चमोली/रुद्रप्रयाग. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में भगवान शिव का मंदिर स्थित है. इसे मध्यमहेश्वर अथवा मद्महेश्वर (Shree Madhyamaheswar Temple in Uttarakhand) के नाम से जाना जाता है. यह पंच केदारों में से एक मंदिर है और यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है. मद्महेश्वर मंदिर समुद्र तल से 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपनी स्वर्गारोहण की यात्रा के दौरान किया था.
इस मंदिर के चारों ओर चौखंबा के विशाल पर्वत हैं और पर्वतों के बीच सुनसान वादियों में भगवान शिव का यह मंदिर स्थित है. मंदिर के कपाट भी निश्चित समय के लिए खुलते हैं और शीतकाल में कपाट बंद कर दिए जाते हैं. ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान मद्महेश्वर का शीतकालीन निवास स्थान होता है. मद्महेश्वर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर बूढ़ा मद महेश्वर मंदिर भी स्थित है.
केदारनाथ मंदिर समिति के धर्माधिकारी ओंकार शुक्ला ने बताया कि हर साल हजारों शिवभक्त मध्यमहेश्वर मंदिर आते हैं और अपने आराध्य के दर्शन कर मनोकामना मांगते हैं. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है. उन्होंने बताया कि मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया (अप्रैल/मई) पर खुलते हैं और दीवाली के बाद सर्दियों के समय बंद हो जाते हैं. मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है. सुबह और शाम दोनों समय भगवान शंकर की आरती की जाती है.
यह है मंदिर की मान्यता
मद्महेश्वर मंदिर से संबंधित मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर सच्चे मन से ध्यान लगाता है, उसे शिव के परम धाम में स्थान मिलता है. यहां पिंड दान का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति यहां पिंड दान करता है, उनके पूर्वजों का उद्धार हो जाता है. साथ ही मान्यता है कि मंदिर परिसर में स्थित पानी की कुछ ही बूंदों से मोक्ष मिल जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस स्थान की सुंदरता को देखते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यही बिताई थी. इस वजह से इस स्थल की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है.
कब आए आएं यहां?
मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट गर्मियों में अप्रैल माह में खुलते हैं और शीतकाल नवंबर में भगवान केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद यहां भी कपाट बंद हो जाते हैं. मदमहेश्वर की डोली ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में शीतकाल में लाई जाती है.