नई दिल्ली: देश के सेंट्रल बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सीनियर ऑफिसर की ओर से एक ऐसी भविष्यवाणी कर दी है, जिससे अमेरिका और चीन दोनों की नींद उड़ सकती है. जी हां, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर माइकल डी पात्रा की मानें तो अगले कुछ सालों में भारत इकोनॉमी के मोर्चे पर चीन को पछाड़कर दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन सकता है.
वहीं अगले कुछ ही दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी भी बन सकता है. ऐसे में भारत दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने में ज्यादा समय नहीं बचा है. पिछले वित्त वर्ष में देश की जीडीपी ग्रोथ 8 फीसदी से ज्यादा देखने को मिली थी. मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ का अनुमान आरबीआई ले 7.2 फीसदी लगाया है.
कब बनेगा दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी?
डिप्टी गवर्नर माइकल डी पात्रा ने मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की मजबूत बुनियाद और अंतर्निहित क्षमता को देखते हुए देश 2031 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा. इसका मतलब है कि चीन भारत से पीछे चला गया जाएगा. उसके बाद उन्होंने कहा कि साल 2060 तक भारत दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी भी बन सकता है. ये दोनों की ही बातें अमेरिका और चीन की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं.
कितनी रह सकती है भारत की ग्रोथ
उन्होंने कहा कि इसके लिए भारत को श्रम उत्पादकता, बुनियादी ढांचे, सकल घरेलू उत्पाद में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान और टिकाऊ वृद्धि के लिए इकोनॉमी को हरित बनाने से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों से पार करना होगा. उन्होंने कहा कि मैंने जिन अंतर्निहित शक्तियों का जिक्र किया है और अपने आकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने के संकल्प को देखते हुए, यह कल्पना करना संभव है कि भारत अगले दशक में 2048 तक नहीं, बल्कि 2031 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी और 2060 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.
रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसा अनुमान लगाया गया है कि यदि भारत अगले दस वर्षों में 9.6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि करता है, तो यह निम्न मध्यम आय के जाल से मुक्त हो जाएगा और एक विकसित अर्थव्यवस्था बन जाएगा. पात्रा ने कहा कि इसका असर प्रति व्यक्ति आय में भी दिखना चाहिए. हालांकि, 2047 तक, विकसित देश के लिए प्रति व्यक्ति आय की सीमा 34,000 अमेरिकी डॉलर तक करने की जरूरत होगी.
पीपीपी बेस पर नंबर तीन पर है भारत
उन्होंने कहा कि बाजार में निर्धारित वर्तमान विनिमय दरें अस्थिरता के दौर से गुजर रही हैं. इसलिए राष्ट्रीय मुद्राओं में मापी गई जीडीपी की दूसरे देश से तुलना नहीं की जा सकती. ऐसे में एक वैकल्पिक उपाय क्रय शक्ति समता (पीपीपी) है. यह प्रत्येक देश में औसतन वस्तुओं और सेवाओं की कीमत से संबंधित है. पात्रा ने कहा कि पीपीपी के आधार पर तुलना करें तो स्थिति नाटकीय रूप से बदल जाती है. इस आधार पर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) का अनुमान है कि पीपीपी के संदर्भ में भारत 2048 तक अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.