गौरव अवस्थी “आशीष”
समुद्र तल से करीब 3340 फीट ऊंचाई पर बसे अमरकंटक का नाम तो बचपन से पिताजी (स्व. कमला शंकर अवस्थी) से सुनता आया हूं पर आना पहली बार हुआ। यहां आने का रोमांच दोगुना था। पिताजी के आने-यहां के किस्से सुनाने और उन्नाव के बर्फानी दादा के यहां धूनी रमाने की वजह से भी अमरकंटक को लेकर रोमांच भी कम नहीं था। बर्फानी दादा अपनी जन्मभूमि उन्नाव के ही संत रहे हैं। सुना था कि उन्होंने अपने शरीर का कायाकल्प कर रखा था। इसलिए उनके आश्रम में माता न टेकने का सवाल ही नहीं। नर्मदा के उद्गम स्थल की वजह सेअमरकंटक अपने में तीर्थों में तीर्थ तो है ही। यहां घूमने देखने को भी बहुत कुछ है। अमरकंटक में पहले से लेकर आखिरी तक के अनुभव मीठे ही रहे।
बांधवगढ़ में सन रिसोर्ट के मालिक समीर शुक्ला के माध्यम से शिवम द्विवेदी और शिवम भाई के माध्यम से अमरकंटक में “अमरकंटक इन” होटल का अनुभव शानदार रहा। बांधवगढ़ से शहडोल तक का रास्ता तो सीधे तय हुआ पर गूगल बाबा की दुआ से शहडोल से सीधे रास्ते के बजाए अनूपपुर-जैतहरी-राजेंद्रनगर घूमते-घामते देर शाम करीब 7 बजे सीधे होटल ही पहुंचे। नर्मदा माई मंदिर में शाम की आरती में बमुश्किल 21 साल के नए पुजारी कार्तिक द्विवेदी के आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदा अष्टकम- ” त्वदीयपादपंकजम नमामि देवि नर्मदे..” समेत संस्कृत के श्लोकों का क्लिष्ट उच्चारण मन को भाने वाला रहा। सुबह-सुबह नर्मदा नदी में स्नान, देही के अकड़ जाने पर पास में एक आदिवासी महिला की दुकान पर चाय का ध्यान.. अब इस जिंदगी में कैसे भूल पाएंगे? यहां हर छोटा-बड़ा, महिला-पुरुष अभिवादन “राम-राम” से नहीं “नर्मदे हर” से ही करता है। यहां के लोगों के लिए नर्मदा नदी नहीं जीवन है। संस्कृति है।
विंध्य, सतपुड़ा और मेकल पर्वत श्रृंखलाओं के मिलन बिंदु पर अवस्थित अमरकंटक पारिस्थितिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। जैव विविधता से परिपूर्ण है। अमरकंटक का अंचल अनेक दुर्लभ वनस्पति, जीवों और जड़ी बूटियों का प्राकृतिक आवास है। धार्मिक-आध्यात्मिक स्थली के रूप में प्रसिद्ध अमरकंटक देवताओं का घर था लेकिन रूद्रगणों द्वारा नष्ट कर देने के कारण अमरकंटक हो गया। अमरकंटक की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन कालिदास की मेघदूतम में भी मिलता है। अमरकंटक का शाब्दिक अर्थ है जो शिखर नाशवान न हो। मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को पान करने के बाद देवाधिदेव महादेव को अमरकंटक में आकर ही दग्धता से मुक्ति मिली थी। अमरकंटक की शीतलता का यह कथात्मक आधार है।
माई की बगिया और सोनमुड़ा
सुबह की आरती, मंदिर मंदिर माथा टेकने का क्रम पूरा होने के बाद गरमा गरम नाश्ता और फिर गाड़ी चल पड़ी सोनमुड़ा (सोन नदी का उद्गम स्थल), माई की बगिया, श्री यंत्र मंदिर की तरफ। माई की बगिया के बारे में मान्यता है कि नर्मदा माई बचपन में यहां खेला करती थीं। उनकी सखियां अब गुलाबकवली पौधों का रूप ले चुकी हैं। यह पौधे सिर्फ यही पाए जाते हैं। इनसे आंख के समस्त दोष दूर होने का भी भरोसा लोग करते हैं। नर्मदा नदी की परिक्रमा भी यहीं से प्रारंभ होती है। यहां नर्मदा बाई के भक्तों की भारी भीड़ सोनमुड़ा में नदी का उद्गम और साइड सीन-व्यू प्वाइंट मेकल क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और रमणीयता का पता बताते हैं। सोनमुड़ा में बंदर बहुतायत में है और सब के सब पापी पेट के लिए जंगली से फ्रेंडली हो चुके हैं। लाल और काले मुंह के बंदरों का चना और बिस्कुट के साथ भंडारा भी अपने जीवन के लिए अविस्मरणीय रहेगा। श्री यंत्र मंदिर के गुंबद के चारों तरफ भगवान शिव की आकृति बनी है। श्री यंत्र मंदिर अधूरा होने से आज कल बंद है लेकिन फिर भी लोग गुंबद के आकर्षण में इसे देखने और सेल्फी लेने का मोह छोड़ नहीं पाते।
सर्वोदय जैन मंदिर
21 साल से बन रहा अपूर्ण विशाल जैन मंदिर भविष्य का अलौकिक मंदिर होगा इसमें कोई दो राय नहीं। मंदिर के सामने दुकानें सजाने वाले व्यापारी कहते हैं कि मंदिर पूरा बनने में अभी भी 3 वर्ष का वक्त लग सकता है। जैन मंदिर की चर्चा अपने मित्र और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी फुरसतगंज-अमेठी में कार्यरत डीके पांडे ने प्रमुख रुप से की थी। सो वहां जाना ही था। मंदिर की विशालता मोहने वाली है।
कपिल धारा
अमरकंटक से करीब 8 किलोमीटर दूर कपिलधारा देखने लायक जगह है। उद्गम स्थल से निकलकर नर्मदा नदी बेसाल्ट चट्टान के 20 मीटर नीचे तीव्र गति से खड़े डाल से नीचे गिरते हुए पहला जलप्रपात कपिलधारा का निर्माण करती हुई डिंडोरी जिले में प्रवेश कर जाती है। मान्यता है कि नर्मदा गंगा से बहुत पुरानी नदी है और भारत की सात पवित्र नदियों में नर्मदा का अद्वितीय स्थान है। नर्मदा के दर्शन मात्र से पाप धुल जाते हैं स्कंद पुराण का श्लोक पढ़िए-
यथा गंगा तथा रेवा तथा सरस्वती।
समं पुण्यं फलंप्रोक्तंस्नान दर्शन चिंतनै:।।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने नर्मदा को अद्वितीय शोधन क्षमता प्रदान की है। नर्मदा भगवान शंकर से इतने अधिक वरदान प्राप्त कर चुकी है कि ऋषि एवं देवगन की परिक्रमा करते हैं। अमरकंटक कपिल भ्रुगू दुर्वासा एवं मार्कंडेय ऋषियों की तपोस्थली रही है। अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था।
कर्ण देव मंदिर समूह
नर्मदा उद्गम स्थल के उस पार हजार वर्ष (1041-1073) पहले स्थापित कर्ण देव मंदिर समूह में पांच मंदिर हैं। यहां का मुख्य मंदिर पातालेश्वर महादेव है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। कल्चुरि नरेश कर्ण देव ने यहां मंदिर निर्मित कराया। कुछ लोग 15 वीं शताब्दी में गूढ़ शासकों द्वारा इस मंदिर समूह को निर्मित होना मानते हैं। मंदिरों की स्थापत्य कला खजुराहो के मंदिरों से भी मिलती जुलती हैं। यहां जुहिला मंदिर, विष्णु मंदिर, शिव मंदिर बने हुए हैं। इनका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हाथ में है। इसी से इन मंदिरों का रखरखाव बहुत ही श्रेष्ठ दशा में है। अमरकंटक आए तो यह मंदिर समूह देखना कतई ना भूलें।
जालेश्वर महादेव मंदिर
एक कदम छत्तीसगढ़ की ओर।मध्य प्रदेश की सड़कों पर चलते-चलते आप कब छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर जाएंगे आपको पता ही नहीं चलेगा। “छत्तीसगढ़ आपका स्वागत करता है” का द्वार देखकर एहसास हुआ कि छत्तीसगढ़ में हैं। छत्तीसगढ़ के पेंड्रा मरवाही जिले के गोरेला गांव में स्थित इस मंदिर से ही जुहिला नदी का उद्गम माना जाता है। अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। जैन मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है। इसी मंदिर से आधा किलोमीटर दूर अमरेश्वर महादेव मंदिर नया बन रहा है। इस मंदिर में 11 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित किया गया है। दोनों तरफ जा द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना भी की गई है। मंदिर की छत पर नौ देवियों के मंदिर अवस्थित हैं।
खबर इनपुट एजेंसी से