रुद्रपुर : उत्तराखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते पहाड़ों से पलायन एक समस्या बनी हुई है। पहाड़ों से पलायन कर लोग मैदानी इलाकों में आकर लोग रह रहे हैं। पलायन के बाद लोगों की पहली पंसद हल्द्वानी बन गया है। हल्द्वानी में जमीनों के आसमान छूते दामों के चलते शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती जमीन ढूंढकर लोग बस रहे हैं।
दून वैली (देहरादून जिला) पलायन कर रहे लोगों की दूसरी सबसे पंसदीदा जगह है। राज्य से बाहर की अपेक्षा राज्य के ही अंदर पलायन करने वालों की संख्या अधिक है। गांवों से कस्बों और कस्बों से शहर में लोग पलायन कर रहे हैं। ग्राम्य विकास एवं पलायन निंवारण आयोग के राज्य स्तरीय अंतरिम सर्वेक्षण की दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 के बाद गांवों व तोकों से सर्वाधिक 35 फीसदी पलायन नजदीकी कस्बों में हुआ है।
अन्य जिलों में 24 फीसदी, जिला मुख्यालयों में 18 फीसदी, राज्य से बाहर 22 फीसदी और विदेशों में महज एक फीसदी लोगों ने पलायन किया। गांवों से शहरों में आने की चाह रखने वालों को नैनीताल जिला सबसे अधिक लुभा रहा है। नैनीताल जिले के 121 गांवों और तोकों में नई आबादी बसी है। दूसरे नंबर पर देहरादून जिले के 101 गांवों में बीते पांच वर्षों में सर्वाधिक लोग बसे हैं। कुमाऊं की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदेश में सर्वाधिक 88 गांवों में नई आबादी बसी है।
अहम जिलों के 10 गांव हुए आबादी रहित
सामरिक दृष्टि से अहम सीमांत जिलों में कई गांवों का आबादी रहित होना चिंताजनक है। पिछले पांच सालों में नेपाल सीमा से लगे चम्पावत जिले के पांच और चीन सीमा से लगे पिथौरागढ़ के तीन और चमोली जिले के दो गांव आबादी रहित हो गए हैं।
पहाड़ों के 24 और गांव हुए ‘भुतहा’
2018 की अपेक्षा प्रदेश में पलायन में कमी जरूर आई है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में पहाड़ों से पलायन अब भी जारी है। अल्मोड़ा, चमोली, चम्पावत, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़ और टिहरी गढ़वाल के 24 गांव वर्ष 2018 के बाद निर्जन हो गए हैं। सर्वाधिक टिहरी गढ़वाल जिले के 9 गांव या तोक निर्जन हुए हैं। यहां अब आबादी नहीं रहती है।