अनिल सिंह
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी पर ऐतिहासिक बयान देकर इस मुद्दे को चर्चा में ला दिया है। किसी विवादित मामले में अन्य राजनेताओं की तरह गोल मोल बात करने के उलट क्लियर स्टैंड लेने के लिए पहचाने जाने वाले योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि ‘ज्ञानवापी को मस्जिद कहा जायेगा तो विवाद होगा। भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वह देखे ना। आखिर मस्जिद के अंदर त्रिशूल क्या कर रहा है? हमने तो नहीं रखे हैं ना?’
योगी ने आगे कहा कि ‘वहां ज्योतिर्लिंग और देव प्रतिमाएं हैं। दीवारें चिल्ला चिल्लाकर क्या कह रही हैं? मुस्लिम समाज को ऐतिहासिक गलती दुरुस्त करनी चाहिए। मुझे लगता है कि ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की तरफ से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है। उस गलती के लिए हम चाहते हैं कि समाधान हो।’ दरअसल, योगी आदित्यनाथ का बयान इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है कि ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण को लेकर कोर्ट का फैसला आने वाला है।
इस सर्वेक्षण से ही मुस्लिम पक्ष को डर है। योगी के इस बयान के बाद मुस्लिम पक्ष के नेताओं ने तीखे बयान दिये हैं, लेकिन किसी ने ज्ञानवापी के मंदिर होने से इनकार नहीं किया है। योगी के इस बयान के राजनीतिक मायने से ज्यादा धार्मिक बढ़त की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। किसी भी मुस्लिम नेता या मौलवी ने अब तक यह नहीं कहा है कि ज्ञानवापी में स्थित मस्जिद को मंदिर तोड़कर नहीं बनाया गया है। इसीलिए मुस्लिम नेता योगी आदित्यनाथ द्वारा ज्ञानवापी परिसर में मौजूद चिन्हों को लेकर उठाये गये सवालों का काउंटर नहीं कर पा रहे हैं।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन आवैसी ने कहा है कि ‘योगी ने विवादित बयान दिया है, यह संविधान के खिलाफ है। मुख्यमंत्री को कानून का पालन करना चाहिए, वो मुसलमानों पर दबाव डाल रहे हैं। मुस्लिम पक्ष इस मामले में हाईकोर्ट में है और एक दो दिन में फैसला आने वाला है। वो साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं। उनका बस चला तो बुलडोजर चला देंगे।’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि ‘सीएम योगी आदित्यनाथ को कानून सम्मत बात कहनी चाहिए। साल 1991 में जो कानून बना राज्य के मुखिया को उसकी रक्षा करनी चाहिए।’
दरअसल, यही 1991 का एक्ट अवैध तरीके से बनी मस्जिदों को बचाने का एकमात्र उपाय है। पूरे देश में तीन हजार से ज्यादा मस्जिदें हैं, जिनको लेकर विवाद चल रहा है। आरोप है कि ऐसी सभी मस्जिदें किसी न किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई हैं। ज्ञानवापी भी उनमें से एक है। कांग्रेस की नरसिंहाराव सरकार ने ऐसी ही मस्जिदों को बचाने के उद्देश्य से 1991 में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था, जिसके अनुसार राम मंदिर को छोड़कर 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के उपासना स्थल को दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकेगा। आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा।
योगी आदित्यनाथ के सवाल के बाद अब मुस्लिम नेता इसी 1991 के एक्ट के तहत अवैध होने के आरोपों से जूझ रही मस्जिदों को बचाना चाहते हैं। जबकि यह सर्वविदित है कि मुगल आंक्रांता औरंगजेब ने 1669 में प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर तोड़कर इस पर मस्जिद का निर्माण करवाया था। देखने से भी स्पष्ट होता है कि इस मस्जिद की पश्चिमी दीवार मंदिर का अवशेष है, जिस पर हिंदू धर्म से जुड़े चिन्ह बने हुए हैं। इसी पश्चिमी दीवार से लगे एक चबूतरे पर श्रृंगार गौरी की एक मूर्ति है, जिसकी साल में एक बार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा होती है।
1991 से पहले यहां श्रृगांर गौरी की प्रतिदिन पूजा होती थी, लेकिन प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट बनने के बाद यहां प्रतिदिन होने वाली पूजा को तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने जबरिया रोक दिया तथा साल में एक दिन पूजा करने की अनुमति दी। यहां नियमित पूजा बंद हो गई। अब जो कोर्ट में मामला चल रहा है, वह मंदिर परिसर में बने मस्जिद को लेकर नहीं बल्कि श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा को लेकर ही है। हिंदू धर्म की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी की रोज पूजा करने को लेकर याचिका दाखिल की थी, जिस पर मुस्लिम पक्ष की दो अलग-अलग याचिकाओं पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
दरअसल, मुस्लिम पक्ष को डर है कि अगर एएसआई सर्वेक्षण में ज्ञानवापी परिसर में स्थित मस्जिद मंदिर तोड़कर बनी साबित हो गई तो उसे इस पर अपना दावा तो छोड़ना ही पड़ेगा, इसकी आड़ में केंद्र सरकार 1991 का एक्ट भी समाप्त कर सकती है, जिसके चलते उनके अवैध कब्जे वाली तीन हजार से ज्यादा मस्जिदों पर उनका दावा कमजोर हो जायेगा। योगी ने अपने इस बयान से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियों को भी साध लिया है। कोर हिंदुत्व वाले इस मुद्दे पर अब इन पार्टियों को भी अपना रूख साफ करना पड़ेगा। ये दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर क्या जवाब देती हैं, यह देखना भी दिलचस्प होगा। अतीत में मुस्लिमपरस्ती के आरोपों से जूझने वाली दोनों पार्टियां ध्रुवीकरण रोकने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लेकर 2024 के महासमर की तैयारी कर रही हैं।
अब योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद दोनों पार्टियों को अपने मतदाताओं के बीच स्टैंड क्लियर करने होंगे, जो उनके लिए मुश्किल भरा हो सकता है। सपा-कांग्रेस अगर ज्ञानवापी में मंदिर तोड़कर बनी मस्जिद पर मुस्लिम पक्ष लेते हैं तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा, और हिंदू पक्ष लेते हैं तो उनको मुस्लिम वोटों का नुकसान सहना पड़ेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि दोनों पार्टियां खुल कर इस मुद्दे पर कोई बयान जारी करने से पहरेज करेंगी। इनके द्वारा बीच का कोई स्टैंड लिया जायेगा, जिनमें 1991 का एक्ट और कोर्ट का आदेश जैसे मुद्दे शामिल होंगे।
बहरहाल, पार्टियों और नेताओं के बयान से अधिक महत्वपूर्ण होगा मुस्लिम पक्ष का रुख। क्या वह ज्ञानवापी पर वैसा ही अड़ियल रुख अपनायेगा जैसा अयोध्या में राम जन्मभूमि पर अपनाया था और अंतत: लंबी अदालती लड़ाई में हार गया। या फिर वह पहले की हठधर्मिता से सबक सीखते हुए सद्भाव और भाईचारे की खातिर उस ऐतिहासिक गलती को सुधारने की पहल करेगा जिसका इशारा योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान में किया है?