बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के लिए एक्सपर्ट्स अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहे हैं। इस जीत के बाद मीडिया में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, मल्लिकार्जुन खरगे और सिद्धारमैया के अनुभव से लेकर डीके शिवकुमार और प्रियंका गांधी वाड्रा की मेहनत की चर्चे हैं। यह सही भी है जितने भी नामों की चर्चा हो रही है इन सभी के साझा प्रयास के बाद देशभर में लगभग मिट्टी में मिल चुकी कांग्रेस ने कर्नाटक में जीत दर्ज की है। हम आपको इन नामों से इतर एक ऐसे शख्स के बारे में बता रहे हैं जो कहीं ना कहीं कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के थिंकटैंक के रूप में काम कर रहे थे। यह शख्स कोई राजनेता नहीं हैं, बल्कि वह प्रशांत किशोर की तरह चुनावी रणनीतिकार हैं।
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का थिंकटैंक कौन?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए थिंकटैंक के रूप में कार्य करने वाले शख्स का नाम है नरेश अरोड़ा। डिजिटिल मार्केटिंग के मास्टर माने जाने वाले नरेश अरोड़ा ने ही डीके शिवकुमार के साथ मिलकर पूरे कर्नाटक चुनाव की प्लानिंग की। टेक्सटाइल इंजीनियर की डिग्री हासिल करने वाले नरेश इस वक्त डिजिटल मार्केटिंग में जाना माना नाम हैं। पिछले दो साल से नरेश अरोड़ा की कंपनी डिजाइन बॉक्स (DesignBoxed) कर्नाटक में कांग्रेस और उसके नेताओं की पॉजिटिव छवि गढ़ने के मिशन पर लगी हुई थी। नरेश अरोड़ा ने सबसे पहले 2017 में हुए गुरदासपुर उपचुनाव में अपना जौहर दिखाया था। उसके बाद हिमाचल प्रदेश उपचुनावों में और पंजाब म्यूनिसिपल इलेक्शन 2018 और शाहकोट उपचुनाव 2018 सहित कई मौकों पर अपने कौशल का लोहा मनवा चुके हैं। इसके अलावा नरेश अरोड़ा पूरे भारत में प्रमुख नेताओं के लिए डिजिटल मीडिया अभियान प्रबंधन संभाल रहे हैं। साथ ही छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में सरकारों और राजनेताओं के लिए काम कर रहे हैं। नरेश अरोड़ा पंजाब सरकार के ड्रग फाइटिंग संगठन स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के डिजिटल मीडिया विशेषज्ञ भी हैं।
मूल रूप से अमृतसर के रहने वाले नरेश बेंगलुरु में रहत हैं। उनकी कंपनी डिजाइन बॉक्स 7 साल से चुनाव प्रबंधन का काम देख रही है। उनका मानना है कि वह लाइमलाइट में रहने के बजाय बैक से काम करने में विश्वास करते हैं। नरेश ने बताया कि वह राजस्थान में भी काम कर रहे हैं।
कर्नाटक में कैसे काम किया नरेश ने
डिजाइन बॉक्स के निदेशक नरेश अरोड़ा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर कहा कि वह पिछले दो साल से कर्नाटक के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने अपने सर्वे से डीके शिवकुमार को आश्वस्त किया था कि कांग्रेस 140 सीटें जीतेंगी। यह नंबर करीब-करीब बिल्कुल सटीक निकला है। अब तक के नतीजों में कांग्रेस को 136 सीटें आई हैं। नरेश बताते हैं कि 140 का मैजिक फिगर दो साल की मेहनत का नतीजा था। हमने कोई घर में बैठकर अनुमान नहीं लगाया था। जो बातें ग्राउंड से मिल रही थी उसी के आधार पर हम पहले से ही 140 सीटों की बात कर रहे थे।
5 गारंटी को जन-जन तक पहुंचाने पर दिया जोर
कांग्रेस को नये नरेटिव से प्रजेंट करने के सवाल पर नरेश ने बताया कि मीडिया या सोशल मीडिया में वही नरेटिव चलता है जो पार्टियां तय करती हैं। अगर कोई पार्टी तय कर ले कि उसे किन मुद्दों पर बात करनी है तो जाहिर सी बात है कि नरेटिव खुद ब खुद बन जाती है। कर्नाटक में पिछले दो साल से जो कैंपेन चली रिजल्ट में वही रिफ्लेक्ट हो रहा है। काफी रिसर्च के बाद कांग्रेस ने पांच गारंटी की बात कही। गांरटी की बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपको नई तकनीक चाहिए जिससे आप लोगों को पार्टी से जोड़ सकते हैं। जैसे 2000 रुपये फैमिली के हाउसहोल्ड को देना हो हाउस फिमेल हेड को देना हो, चाहे बिजली के 200 यूनिट की बात हो। जब आप वोटर की भाषा में बात करने की कोशिश करते हैं तो जरूर आपको सफलता मिलती है। सोशल मीडिया या मीडिया नरेटिव नहीं होता है, यह केवल नरेटिव को आगे बढ़ाने में व्हीकल का काम करता है, जैसे की दूसरे जरिए होते हैं।
कहां से कांग्रेस लेकर आई गारंटी शब्द
नरेश ने कहा कि असम के चुनाव में कांग्रेस ने सबसे पहली बार गारंटी शब्द दिया। असम के चुनाव में प्रचार के लिए समय का अभाव था, इस वजह से असम में कांग्रेस जीत तो नहीं पाई, लेकिन यह मूलमंत्र हासिल कर पाई कि इसे आगे कैसे ले जाया जा सकता है। इसी गारंटी शब्द को आम आदमी पार्टी ने पंजाब में यूज किया, जहां उनकी बात को पसंद किया गया और उनकी सरकार बनी। हालांकि आम आदमी पार्टी ने वही बात गुजरात में की, जहां कुछ दूसरी वजहों से उन्हें उतनी सफलता नहीं मिल पाई। उसके बाद हमने ऑरिजनली कर्नाटक चुनाव में गारंटी शब्द को यूज किया।
अगर गारंटी आप दे रहे हैं तो उसके पीछे एक विश्वसनीयता, प्लान और रोडमैप भी होना जरूरी होता है। जब आप किसी के पास कोई प्लान लेकर जाते हैं हो सकता है कि केवल हेडिंग देखकर आपको समझने में दिक्कत हो, लेकिन जब आपको आसान शब्दों में रोडमैप समझाने की क्षमता रखता हूं तो आपका रवैया बदल सकता है। निछले दिनों एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया बात करते दिखे कि उन्हें पहली कैबिनेट में सभी पांच गारंटी को पूरा करना है। कहीं ना कहीं ये सब बातें लोगों तक पहुंची और उसी वजह से 136 का नतीजा दिख रहा है।
कैसे एक साथ आए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया को एक साथ लाने के सवाल पर नरेश ने कहा कि बाहर केवल यह धारणा है कि दोनों अलग-अलग धुरी के हैं। जब तक उनके नजदीक नहीं जाएंगे तब नहीं जान पाएंगे। दोनों पार्टी के दिग्गज नेता हैं। एक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, दूसरे राज्य के पूर्व सीएम हैं। ये अलग बात है कि पहली बार दोनों को कैमरे पर एक साथ देखा गया, जिसके चलते लोगों को भरोसा मिला। वास्तव में दोनों खूब बातें करते हैं। टिकट बंटवारे में डीके शिवकुमार ने ज्यादा कुर्बानी दी। दोनों को मालूम है कि अगर पार्टी जीतेगी तभी जब दोनों साथ रहेंगे।
60 फीसदी वोट एकजुट किये बिना बीजेपी को हराया जा सकता है
बीजेपी के खिलाफ 60 फीसदी वोटों के एकजुट होने के सवाल पर नरेश ने कहा कि यह धारणा ही गलत है। 60 फीसदी वोट एकत्रित किए बिना भी मुकाबला किया जा सकता है। इसे आप हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में देख सकते हैं, इसलिए ये सब बातें होती रहती हैं। जहां तक वोट के विभाजन और एकत्रित होने की तो कांग्रेस को कर्नाटक चुनाव में जो फल मिला है वह कुछ हद तक सर्वव्यापी टेंपलेट हार्ड वर्क (मेहनत) का असर है। जब कांग्रेस पार्टी के नेता जमीन पर लगातार हार्ड वर्क करते रहे तो जनता जरूर भरोसा दिखाती है।
कर्नाटक का सीएम कौन बनना चाहिए?
इस सवाल के जवाब में नरेश ने कहा कि उनकी व्यक्तिगत राय है कि डीके शिवकुमार ने पिछले दो ढाई साल में काफी मेहनत और व्यक्तिग कुर्बानियां दी हैं। कुछ महीने पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि पिछली बार कर्नाटक में सरकार गिरी थी तब उनके पास डेप्युटी सीएम का ऑफर था, जिसे उन्होंने ठुकराया तो उन्हें जेल भेज दिया गया था। मैंने दो साल काफी मेहनत किया है, बहुत मेहनत की है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की लगातार निरंतरता ही उसकी जीत की वजह है। डीके शिवकुमार के विरोधियों से भी पूछेंगे तो वह कहेंगे डीके शिवकुमार ने पिछले दो साल में एक भी दिन छुट्टी नहीं की है। प्रदेश अध्यक्ष के नाते उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया है। उन्होंने राज्य में सबसे ज्यादा अंतर 1 लाख 22 हजार से भी ज्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज की है। कनकपुरा के लोगों ने उन्हें इतना वोट एमएलए बनने के लिए नहीं दिया है बल्कि अगला सीएम बनने के लिए दिया है।