नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए और कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई मानी जा रही है. हालांकि देश की तकरीबन आधी से ज्यादा लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां इन दोनों गठबंधन के अलावा तीसरी ताकत के रूप में क्षत्रप हैं, जो एनडीए और इंडिया के खिलाफ मजबूती के साथ चुनावी संग्राम में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. देश में ऐसी 261 लोकसभा सीटें हैं, जहां त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है.
बता दें कि देश की कुल 543 लोकसभा सीटों में से उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और पंजाब सहित 9 राज्यों की 261 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और बीजेपी के सीधी लड़ाई के बजाय तीसरी पार्टी के उतरने से त्रिकोणीय मुकाबला होता नजर आ रहा है. क्षत्रप पूरे दमखम के साथ के चुनावी मैदान में हैं. देश की सत्ता से नरेंद्र मोदी को हर हाल में हटाने की कोशिशों में इंडिया गठबंधन के साथ क्षेत्रीय दल भी जुटे हैं, लेकिन दोनों दलों में आमने-सामने की लड़ाई के बजाय मुकाबला त्रिकोणीय होने से चुनाव दिलचस्प हो गया है.
UP में बसपा ने बनाई त्रिकोणीय लड़ाई
उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए इस बार कांग्रेस और सपा ने गठबंधन किया है. सूबे की 80 लोकसभा सीटों में कांग्रेस 17 और सपा 62 सीट पर चुनाव लड़ रही है, जबकि अखिलेश यादव ने अपने कोटे की एक सीट टीएमसी को दी है. यूपी में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को इंडिया गठबंधन सीधे चुनौती दे रहा है, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती के अकेले चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला रोचक हो गया है. यूपी में बसपा के प्रत्याशी 80 में से 79 सीट पर मैदान में है, बरेली सीट से पार्टी उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो गया है. इस तरह सूबे की चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय होती दिख रही है. बसपा उम्मीदवार कहीं पर बीजेपी के लिए टेंशन बने हुए हैं, तो कहीं कांग्रेस-सपा गठबंधन की चिंता बढ़ा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में त्रिकोणीय घमासान
पश्चिम बंगाल में इस बार किसी भी दल का कोई गठबंधन नहीं हुआ है. राज्य में टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस और वामपंथी दल हैं. टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अकेले सभी 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, तो बीजेपी ने भी सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. कांग्रेस और लेफ्ट ने औपचारिक रूप से तो गठबंधन नहीं किया, लेकिन एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतार रहे हैं. इस तरह कांग्रेस-लेफ्ट एक दूसरे की आपसी समझ के साथ चुनाव लड़ रहे हैं. सूबे की 42 लोकसभा सीट पर बीजेपी, टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में है. इसके अलावा इंडियन सेक्युलर फ्रंट के प्रमुख अब्बास सिद्दीकी ने भी 30 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे कई सीट पर चार दलों के बीच मुकाबला है, लेकिन ज्यादातर सीटों पर मुकाबला बीजेपी और टीएमसी के बीच है.
केरल में UDF-LDF-बीजेपी
दक्षिण भारत के केरल की सियासी लड़ाई कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ और लेफ्ट की अगुवाई एलडीएफ के बीच तीसरी ताकत के रूप में बीजेपी गठबंधन मैदान में है. केरल की 20 सीटों पर 26 अप्रैल को दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे, लेकिन इस बार मुकाबला लेफ्ट और कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी सेभी है. बीजेपी केरल में पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक ने रैली करके सियासी माहौल बनाने का दांव चला है.
आंध्र प्रदेश की लड़ाई दिलचस्प
आंध्र प्रदेश में कुल 25 लोकसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है. इस बार टीडीपी, बीजेपी और पवन कल्याण की पार्टी मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. एनडीए का मुकाबला जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के बीच है. हालांकि, सूबे में मुख्य मुकाबला जगन मोहन रेड्डी और एनडीए के बीच है. यहां कांग्रेस अपना सियासी वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, जबकि एक दौर में उसका सबसे मजबूत दुर्ग हुआ करता था. इस बार आंध्र प्रदेश का चुनाव काफी रोचक माना जा रहा है क्योंकि जगन रेड्डी की बहन कांग्रेस की कमान संभाल रही हैं.
ओडिशा में कांग्रेस-बीजेपी-बीजेडी
ओडिशा में कुल 21 लोकसभा सीटें हैं. प्रदेश में कांग्रेस, बीजेपी और बीजेडी के बीच त्रिकोणीय लड़ाई है. प्रदेश में किसी भी पार्टी का कोई गठबंधन नहीं है. हालांकि यहां की सियासत के बेताज बादशाह बीजेडी प्रमुख और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं. बीजेडी शुरू से ही गैर-कांग्रेसी और बीजेपी दलों के साथ गठबंधन की बात करती रही है, लेकिन इस बार किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा थी, पर बात नहीं बन सकी. इसके चलते तीनों ही पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मजबूती से चुनावी मैदान में है.
तेलंगाना-तमिलनाडु में त्रिकोणीय फाइट
तेलंगाना में कुल 17 लोकसभा सीटें हैं. यहां की चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. इस तरह से राज्य में तीसरी ताकत के रूप में केसीआर हैं, जो गैर-बीजेपी और गैर कांग्रेसी गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बात नहीं बनी. इसके बाद अकेले चुनाव मैदान में है, जिसके चलते ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई होती दिख रही है.
वहीं, तमिलनाडु में एक बार फिर से कांग्रेस और डीएमके मिलकर चुनावी मैदान में हैं, लेकिन बीजेपी और एआईएडीएमके अलग-अलग चुनाव लड़ रही है. राज्य में कुल 39 लोकसभा सीटें है, जिसके चलते हर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा. तमिलनाडु की सभी सीट पर पहले चरण में वोटिंग हो चुकी है, लेकिन तेलंगाना में अभी मतदान होना बाकी है.
पंजाब-जम्मू-कश्मीर गठबंधन बिखरा
पंजाब में कुल 13 लोकसभा सीटें है. सूबे में कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी और अकाली दल के बीच मुख्य मुकाबला है. पंजाब में किसी भी दल का कोई गठबंधन नहीं है, ये सभी अकेले-अकेले चुनाव में उतर रहे हैं, जिसके चलते इस बार मुकाबला काफी रोचक है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में कुल 5 लोकसभा सीटें हैं. सूबे में चार दल प्रमुख रूप से हैं, जिनमें कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी हैं. इसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है.
उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक और केरल में कुल 351 लोकसभा सीटों का फैसला होता है. जो भी दल इनमें से पांच राज्यों को जीतने में कामयाब रहता था, वो 200 सीटों के आंकड़े के करीब पहुंच जाता था. इसके बाद उसके लिए बहुमत के 272 के आंकड़े को छूना आसान हो जाता था. ये गणित 2014 में खत्म हो गया.
इस बार के चुनाव के लिए छह राज्य गणित बदल रहे हैं. महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, झारखंड और ओडिशा. 193 लोकसभा सीटों का फैसला करने वाले इन राज्यों में जबरदस्त टक्कर है. इससे तय होगा कि बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी. ऐसे में देश के 9 राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबला है, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी के अलावा क्षत्रप हैं.
2019 में बीजेपी को 303 सीटें मिली थीं. उसने देश में बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, असम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की 320 में से 278 सीटें जीत कर लगभग सफाया कर दिया, लेकिन बाकी राज्यों में बड़ी जद्दोजहद के बावजूद कुल मिलाकर 25 सीटें ही जीत पाई थी. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वहां के अग्रणी दलों से बहुत पीछे रही. इस बार भी बीजेपी की कोशिश इन्हीं सीटों को जीतने की है, लेकिन विपक्षी दल जिस तरह से एकजुट होकर चुनावी में उतरे हैं, उससे बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती है.