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Home कला संस्कृति

इस बार बहुत खास है श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, 30 साल बाद बना ये शुभ योग!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
02/09/23
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
इस बार बहुत खास है श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, 30 साल बाद बना ये शुभ योग!

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गोरखपुर : गृहस्थ जीवन वालों के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी छह सितंबर को मनाना शुभ रहेगा। इस दिन अर्ध कालीन अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चंद्रमा का दुर्लभ एवं शुभ योग बन रहा है। निर्णय सिंधु के अनुसार आधी रात को यदि अष्टमी में रोहिणी का योग मिल जाए तो उसमें श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चन करने से तीन जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी तत्वों का दुर्लभ योग मिलने से 30 वर्ष के बाद इस तरह का शुभ योग बन रहा है।

पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को अर्द्ध रात्रि में वृष का चंद्रमा होने का कई वर्षों तक संयोग बना है, लेकिन साथ में रोहिणी नक्षत्र का योग नहीं बना। इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष का चंद्रमा और बुधवार का एक साथ मिलना कृष्ण भक्तों के लिए उत्साह का विषय है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र के योग से रहित हो तो केवला कही जाती है और रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो जयंती योग वाली कही जाती है। जयंती में यदि बुधवार का योग आ जाए तो वह अति उत्कृष्ट फल देने वाली कही जाती है। वैष्णव संप्रदाय को मानने वालों के लिए कान्हा का जन्मोत्सव सात सितंबर को है।

आचार्य पंडित शरदचन्द्र मिश्र के अनुसार गौतमी तंत्र में जयंती योग वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बारे में कहा गया है कि यदि इस दिन व्रत, अर्चन और उत्सव संपन्न किया जाए तो कोटि जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं और वह जन्म बंधन से मुक्त होकर परम धाम में निवास करता है। उस दिन व्रत और अर्चन करने से पितर भी प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं।

रात्रिकालीन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का है विशेष महत्व

जन्माष्टमी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ कपड़े पहनकर मंदिर में दीप जलाएं और सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद लड्डू-गोपाल जलाभिषेक कर भोग लगाएं और धूप व दीप जलाएं। रात्रि में पूजन के लिए तैयारी करें। जन्माष्टमी पर रात्रि में पूजन का विशेष महत्व होता है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्द्धरात्रि में हुआ था। रात्रि पूजन के लिए भगवान का झूला सजाएं। इसके बाद श्रीकृष्ण को पंचामृत या गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उनका श्रृंगार करें। इसके साथ ही पूजा में उन्हें मक्खन, मिठाई, मेवा, मिश्री और धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं। पूजा में भगवान श्रीकृष्ण की आरती जरूर करें।

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