बदलती है. धारी देवी मंदिर ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर ही स्थित है. धारी देवी मंदिर के बाद ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर देवप्रयाग आता है. देवप्रयाग पंच प्रयाग में से एक है और यहां अलकनंनदा व भागीरथी नदी का संगम होता है. इस संगम के बाद ही ये संयुक्त नदी गंगा कहलाती है. देवप्रयाग में ही श्री रघुनाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है.
बदीरनाथ धाम के आसपास के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल: यदि आप बदरीनाथ धाम जा रहे हैं तो लौटते समय फूलों की घाटी जरूर जाएं. 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की घाटी में 500 से ज्यादा फूलों की प्रजातियां देखने को मिल जाएंगी. प्राकृतिक सौंदर्य के लिए फूलों की घाटी विश्व विख्यात है. फूलों की घाटी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान पार्क के अंतर्गत आती है. यहां आपको कई वन्य जीवों का दीदार भी हो सकता है. इसके अलावा आप औली भी जा सकते हैं.
केदारनाथ धाम के बाद यहां जरूर जाए: केदारनाथ धाम जाने का मुख्य पड़ाव रुद्रप्रयाग पड़ता है. रुद्रप्रयाग जिले में आप तुंगनाथ जा सकते हैं. तुंगनाथ पंच केदरों में सबसे ऊंचाई पर स्थित है. मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भी पांडवों ने ही कराया था. तुंगनाथ मंदिर चोपता से करीब तीन किमी दूर है. चोपता भी पर्यटकों के घूमने के लिए बेहतरीन जगह है. चोपता का भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है.
रुद्रप्रयाग जिले में ही त्रियुगीनारायण मंदिर पड़ता है. ये मंदिर सोनप्रयास से करीब 12 किमी दूर है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. वर्तमान में ये स्थान वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी काफी प्रसिद्ध हो रहा है. इसके अलावा भी आप रुद्रप्रयाग के आसपास कई एडवेंचर एक्टिविजिज कर सकते हैं.
उत्तरकाशी: गंगोत्री और यमुनोत्री धाम का मुख्य पड़ाव उत्तरकाशी जिला है. उत्तरकाशी में आप काशी विश्वनाथ मंदिर जा सकते हैं. इसके अलावा गंगोत्री धाम के पास ही गंगोत्री नेशनल पार्क है. यहां आप करीब 25 किमी लंबा ट्रैक कर गोमुख भी जा सकते हैं, जिसे गंगा का उद्घम स्थल भी कहा जाता है. गंगोत्री नेशनल पार्क में पर्यटक हिम तेंदुए समेत कई वन्यजीवों का दीदार कर सकते हैं.
हर्षिल: उत्तरकाशी जिले में सेब के बगीचों और भगीरथी के तट पर बसा छोटा सा रमणीक स्थल हर्षिल हमेशा से पर्यटकों की पहली पसंद रहा है. पहाड़ी संस्कृति और खान-पान को जानना हो तो हर्षिल से बढ़िया जगह कोई नहीं है. यहां आप प्रकृति की गोद में होने का एहसास कर सकते हैं.
गर्तांगली: उत्तरकाशी जिले में ही भारत चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित गर्तांगली भी पर्यटकों को अपनी और आकृषित करती है. गर्तांगली की गिनती दुनिया की सबसे खतरनाक रास्तों में होती है. साल 1962 से पहले तक गर्तांगली के रास्ते ही भारत-तिब्बत के बीच व्यापार होता था. खड़ी चट्टनों को काटकर बनाए गया सीढ़ीनुमा मार्ग से गुजरना बेहद रोमांचकारी अनुभव होता है. गर्तांगली वास्तुकाल का अद्भुत नमूना है.