गौरव अवस्थी ‘आशीष’
रीवा राज्य की स्थापना गुजरात के महाराजा व्याघ्रराव (बाघ राव) ने करीब 12 सौ वर्ष पहले की थी। इन्हें बघेलवंशी राजा माना जाता है। इन्हीं की वजह से रीवा राज्य बघेलखंड कहलाया। रीवा राज्य छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला था। आज महाराजा बाघराव की 36 वीं पीढ़ी यहां मौजूद है। राजवंश के मौजूदा प्रतिनिधि पुष्पराज सिंह हैं।
रायबरेली-रीवा के मिलन का माध्यम रीवा की सामाजिक कार्यकर्ता अंजू दिवेदी बनीं। सोशल मीडिया पर संपर्क के बाद वह आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अनुयाई परिवार का सदस्य खुद तो बनी ही अपनी सामाजिक कार्यकर्ता मित्र वंदना गुप्ता को भी स्पाई वालों से मिला दिया। आचार्य स्मृति दिवस पर 2 वर्ष से लगातार वह पधार रही हैं। पिछले साल आयोजित कार्यक्रम में वह अपनी सामाजिक कार्यकर्ता मित्र वंदना गुप्ता के साथ पधारीं थीं। ठीक एक साल बाद 21 नवंबर 2021 को हम प्रज्ञा (धर्मपत्नी) के साथ रीवा में थे। उनकी आत्मीयता और वंदना जी का केक के साथ पधारना, संबंधों के दिन पर दिन प्रगाढ़ होने का सबूत है।
महान भजन गायक प्रदीप का यह भजन.. “अपना सोचा कभी नहीं होता..”आपने सुना ही होगा। यही आज घटित हुआ। घर से सोचकर चले थे कि रीवा में आचार्य द्विवेदी अनुयाई परिवार से मिला-भेंटी के बाद अगला पड़ाव रामवन होगा। सतना के पर्यटन स्थल रामवन के बारे में प्रसिद्ध है कि भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के समय इधर से गुजरे थे। यहां हनुमान जी की विशाल मूर्ति और मंदिर के साथ ही तुलसी संग्रहालय काफी ख्यात है। यह संग्रहालय १९३६ में सतना के एक सेठ ने स्थापित किया था। अब यह पुरातत्व विभाग के पास है। यहां एक से एक पांडुलिपियां होने का पता चला था। यहां आने के बाद रामवन जाना स्थगित हो गया। हम दोनों अंजू जी के परिवार के साथ पहुंच गए रीवा से 20 किलोमीटर दूर गोविंदगढ़। यहां पहाड़ों के ऊपर स्थित खन्धो माई के मंदिर में माथा टेकना भाग्य में बदा था।
मंदिर में काली माई की मूर्ति विराजित है। गोविंदगढ़ के कांग्रेस नेता अभय पांडे “पंकज” बता रहे थे कि रीवा रियासत के महाराजा रघुराज सिंह ने करीब 350 वर्ष पहले माई का मंदिर बनवाया था। वह रीवा रियासत के तीसवें वंश के शासक थे। इस समय रीवा रियासत में 36वें वंश के शासक मौजूद हैं। स्थानीय लोग यहां स्थापित काली माई की मूर्ति को मैहर की काली माई के रूप में मानते हैं। मैहर में शारदा माता विराजित हैं। अंजू जी की नवविवाहित ननद के आशीर्वाद समारोह में शामिल होने का अवसर अपने आप मिला।
व्हाइट लायन सफारी
रीवा से करीब 15 किलोमीटर दूर मुकुंदपुर गांव में व्हाइट लायन सफारी भी छोटे-बड़े सबके देखने के लिए अच्छी जगह है। यहां जू के साथ-साथ सफारी है। इसमें सफेद शेरों के अलावा अन्य शेर और जंगली जीव भी हैं। 365 एकड़ में बने इस सफारी को अस्तित्व में लाने का श्रेय स्थानीय विधायक और मंत्री रहे राजेंद्र शुक्ला जी को है। वर्ष 2011 में उन्होंने वाइट लायन सफारी सरकार से मंजूर किया था। वर्ष 1916 में यह लोगों के लिए खोल दिया गया। व्हाइट लायन का इतिहास भी बहुत पुराना है। दुर्लभ सफेद बाघों की कहानी यहां आप देख भी सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं। सफेद बाघ को संरक्षित करने की कोशिश 27 मई 1951 को शुरू हुई थी। तभी से मोहन नाम दिया गया था गोविंदगढ़ के बाद महल में आज 1976 को आखरी सफेद बाघ विराट में अंतिम सांस ली। दुनिया में विंध्य का नाम रोशन करने वाले सफेद बाघ इतिहास बन गए। इतिहास को वर्तमान बनाने में राजेंद्र शुक्ल की कोशिश कामयाब हुई और आज लोग व्हाइट लायन सफारी बड़ी संख्या में देखने, सुनने और घूमने आते हैं।
रीवा के प्रसिद्ध चिरहुला और पपरा हनुमान मंदिर
रीवा में हनुमान जी के इंदौर प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों मैं दर्शन किए बिना लौटना अपने साथ ही इंसाफ नहीं होगा। शहर से 5 किलोमीटर दूर चिरहुला हनुमान मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यहां हनुमान जी का विग्रह मनमोहक है। मंदिर की तीनों दीवारों पर हनुमान जी के नौ ग्रहों की मूर्तियों की स्थापना इस मंदिर को सबसे अलग पहचान देती है। अभी तक हमने किसी भी हनुमान मंदिर की दीवारों पर विभिन्न मुद्रा के विग्रह के दर्शन का सौभाग्य नहीं प्राप्त किया था। यह केवल यही मिला। पपरा का हनुमान मंदिर रीवा से करीब 30 किलोमीटर दूर गोविंदगढ़-शहडोल-मैहर मार्ग पर स्थित है। मान्यता है कि हनुमान जी का विग्रह स्वयंभू है। पहाड़ के पत्थर काटते समय हनुमान जी का यह विग्रह प्रकट हुआ था। हनुमान जी की मूर्ति आदि पत्थर में धंसी हुई है और आधी बाहर निकली हुई। यहां भव्य पक्का मंदिर के कई प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली। टीन शेड और लोहे के पाइप पर ही अस्थाई मंदिर बना हुआ है।
जीवन लेने-देने से जुड़ा गोविंदगढ़ तालाब
कस्बे के गोमती चौराहे से बेला रोड पर भारी भरकम गोविंदगढ़ तालाब के उस छोर पर अस्ताचलगामी सूर्यदेव की छटा शब्दों के बयान करना मुश्किल है। गोविंदगढ़ तालाब की कहानी सुख और दुख दोनों से पटी है। दो दशक पहले लगातार चार-पांच साल बारिश ना होने पर तालाब के पानी ने रीवा की प्यास बुझाई थी। विशेष का बंद कर तालाब के पानी को रीवा ले जाया गया था। रीवा के महाराजा ने गोविंदगढ़ में अपने किले की सुरक्षा के लिए चारों तरफ तालाब खुदवाए थे। दशकों पहले सूखा पड़ने पर लोगों का जीवन बचाने के लिए महाराजा ने गोविंदगढ़ तालाब खुदवाकर लोगों को रोजगार दिया था।
सैकड़ों एकड़ भूमि पर तालाब से जुड़ा एक दुखद कथानक 15 साल पहले का है। जब एन धनतेरस के दिन सवारियों से भरी एक बस तालाब में गिर गई थी। 99 लोग इस हादसे में मारे गए थे। हादसे वाली जगह पर स्मृति स्तंभ का निर्माण भी कराया गया है। स्तंभ में हादसे में मारे गए लोगों के नाम दर्ज हैं। ऐसे ही एक नाव के डूबने का दुखद हादसा भी तालाब में हो चुका है। जितेंद्र अंजू द्ववेदी के फार्म हाउस पर आ मॉल अमरूद की बगिया का आनंद भी इस यात्रा में हमको और प्रज्ञा दोनों को मिला। ताजे अमरूद मिलते कहां है? जितेंद्र द्विवेदी के साथ ही स्कूल में पढ़ाने वाले महेंद्र मिश्रा जी ने विस्तार से गोविंदगढ़ के इतिहास से भी परिचित कराया। रीवा की यात्रा जाते और आते दोनों वक्त आनंददाई रही। इस यात्रा को भविष्य में भी भूल पाना संभव नहीं होगा।