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MP में दिलचस्प हुआ तीसरे चरण का चुनाव, क्या जनता का मिलेगा आशीर्वाद

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
04/05/24
in राजनीति, राज्य, समाचार
MP में दिलचस्प हुआ तीसरे चरण का चुनाव, क्या जनता का मिलेगा आशीर्वाद
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भोपाल। मध्य प्रदेश में तीसरे चरण का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। इस चरण में तीन दिग्गज नेताओं का भविष्य तय होगा। ये तीन नेता हैं- महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया, बच्चों के मामा और बहनों के भैया शिवराज सिंह चौहान और राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा। सीत मई को होने वाले चुनाव में इन तीनों की साख दांव पर है। केंद्रीय उड्डयन मंत्री, सिंधिया 2019 में अपने पूर्व सहयोगी केपी यादव से मिली करारी हार के बाद पारंपरिक सीट गुना को दोबारा जीतने के लिए चुनावी रण में उतरे हैं।

आसान नहीं होगा गुना का रण

गुना से सिंधिया चार बार जीत हैं। इस लोकसभा की जनता पारंपरिक तौर पर सिंधिया घराने को वोट करती आई है। राजमाता’ विजयराजे से लेकर माधवराव और ज्योतिरादित्य तक को यहां विजयी मिली है। हालांकि उन्हें कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे यहां से हारने वाले पहले व्यक्ति होंगे। वह भी 1.25 लाख वोटों के अंतर से। तब से समीकरण बदल गए हैं। सिंधिया ने मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़ी थी। अब वे बीजेपी उम्मीदवार हैं। 2019 में बीजेपी द्वारा नायक के रूप में सम्मानित किए गए यादव अब खुद को दरकिनार महसूस कर रहे हैं।

गुना में एक रैली में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सिंधिया को ‘महाराज’ कहा और वोटर्स से अपील की कि वे ‘केपी यादव के बारे में चिंता न करें’ क्योंकि भाजपा उनके भविष्य का ख्याल रखेगी। शाह ने कहा, ‘आपको दो नेता मिलेंगे। ज्योतिरादित्य और केपी यादव। ज्योतिरादित्य बीजेपी के उम्मीदवार हैं। हममें से यदि कोई व्यक्ति विकास के प्रति पूरी तरह से समर्पित है तो वह यही महाराज हैं। सिंधिया परिवार ने इस क्षेत्र का अपने बच्चों से भी ज्यादा पालन (नर्चर) किया है।’

शाह के प्रचार के बावजूद गुना के किले तो फतह करना सिंधिया के लिए आसान नहीं होगा। इसका एक प्रमुख कारण यादव वोट बैंक है जिसने 2019 में उनसे मुंह मोड़ लिया था। इसके अलावा, कांग्रेस उम्मीदवार राव यादवेंद्र सिंह यादव, जनसंघ की विरासत वाले पूर्व भाजपा कार्यकर्ता हैं। उनके पिता राव देशराज सिंह यादव ने चंबल में भगवा पार्टी की स्थापना की थी और 2002 के लोकसभा उपचुनाव में सिंधिया को चुनौती दी थी, जो एक एयर क्रैश में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद हुए थे। हालांकि सहानुभूति वेव में ज्योतिरादित्य को चार लाख वोट से जीत मिली थी।

30 साल बाद राजगढ़ लौटे दिग्विजय

दिग्विजय सिंह 30 साल बाद राजगढ़ वापस लौटे हैं। उन्होंने इस सीट से तीन बार चुनाव लड़ा और 1984 और 1991 में जीत हासिल की। वहीं 1989 में उन्हें जनसंघ नेता प्यारेलाल खंडेलवाल ने हरा दिया। इसके बाद 1991 में सिंह ने खंडेलवाल को महज 1,470 वोटों से हराया था। दिसंबर 1993 में सीएम बनने के बाद दिग्विजय ने राजगढ़ सीट खाली कर दी। उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने इसके बाद हुए उपचुनाव में जीत हासिल की, और राजगढ़ से चार और चुनाव जीते। आखिरी चुनाव 2004 में भाजपा के टिकट पर लड़ा था। कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए, दिग्विजय ने 2009 में और व्यक्तिगत रूप से अपने भाई के खिलाफ नारायण सिंह अमलावे को पार्टी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा। कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रचार किया। अमलावे ने लक्ष्मण को 24,388 वोटों से हराया। यह आखिरी बार था जब राघोगढ़ के शाही परिवार ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था।

राजगढ़ दिग्विजय का क्षेत्र है, यहां 77 साल के नेता को राजासाहब के नाम से जाना जाता है। दिग्गी राजा समर्पित चुनाव अभियान चला रहे हैं, जिसके तहत वे सार्वजनिक बैठकों को संबोधित कर रहे हैं और एक दिन में 25 गांवों में वोटर्स से संपर्क कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए यहां जीतना मुश्किल है। दरअसल, राजगढ़ में आठ विधानसभा हैं, जिनमें से छह पर बीजेपी का कब्जा है। वहीं कांग्रेस के कब्जे वाली केवल दो सीटें राघोगढ़ और सुसनेर हैं। राघोगढ़ से दिग्विजय के बेटे जयवर्धन और सुसनेर से भैरों सिंह विधायक हैं। नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में जयवर्धन 4,505 वोटों से और भैरों 12,645 वोटों से जीते थे।

दोबारा दिल्ली जाने की आस में मामा

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा से चुनावी मैदान में हैं। यह बीजेपी का एक अभेद्य किला है जिसे आखिरी बार 1984 में कांग्रेस ने जीता था। सीएम बनने से पहले, चौहान ने 1991 से (जब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सीट को छोड़ा था) 2006 तक पांच बार लोकसभा में विदिशा से जीत हासिल की। चौहान दोबारा 18 साल बाद अपने गढ़ वापस लौटे हैं। कांग्रेस ने 1980 और 1984 में विदिशा जीतने वाले नेता प्रताप भानु शर्मा को मैदान में उतारा है। विदिशा वह जगह है जहां सुषमा स्वराज ने 2009 और 2014 में 4 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी। 2019 में, अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय रमाकांत भार्गव 5 लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे।

मामा शिवराज 16 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। लालडी बहना योजना ने उनकी लोकप्रियता को पीक पर पहुंचा दिया। इसकी बदौलत उन्होंने 8 लाख वोटों से जीत मिली। बीते बुधवार को बैतूल की एक सार्वजनिक सभा में पीएम मोदी ने कहा था कि वह चौहान को संसद ले जा रहे हैं। पीएम ने कहा था, ‘7 मई को विदिशा में चुनाव है जहां से मेरे भाई शिवराज जी उम्मीदवार हैं। मैं और शिवराज सिंह चौहान संगठन में साथ-साथ काम करते थे। जब मैं और वह मुख्यमंत्री थे, हम साथ मिलकर काम करते थे। जब मैं महासचिव के रूप में काम करता था तब वह संसद में थे। अब एक बार फिर से मैं उन्हें अपने साथ ले जाना चाहता हूं।’

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