नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के तीसरे कार्यकाल में अश्विनी वैष्णव को तगड़ा प्रमोशन मिला. लगातार दूसरी बार रेल मंत्री बने. साथ ही आईटी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय जैसे दो और भारी-भरकम पोर्टफोलिये मिले. वैष्णव ने IAS की नौकरी छोड़ी. फिर कॉरपोरेट की दुनिया में कदम रखा. यहीं से नरेंद्र मोदी के करीब आए और राजनीति में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए.
कौन हैं अश्विनी वैष्णव?
अश्विनी वैष्णव का जन्म 18 जुलाई 1970 को राजस्थान के पाली जिले में हुआ. बाद में उनका परिवार जोधपुर आ गया. वैष्णव की शुरुआती पढ़ाई सेंट एंथोनी कान्वेंट स्कूल जोधपुर से हुई. इसके बाद एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. यहां गोल्ड मेडलिस्ट रहे. इसके बाद आईआईटी कानपुर चले आए. यहां उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशंस इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल की.
27वीं रैंक के साथ बने IAS
अश्विनी वैष्णव का 1994 में सिविल सर्विस परीक्षा में चयन हुआ. उन्होंने ऑल इंडिया 27वीं रैंक हासिल की और IAS अफसर बने. ओडिशा कैडर मिला. वैष्णव की शुरुआती पोस्टिंग बालासोर और कटक जिले में डीएम के तौर पर हुई. जब ओडिशा में साल 1999 में भीषण चक्रवर्ती तूफान आया, तब वैष्णव पहली बार चर्चा में आए. उन्होंने राहत और बचाव के लिए फौरन कदम तो उठाया ही. साथ की निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को फौरन सूचना भिजवाई. इससे हजारों लोगों की जान बचाई जा सकी.
कैसे हुई PMO में एंट्री
वैष्णव साल 2003 में पहली बार दिल्ली आए और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पीएमओ में बतौर डिप्टी सेक्रेटरी नियुक्ति हुई. यहां उन्होंने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP Model) को लेकर जो पॉलिसी बनाई, उसकी खासी चर्चा हुई. 2004 में जब वाजपेयी की सरकार चली गई, वैष्णव तब भी उनके साथ रहे और बतौर प्राइवेट सेक्रेटरी काम करते रहे. वैष्णव को करीब से जाने वाले तमाम लोग कहते हैं कि एक तरीके से यहीं से उनकी भाजपा से नजदीकी बढ़ी.
IAS से क्यों दिया इस्तीफा?
अश्विनी वैष्णव ने साल 2008 IAS की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अमेरिका चले गए. वहां यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया की वॉर्टन स्कूल से एमबीए की डिग्री ली. फिर वापस लौटे तो उनकी दूसरी पारी शुरू हुई. ब्यूरोक्रेसी के बाद कॉरपोरेट जगत में कदम रखा और कम से कम एक दर्जन नामी कंपनियों के साथ काम किया. ज्यादातर में सीनियर मैनेजमेंट में थे और डायरेक्टर का पद संभाला.
वैष्णव ने साल 2012 में मारुति और उसके बाद होंडा जैसी कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने में मदद की. इसी साल उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पहली कंपनी का नाम थ्री टी ऑटो लॉजिस्टिक्स (Three Tee Auto Logistics) था, जो देश भर में वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स सर्विस उपलब्ध कराती थी. इस कंपनी में दिनेश कुमार मित्तल उनके पार्टनर थे. अश्विनी वैष्णव साल 2017 तक इस कंपनी के डायरेक्टर रहे.
वाइब्रेंट गुजरात समिट में हिस्सा
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक Three Tee Auto Logistics, नरेंद्र मोदी के गुजरात का सीएम रहते हुए लगातार वाइब्रेंट गुजरात समिट में हिस्सा लेती रही. साल 2017 में उनकी कंपनी ने गुजरात के हालोल और पंचमहल में भारी भरकम इन्वेस्टमेंट का ऐलान किया. वैष्णव की एक और कंपनी वी जी ऑटो कॉम्पोनेंट्स, सुजुकी मोटर्स की अहम पार्टनर थी और कॉम्पोनेंट्स वगैरह सप्लाई करती थी. वैष्णव इस कंपनी के भी साल 2017 तक डायरेक्टर थे.
कैसे आए नरेंद्र मोदी के करीब?
गुजरात में कामकाज के दौरान ही अश्विनी वैष्णव की नरेंद्र मोदी से नजदीकी बढ़ी. मोदी उनसे काफी प्रभावित हुए और टेक्नोलॉजी से जुड़े तमाम मसलों पर उनसे सलाह लिया करते थे. जानकार बताते हैं कि नरेंद्र मोदी की वैष्णव को पसंद करने की एक वजह यह भी है कि वह धड़ल्ले से गुजराती लिख, पढ़ और बोल लेते हैं. वैष्णव के वंशज गुजरात के भावनगर से ही राजस्थान गए थे.
मंत्री बने तो बदलवा दी ऑफिस टाइमिंग
अश्विनी वैष्णव के साथ काम कर चुके ओडिशा के पूर्व चीफ सेक्रेटरी सहदेव साहू कहते हैं कि वैष्णव जब एक बार कोई चीज ठान लेते हैं तो पूरा किए बगैर पीछे नहीं हटते. साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, वैष्णव तब भी उनके संपर्क में रहे. मोदी के चलते ही वह नेशनल पॉलिटिक्स में सक्रिय हुए. मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में दूसरी बार रेल मंत्री बनने के बाद वैष्णव 11 जून को सुबह 8:00 बजे ही कार्यभार ग्रहण करने पहुंच गए.
वैष्णव टाइम के काफी पाबंद माने जाते हैं. जब पहली बार रेल मंत्री बने तो अपने ऑफिस की टाइमिंग बदलवा दी. ऑफिस स्टाफ को दो शिफ्ट में काम करने को कहा. पहली शिफ्ट सुबह 7:00 बजे शुरू होती थी और दूसरी शाम को 4:00 बजे से आधी रात तक. ताकि हर वक्त कोई न कोई ऑफिस में उपलब्ध रहे.
उन्होंने कहा कि इच्छा + स्थिरता = संकल्प और संकल्प + परिश्रम = सिद्धि. जहां कोई नहीं पहुंचा, वहां अपने देश को हमें पहुंचाना है. सफल इंसान वो होता है, जिसके भीतर का विद्यार्थी कभी मरता नहीं है. उन्होंने कहा कि इस विजय के बड़े हकदार भारत सरकार के कर्मचारी भी हैं, जिन्होंने एक विजन के लिए खुद को समर्पित कर दिया.