दुनिया में अलग-अलग तरह के पुल हैं। कुछ प्रकृति की मदद से बने हैं, तो कुछ इंसानों के दिमाग की ऊपज हैं। हालांकि, इन पुलों ने इंसानों की जिंदगी को आसान बनाने का काम किया है। वाल्मिकी की ‘रामायण’ में भी जब भगवान राम, पत्नी सीता को रावण से बचाने के लिए लंका पर चढ़ाई करते हैं, तो अपनी सेना के लिए लंका तक पत्थरों की मदद से एक सेतू का निर्माण करवाया था, जिसे ‘राम सेतु’ कहा जाता है। कंबोडिया में एक ऐसा ही ब्रिज है, जो इस सेतु की याद दिलाता है। हालांकि, उसे बांसों की मदद से बनाया गया है। इस 3,300 फीट लंबे पुल को 50 हजार बांसों की मदद से पानी में खड़ा किया गया है, जो दिखने में बेहद अद्भुत लगता है।
हर साल इसे बनाया जाता है दोबारा
बरसात के मौसम से ठीक पहले, स्थानीय लोग इस पुल को तोड़ देते हैं। ताकि नदी में आने वाली बाढ़ इसमें लगे बांसों को बहा ना ले जाए। यह लोग ब्रिज के सभी बांसों को संभालकर रखते हैं। मौसम सही हो जाने के बाद हर साल वह इसे उन्हीं बांसों से दोबारा बनाते हैं। ऐसा हर साल किया जाता है। हालांकि, कंबोडिया में हुए गृह युद्ध के दौरान इस पुल को नहीं तोड़ा गया था। उस समय मजबूती से खड़ा रहा था।
इस पुल से गुजरते हैं ट्रक और गाड़ियां
यह पुल भले ही बांस के डंडों से बनाया गया हो। लेकिन इसकी मजबूती का सबूत इससे गुजरने वाले साइकिल, कार, मोटरसाइकिल और ट्रक देते हैं। बता दें, यह पुल मेकांग नदी पर बना है, जो कोह पेन के एक हजार परिवारों को काम्पोंग चम शहर से जोड़ता है।
इस पुल के इस्तेमाल पर देने पड़ते हैं पैसे
यह पुल निशुल्क नहीं है। इससे गुजरने के लिए स्थानीय लोगों को करीब 2 रुपये देने पड़ते हैं। जबकि विदेशी पर्यटकों से इसका 40 गुना लिया जाता है। अगर आपको यह ब्रिज देखना है, तो अप्रैल महीने में कंबोडिया हो आइए। और हां, जब यह ब्रिज हटा दिया जाता है, तो लोग नाव की मदद से एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं।