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उत्तराखंड : हिमालय का अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है ये काला साया!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
02/05/22
in उत्तराखंड, देहरादून, मुख्य खबर
उत्तराखंड : हिमालय का अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है ये काला साया!

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देहरादून l हिमालय जितना विशाल है, पृथ्वी पर जीवन के लिए उसका महत्व उससे भी कहीं बड़ा है. लेकिन इंसानी गलतियों ने हिमालय पर एक नए खतरे को पैदा कर दिया है. ऐसा नहीं कि इसका अंदेशा किसी को ना हो. वैज्ञानिक इस खतरे को बार-बार जाहिर करते रहे हैं. आज बात उस नए खतरे को लेकर है जो उत्तराखंड में इस समय सबसे बड़ी समस्या के रूप में दिखाई दे रहा है. दरअसल, उत्तराखंड के जंगल इन दिनों खूब धधक रहे हैं. पहाड़ों पर आग की लपटें आसमान को छू रही हैं. इससे धुएं का गुबार चारों तरफ फैल रहा है. बस इस नए खतरे की शुरुआत यहीं से हो रही है.

हम बात करने जा रहे हैं हिमालय के उस जानी दुशमन की, जो धीरे-धीरे हिमालय का अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है. हिमालय के इस दुश्मन नम्बर वन का पता लगाया है वाडिया भू विज्ञान संस्थान उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने. हिमालय और इसके ग्लेशियर पर लंबे समय से शोध कर रहे वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय की सफेद चोटियों पर कार्बन अपने पांव पसार रहा है. हिमालय में कार्बन की मात्रा सामान्य से ढाई गुना बढ़कर 11800 नैनोग्राम/घन मीटर जा पहुंची है. यह ग्लेशियर की बर्फ को पिघलाने में आग में घी काम कर रही है. तापमान बढ़ने से पूरे हिमालय का इको सिस्टम प्रभावित हो रहा है.बर्फ को तेजी से पिघला रहा कार्बन: खास बात यह है कि इन दिनों जंगलों में लगी आग इस कार्बन को हिमालय पर बढ़ा रही है. आपको बता दें कि पहले भी कार्बन को लेकर वाडिया भू विज्ञान केन्द्र ने गंगोत्री के चीड़ बासा व भोज बासा क्षेत्र में कॉर्बन की मात्रा नापने के लिए अपने यंत्र स्थापित किए थे, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आये थे. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ बीपी डोभाल (Scientist Dr BP Doval) कहते हैं कि उत्तराखंड में जंगलों की आग हिमालय पर कार्बन को बढ़ा रही है. इससे सूर्य की किरणें रिफ्लेक्ट होने के बजाय कार्बन उसे एब्जॉर्ब कर रहा है, जिसके कारण ग्लेशियर के और भी तेजी से पिघलने की आशंका बढ़ गई है.

मात्रा: हिमालय रेंज में कार्बन की मात्रा में काफी वृद्धि हो रही है. इसकी मात्रा 11800 नैनोग्राम/घन मीटर दर्ज की गई. सामान्य रूप यह मात्रा लगभग एक हजार नैनोग्राम होनी चाहिए. तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने का सिलसिला पहले से ही जारी है. यह कार्बन संवेदनशील ग्लेशियरों के लिए अधिक घातक साबित होगा. विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा और सीधा प्रभाव हिमालय पर पड़ रहा है.

खिसक रही ट्री लाइन: ग्लोबल वार्मिंग के चलते ट्री लाइन धीरे-धीरे ऊपर खिसक रही है और जानवरों के रहने के स्थान भी. वैज्ञानिक बीपी डोभाल कहते हैं कि उत्तराखंड के पास दो संपदा हैं. पहला वन संपदा और दूसरा ग्लेशियर्स हैं. जिसके कारण उत्तराखंड में नदियों के रूप में पानी की संपदा मौजूद है. लेकिन एक तरफ जंगल जल रहे हैं, तो इसका सीधा प्रभाव ग्लेशियर पर हो रहा है.
पढ़ें- उत्तरकाशी में देवदार के दो लाख पेड़ों पर संकट, सुरेश भाई बोले 8 साल में देश में कटे 25 लाख पेड़उत्तराखंड पर संकट: डॉ. बीपी डोभाल कहते हैं कि जिस तरह जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं और ग्लेशियर पर बदले परिवेश का असर हो रहा है, उससे उत्तराखंड पर विभिन्न आपदाओं का खतरा भी बढ़ रहा है. पिघलते ग्लेशियर और लगातार बढ़ता तापमान यह इशारा कर रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं है. ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ने से हिमालय में हिमस्खलन (avalanche) का खतरा और बढ़ जाता है. साथ ही जीवों के आवास और उनके व्यवहार में आ रहा परिवर्तन एक गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रहा है, जिससे बड़ा नुकसान हो सकता है.हिमालय में सब कुछ ठीक नहीं: कार्बन से सबसे ज्यादा खतरा गंगोत्री, मिलम, सुंदरढुंगा, नेवला और चिपा ग्लेशियरों को है क्योंकि ये कम ऊंचाई पर स्थित हैं. यह सारे ग्लेशियर ज्यादातर नदियों के स्रोत हैं. ऐसे में अगर सरकार ने जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया तो हालात बेहद खराब होने वाले हैं. ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बता रही है कि हिमालय में कुछ भी ठीक नहीं है.

दो राज्यों में कार्बन उत्सर्जन की स्टडी: भारत सरकार ने भी खतरे को भांपते हुए दो राज्यों में कार्बन उत्सर्जन को लेकर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद को अध्ययन करने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन दो राज्यों में उत्तराखंड और मध्य प्रदेश शामिल हैं. उत्तराखंड में वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि निशांत वर्मा कहते हैं कि उम्मीद की जा रही है कि अगले साल तक अध्ययन के बाद जंगलों में लगी आग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का आंकड़ा, इस केंद्रीय संस्था की तरफ से उपलब्ध करा दिया जाएगा.

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