डॉ मनोज तत्वादी
विज्ञान-अध्यात्म विषयों के अभ्यासक. लेखक इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ सायंटिफिक हेरिटेज,
जगद्गुरू श्रीदेवनाथ इन्स्टिट्यूट फॉर वैदिक एंड सायंटीफिक रिसर्च के आजीव सदस्य एवं
राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न सामजिक संगठनो से जुडे है. वर्तमान में भारतीय जन-संचार संस्थान-आय.आय.एम.सी. (पश्चिमी क्षेत्र) व युनिसेफ के प्रकल्प समन्वयक है.
कथा एक व्यथा की : जन्म गाथा मिशन की
रविवार, 4 फरवरी 1872 भारत की कोलाबा वेधशाला बॉम्बे (अब, अलिबाग वेधशाला-मुंबई) में दर्ज की गई घटना, जिसने अंतरीक्ष वैज्ञानिकों को एक तरफ अध्ययन का बहुत सारा डेटा दिया तो दूसरी ओर घटना के विश्लेषण ने उन्हें पृथ्वी के भविष्य की चिंता में व्यथित भी बहुत किया.
घटना थी रविवार सूर्यास्त के पश्चात बॉम्बे में सौर-ज्वाला को नग्न आंखो से देखा जा सकना. इस घटना को मंगलवार, 6 फरवरी 1872 के टाईम्स ऑफ इंडिया अखबार ने बडी ही प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था. विश्व भर की करीब 20,000 किलोमीटर लंबी टेलिग्राफ लाईन व उपकरण से लेकर ब्रितानी-भारतीय पनडूब्बी केबल और महत्त्वपूर्ण शासकीय केबल खराब हुई. विदेशो में कुछ स्थानो पर सौर-ज्वाला इतनी तीव्र थी की उसकी रोशनी में अखबार भी पढा जा सकता था. विज्ञान जगत को चौंका देने वाली इस घटना को उसके अभ्यासक ब्रिटिश खगोलशास्त्री रिचर्ड कैरिंगटन के सम्मान में नाम दिया गया-कैरिंगटन-इफेक्ट.
क्या है सोलर फ्लेयर?
सोलर फ्लेयर्स को सौर तूफान या कोरोनल मास इजेक्शन भी कहा जाता है। कई बार सूर्य के धब्बे (सनस्पॉट) का आकार 50 हजार किलोमीटर के व्यास का भी होता है। ऐसे में इसके अंदर से सूर्य के गर्म प्लाज्मा का बुलबुला भी निकलता है। इस बुलबुले के विस्फोट से सोलर फ्लेयर्स निकलते हैं। सूरज के धब्बो के बारे में जहां एक ओर वैज्ञानिको में खासी जिज्ञासा और चर्चा है तो कवि-शायर भी इस विषय से अछूते नही है. शायर अकबर इलाहाबादी ने कह डाला कि – सुरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे है!
बुत हमको कहे काफिर अल्लाह की मर्जी है!! खैर..
सूर्य से निकलने वाली ज्वालाओं की तीन श्रेणी होती है। सबसे अधिक नुकासानदेह व बड़ी एक्स- श्रेणी(क्लास) है। यह सेटेलाइट और हवाई जहाज के सिग्नलों को भी नुकसान पहुंचा सकती है। एम-श्रेणी की ज्वाला की तीव्रता अपेक्षाकृत मध्यम और सी- श्रेणी की फ्लेयर सबसे छोटी होती है। किंतु इनमें से किसी की भी दिशा जब पृथ्वी की ओर यानी अर्थ-डायरेक्ट होती है तो वह अपनी श्रेणी के हिसाब से खतरनाक साबित होती है। सौर ज्वाला से शक्तिशाली विकिरण का प्रस्फोट होता है जो अंतरिक्ष और पृथ्वी दोनों में मौजूद तकनीकी उपकरणों को खराब करने की क्षमता रखते हैं. सौर ज्वाला से आने वाले ये विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल को भेदकर इंसानों को तो नुकसान नहीं पहुंचा सकते, लेकिन ये इतने तीव्र जरूर होते हैं जिससे वायुमंडल की परतों वाले जी.पी.एस और संचार संबंधी, पावर-ग्रिड उपकरणों में भारी खराबी पैदा कर सकते हैं. आप अनुमान लगा सकते है उस विश्व-व्यापी अफरातफर का जो एक सौर ज्वाला आसानी से मचा सकती है!इसलिये सौर ज्वालाओंकी सही जानकारी का मिलना किसी एक देश की नही बल्की विश्व की आवश्यकता है. यह एक बार फिर साबित हुआ की आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. ऐसी पेचीदा जरूरतो ने मानो सूर्य को गहराई से समझ कर उपाय खोजने की चुनौती दी अंतरीक्ष वैज्ञानिको को..
सूर्य : तेजो-निधी लोह-गोल
पहली कक्षा की यह सरल शब्दो की कविता सब को याद आयेगी कि-
बड़े सबेरे मुरगा बोला, चिड़ियों ने अपना मुँह खोला।
आसमान पर लगा चमकने, लाल-लाल सोने-सा गोला।
ठंडी हवा बही सुखदायी, सब बोले दिन निकला भाई।।
इसमें सूर्य को सुबह-सुबह दिखने वाला स्वर्णिम आभा का गोला कहा गया है, जो एक सच है. सूर्य गैस का एक अत्यंत विशाल गोल है. सौर-मंडल के चट्टानी ग्रहों की तरह सूर्य की कोई निश्चित भौगोलिक सीमा नहीं है। सूर्य के बाहरी हिस्सों में गैसों का घनत्व उसके केंद्र से बढ़ती दूरी के साथ तेजी से गिरता है। किंतु, इसकी एक आंतरिक संरचना है। सूर्य की त्रिज्या(रेडिअस) को इसके केंद्र से लेकर प्रभामंडल के किनारे तक मापा गया है। सूर्य का बाह्य प्रभामंडल दृश्यमान अंतिम परत है। इसके उपर की परते पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित करने के लिहाज से अपेक्षाकृत ठंडी या पतली है अत: नग्न आंखों से इन्हे देखना संभव नही है.। किंतु, पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान जब प्रभामंडल को चंद्रमा द्वारा छिपा लिया गया हो , इसके चारों ओर सूर्य के कोरोना का आसानी से देखा जाता है।
सूर्य का आंतरिक भाग प्रत्यक्ष प्रेक्षणीय नहीं है। सूर्य स्वयं ही विद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए अपारदर्शी है। हालांकि, जिस प्रकार भूकम्प विज्ञान पृथ्वी की आंतरिक संरचना को प्रकट करने के लिए भूकंप से उत्पन्न तरंगों का उपयोग करता है, सौर भूकम्प विज्ञान का नियम इस तारे की आंतरिक संरचना को मापने के लिए दाब तरंगों ( पराध्वनी) का इस्तेमाल करता है। इसकी गहरी परतों की खोजबीन के लिए अति उन्नत कंप्यूटर मॉडलिंग भी सैद्धांतिक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए है।
आदित्य एल-1 के प्रमुख कार्य
सूर्य किरीट- कोरोना, प्रकाश मंडल, वर्ण मंडल, सूर्य-ज्वाला, कोरोनल मास इजेकशन का अध्ययन व संबंधित डाटा का प्रक्षेपण साथ ही एल-१ बिंदू से सूर्य की चौबिसो घंटे अलग अलग कोण एवं अवस्था में चित्रीकरण इसरो केंद्र के वैज्ञानिको से सज्हा करना जिससे वे इस रियल टाईम डेटा का विश्लेषण कर सके.
आदित्य एल-1: सूर्य के अध्ययन हेतू भारत का पहला मिशन
इसरो(आय एस आर ओ) ने नियोजन के शुरुआती दौर में यह तय हुआ था की पृथ्वी से मात्र 800 किलोमीटर दूर अंतरीक्ष-कक्षा में 400 किलोग्राम वजन का उपग्रह स्थापित किया जायेगा, जिसमे मुख्य पे-लोड के रूप से वी ई एल सी होगा. परंतु बाद में इसे लाग्रन्जिअन बिन्दु (एल-1) पर स्थापित करने का निर्णय लिया गया. एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 एवं एल-5 ऐसे पांच विशेष बिन्दुओं की खोज करने वाले इतालवी-फ्रांसिसी गणितज्ञ जोसेफ लुई लाग्रांज के सम्मान में इन बिन्दुओ को उनके नाम से जाना जाता है. पृथ्वी और सूर्य के बीच लाग्रन्जिअन बिन्दु वह जगह है जिस पर दोनों ओर का गुरुत्वीय खींचाव बराबर होता है एवं उपग्रह बिना किसी अवरोध के सूर्य को निरंतर अवलोकन कर सकता है. यहां रहने से अंतरीक्ष वाहनो की उर्जा खपत में भी बचत होती है. अत: अब मिशन को कहा गया आदित्य-एल-1 क्योंकि यह स्थापित होगा एल-1 बिंदू पर, जो पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है. अब इसमे मात्र एक नही बल्की अति उन्नत खोजी यंत्र और लेंस से लैस कुल सात पे-लोड होंगे.
इस वर्णन में लक्षणीय मुद्दा यह् भी है कि सब पे-लोड का निर्माण भारतीय संस्थानो में हुआ है. इसरो के निदेशक डॉ उन्नीकृष्णन नायर ने आत्मविश्वास के साथ जानकारी दी की वर्ष २०२२ की तिसरी तिमाही में आदित्य एल-१ को अन्तरिक्ष में ले जाना वाला वाहन- पी एस एल वी-एक्स एल को आंध्रप्रदेश के श्रीहरीकोटा से प्रक्षेपित किया जाएगा. प्रत्येक भारतीय के लिये गर्व का विषय है.
प्राचीन संस्कृततियों में सूर्य
पृथ्वी के प्रत्येक कोने में तारो से भरा आकाश और सूर्य सदा से ही कुतूहल एवं खोज का विषय रहा है- सभी वर्ग के लोग इनसे आकर्षित हुए है. अमेरिका के रेड इंडियन भी अनेक प्रकार की सूर्य-कथाए कहते रहे है. चीन के प्राचीन विद्वानो ने सूर्य को यांग और चंद्र को यीन कहा. सूर्योपासना के प्रसंग भी वहां मिलते है. बौद्ध जातको में भी सूर्य-प्रसंग आते है. ईसाईयो ने “न्यू टेस्टामेंट“ में सूर्य के धार्मिक महत्त्व का कई बार वर्णन आता है. इसे प्रभु का दिन माना गया है. ग्रीक और रोमन विद्वानो ने भी सूर्य के दिन अर्थात रविवार को पूजा का दिन स्वीकार किया.
भारतीय संस्कृति मे सूर्य
“सरति आकाशे-इति सूर्य:”- जो आकाश में बिना किसी आधार के भ्रमण करता है अथवा “सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयति”- जो ( उसके उदय होने मात्र से) अखिल विश्व को अपने-अपने कर्म में प्रवृत्त कराता है, वह् सूर्य है. ऋग्वेद संहिता तो कह्ती है कि “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च” अर्थात सूर्य जगत कि अन्तरात्मा है.
हमारे देश का नाम भी सूर्य कि तेजस्विता एवं आभा से प्रेरित ही है. भारत शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है । भा +रत । भा” याने आभा, प्रभा अथवा तेजस्विता | भा अर्थात् ज्ञान रूपी प्रकाश और रत अर्थात् लगा हुआ । अत: भारत का अर्थ हुआ : वह भूमि जिसके निवासी ज्ञान की खोज में लगे हुए हों ।
मेरा भारत महान… बनेगा कब ?
विज्ञानवादी मानते है की वैज्ञानिक कसीनी ने सन 1672 में सूर्य और पृथ्वी की दूरी को बताया. वही, “जुग सहस्त्र जोजन पर भानु !” बाल हनुमान के परम कुतुहल के साथ ही तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में इतने सरल एवं कम शब्दों में पृथ्वी से सूर्य कि दूरी भी बता डाली. उनका जीवन काल सन 1532 से सन 1632 तक था. इनकी मृत्यु के करीब 50 वर्षो बाद कसिनी के आंकडे जग-जाहीर हुए. अब इसे केवल संयोग कहने कि गलती हम भारतीय तो न ही करे. सूर्य-सहस्त्र-नामावली, सूर्य-स्नान, सूर्य-पुराण, सूर्योपासना, सूर्य-नमस्कार, सूर्य-कवच, सूर्य-ग्रहण, उत्तरायण, दक्षिणायन और जीवन, पृथ्वी से लेकर संपूर्ण ब्रम्हांड के विषय में वैदिक,पौराणिक ऐतिहासिक ऐसे अनगिनत संदर्भ व प्रसंगो का तीव्र-स्मरण आज इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकी यह बताते है की प्राचीन भारतीय ज्ञान की परिधी अत्यंत विस्तृत एवं विशाल है. दुर्भाग्य से सच यह है कि, आज भी हमें किसी भारतीय ने संस्कृत में कही हुई बात से अधिक भरोसा किसी अंग्रेज ने और अंग्रेजी में कही बात पर है. तो ठीक है, सुनते है, कि प्राचीन भारतीयो ने संस्कृत में कही बातो के बारे में अंग्रेजो ने अंग्रेजी में क्या कहा?
“It looks like that the writers of Vedas and Purana came from the future to deliver knowledge. The works of the Ancient Arya Sages is mind blowing. There is no doubt that Puranas and Vedas are word of God.”– Scott Sanford, Space Scientist, N.A.S.A.
प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेनहार अपने पास उपनीखत( अर्थात उपनिषद) की लेटीन भाषा में अनुवादित एक प्रत रखते थे. चलिये सुनते है इस विदेशी विद्वान को- Arthur Schopenhauer commented, “In the whole world there is no study so beneficial and so elevating as that of the Upanishads. It has been the solace of my life; it will be the solace of my death.” इन महाशय पर श्रद्धा रखने वाले पढे-लिखे एवं विद्वान जन बहुत थे. उनमे एक थे ऑस्ट्रिया से भौतिकशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता अर्विन श्रोडिंगर.
Erwin Schrodinger said “There is obviously only one alternative, namely the unification of minds or consciousnesses. Their multiplicity is only apparent, in truth there is only one mind. This is the doctrine of the Upanishads.”
इसरो के वैग्यानिको ने अथक प्रयास कभी नही छोडा,आदित्य एल-1 निश्चित रूपेण कामयाब होगा. इसकी सफलता के उपरांत आदित्य एल-5 को भी भेजने की तैयारियां चल रही है. सरकार उनके अपने तरीके और गति से ऐसे कार्यो को संबल देती है. बचती है जनता ! इस विषय में संकीर्ण व संकुचित है तो बस, हमारी ही दृष्टी! इसलिये सदियो से हमें हमारे बारे में सिर्फ उतनी ही जानकारी है जितनी औरो ने, बाहर वालो ने हमें बताई और अब दूसरो को दोषी सिद्ध करने से भी कुछ हासिल नही होगा.
उत्तिष्ठत! जाग्रत ! प्राप्य वरान्निबोधत !
आज हमारी प्राचीन और अकूत ज्ञान संपदा पर अटूट श्रद्धा से देखने कि आवश्यकता है. किन्तु, साथ ही संस्कृत को समझने और देव-भाषा में उपलब्ध वेद-उपनिषद-पुराण-शास्त्र-श्रीमदभागवत्-भगवद्गीता इत्यादि प्राचीन ग्रन्थो में निहित ज्ञान को विज्ञान की दृष्टि से परखने के नियोजन बद्ध प्रयास होने ही चाहिये. अब देखिये, अथर्ववेद सूर्योपनिषत कि एक ऋचा- “आनन्दमयो ज्ञानमयो विज्ञानानमयो आदित्य:I” आप को नही लगता की हमारी विरासत में ऐसा बहुत कुछ है जो हमने समझा ही नही, जाना नही, ईमानदार कोशिश भी नही की. अब नये सिरे से ऐसे सभी बिन्दुओ पर सुधी जन-गण मन:पूर्वक मनन करेंगे. ऐतिहासिक भारत के स्वर्णिम ज्ञान-पृष्ठो पर, भारतीयो ने ही डाली हुई भारतीय धूल को झाडने-झटकने भारतीय हाथ जिस क्षण उठेंगे वह होगा बहुप्रतीक्षित सुमुहूर्त, जो सुनिश्चित करेगा विश्व-गुरु पद पर भारत के राज्याभिषेक का.
!! आदित्याय विद्महे I भास्कराय धीमही I तन्नो सूर्य: प्रचोदयात !!