नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव में अभी भले ही डेढ़ साल का वक्त बाकी हो, लेकिन सियासी ताना-बाना बुना जाने लगा है. 2024 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चेहरा बनने के लिए नेताओं की फेहरिश्त काफी लंबी है, लेकिन बिखरे हुए विपक्ष की एकता का सूत्रधार कौन होगा, ये सबसे बड़ा सवाल है. ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के केसीआर तक अपनी-अपनी कोशिशें कर रहे हैं तो कांग्रेस की भी अपनी दावेदारी है. इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पाला बदलने के साथ ही अब विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है.
मोदी के खिलाफ 2024 में बनने वाली विपक्षी एकता फिलहाल दो ध्रुवों में बंटी हुई नजर आ रही है. एक तरफ तीसरे मोर्चे की संभावनाएं टटोली जा रही हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस को साथ लेकर नीतीश कुमार ने सभी विपक्षी दलों को एक छतरी के नीचे एकजुट करने की कवायद शुरू की है. मिशन-2024 के तहत नीतीश इन दिनों दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं. इसी कड़ी में नीतीश ने सोमवार को राहुल गांधी और कुमारस्वामी से मुलाकात की थी तो मंगलवार को उनकी मुलाकात सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी और अरविंद केजरीवाल से हुई है.
इन तमाम प्रयासों के बीच बड़ा सवाल यही है कि मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन? नीतीश कुमार की बात करें तो पांच ऐसे फैक्टर हैं जिनके आधार पर वो 2024 में विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिशों में लगे हैं.
1. विपक्ष को नेता की तलाश
बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने और 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा बनने की जंग है. राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर और नीतीश कुमार तक कई नेता दावेदार हैं. विपक्षी दलों को ऐसे नेता की तलाश है, जिस पर सभी दल एकमत हो सकें. राहुल गांधी के नाम पर ममता, केजरीवाल और केसीआर तैयार नहीं हैं तो कांग्रेस भी इन तीनों में से किसी के नाम पर सहमत नहीं दिख रही है. अब बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एक करने की तैयारी शुरू कर दी है.
तेजस्वी यादव से लेकर अखिलेश यादव तक नीतीश के नाम पर रजामंद हैं तो केसीआर भी साथ खड़े हैं. देवगौड़ा ने भी हरी झंडी दे दी है. ऐसे में नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष की ओर से एक मजबूत नेता की जो तलाश की जा रही है, उसकी भरपाई नीतीश कुमार के रूप में हो सकती है. जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार को 2024 के चुनाव विपक्ष का चेहरा बनाने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार के चेहरे पर विपक्ष के ज्यादातर दल सहमत हो सकते हैं.
2. नीतीश की साफ सुथरी छवि
नीतीश कुमार के पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव है. नीतीश बिहार में 15 साल से ज्यादा समय से मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन अभी तक उनके ऊपर किसी तरह का कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है. नीतीश साफ-सुथरी छवि वाले नेता माने जाते हैं, इस बात को बीजेपी के नेता भी मानते हैं. नीतीश की यह सियायी ताकत उन्हें 2024 के चुनाव में विपक्षी एकता का सूत्रधार ही नहीं बल्कि मोदी के खिलाफ चेहरे बनने में भी मददगार साबित हो सकती है. नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से काफी बैलेंस बनाकर चलने वाले नेताओं में हैं, जिसके चलते सहयोगी दलों को भी किसी तरह की कोई दिक्कत होने की संभावना नहीं दिखती.
3. ओबीसी फैक्टर में फिट नीतीश
देश की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में नीतीश कुमार ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं, क्योंकि वो ओबीसी के कुर्मी समुदाय से आते हैं. बिहार से बाहर यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान में कुर्मी बीजेपी का परंपरागत वोटर है. नीतीश कुमार विपक्ष का चेहरा बनते हैं तो बीजेपी की कुर्मी वोटर ही नहीं बल्कि ओबीसी समीकरण भी बिगड़ सकता है. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को ओबीसी चेहरे के तौर पर पेशकर अपने सियासी समीकरण को मजबूत किया था. मौजूदा समय में विपक्षी खेमे से जो भी चेहरे प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार माने जा रहे हैं, उसमें नीतीश कुमार को छोड़कर कोई दूसरा नेता ओबीसी नहीं है. ये नीतीश कुमार के लिए बड़ा प्लस प्वाइंट बन रहा है.
4. कांग्रेस को भी हो सकते हैं स्वीकार्य
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है. कांग्रेस के बगैर कोई गठबंधन बनता भी है तो बीजेपी को देशभर में चुनौती नहीं दे पाएगा. विपक्ष में कांग्रेस ही एकलौती पार्टी है, जिसका सियासी आधार देशभर में है. विपक्ष की ओर जो भी चेहरे सामने आ रहे हैं, कांग्रेस उनमें से किसी पर भी सहमत होती नहीं दिख रही है. ममता बनर्जी से लेकर केजरीवाल और केसीआर तक पर राजी नहीं है. बीजेपी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने की मजबूरी में कांग्रेस नीतीश कुमार को स्वीकार्य कर सकती है और इसके पीछे कारण भी हैं. जेडीयू में नीतीश ही सबसे बड़े चेहरे हैं और उनकी पार्टी में उनके परिवार से कोई सियासी वारिस नहीं है. जेडीयू के बढ़ने से कांग्रेस को अपनीा राजनीतिक नुकसान नहीं दिख रहा है. बिहार में जेडीयू के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार में भी शामिल है. ऐसे में कांग्रेस नीतीश के चेहरे पर सहमत हो सकती है.
5. तीसरे फ्रंट को भी एकजुट कर सकते हैं नीतीश
कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी एकजुटता होती नहीं दिख रही है. यह बात उपराष्ट्रपति के चुनाव में साफ हो चुकी है. ममता से लेकर मायावती, चंद्रबाबू नायडू तक साथ नहीं आए थे. 2024 में मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता की जिस तरह की क्षत्रपों द्वारा कोशिशें हो रही हैं, उसमें कांग्रेस को माइनेस रखा जा रहा है. इस तरह तीसरे मोर्चे की कवायद की जा रही है, लेकिन नीतीश कुमार सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम में जुटे हैं. नीतीश गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी सभी दलों को एक साथ लाने के मिशन पर हैं. इसी कड़ी में लेफ्ट पार्टियों से लेकर केजरीवाल तक से वो मिल रहे हैं. इसके अलावा कई ऐसे दल हैं, जो कांग्रेस के साथ नहीं आ सकते हैं, लेकिन नीतीश की अगुवाई में विपक्ष के साथ गलबहियां कर सकते हैं.