अरुण दीक्षित
भोपाल : तारीख 10 जुलाई 2023। दिन सोमवार। इस साल के सावन का पहला। राजधानी भोपाल के सभी अखबारों के पहले पन्ने पर एक बड़ा विज्ञापन छपा है। इसमें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बड़ी बड़ी मुस्कराती हुई तस्वीरें हैं। जाहिर है कि पूरे पन्ने का यह विज्ञापन सरकार ने ही दिया है। विज्ञापन कहता है – बधाई हो! लाडली बहनों! आज आयेंगे 1000..बढ़कर मिलेंगे 3000। आगे लिखा है – मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना। 1.25 करोड़ बहनों को मिलेगी दूसरी किश्त। शिवराज भैया लाडली बहना सेना को दिलाएंगे शपथ। दोपहर 1 बजे। सुपर कॉरिडोर ग्राउंड, इंदौर। इस विज्ञापन में नीचे एक मुस्कराती महिला की तस्वीर भी छपी है। विज्ञापन के मुताबिक ही इंदौर में कथित ऐतिहासिक कार्यक्रम हुआ भी। उसकी वाहवाही सरकार अपने खर्चे पर चहुं ओर करा रही है।
राजधानी के एक अखबार में भीतर के पन्ने पर मुख्यमंत्री के अपने जिले विदिशा की एक खबर भी छपी है। यह खबर जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित दुपरिया गांव में कांग्रेस नेताओं की यात्रा से जुड़ी है। ये नेता वहां एक युवती और फिर उसके पिता द्वारा आत्महत्या किए के मामले की जांच करने गए थे। इसी अखबार के इंटरनेट संस्करण में आत्महत्या के इस मामले की खबर बहुत ही विस्तार से छपी है।
विदिशा से सांसद थे सीएम शिवराज
खबर पर बात करने से पहले आपको विदिशा के बारे में थोड़ी जानकारी दे देते हैं। सूबे के मुखमंत्री इस जिले को अपना जिला बताते हैं। उनकी खेती, दूध की डेयरी और वेयर हाउस इसी जिले में हैं। वे 1992 में पड़ोस के जिले सीहोर की बुधनी विधानसभा छोड़कर लोकसभा चुनाव लडने विदिशा आए थे। तब अटल विहारी बाजपेई द्वारा खाली की गई इस सीट पर बीजेपी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था। उन्होंने चुनाव लड़ा और जीता। फिर यहीं के होकर रह गए। हालांकि 2005 में मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद वे फिर बुधनी लौट गए। तब से अब तक वे बुधनी के विधायक हैं। लेकिन विदिशा से उनका लगाव और जुड़ाव कायम है।
गरीब लड़कियों के विवाह के लिए शुरू हुई योजना
जब वे सांसद थे तब उन्होंने अपने क्षेत्र में गरीब लड़कियों के विवाह कराने शुरू किए थे। अपनी पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने अब तक हजारों लड़कियों का कन्यादान किया है। ज्योतिषियों की सलाह पर शुरू की गई इस मुहिम का शानदार फल भी उन्हें मिला है। मुख्यमंत्री बनने के बाद वे सरकारी खजाने से कन्यादान कराने लगे। बाकायदा मुख्यमंत्री कन्यादान योजना बनाई। आज भी यह योजना पूरे प्रचार के साथ चल रही है। अभी कुछ महीने पहले उन्होंने लाड़ली बहना योजना भी शुरू की है। इसके तहत उन्होंने दूसरी बार प्रदेश की करीब सवा करोड़ महिलाओं के खाते एक एक हजार रुपए डाले हैं। आज के विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि आगे “लाड़ली बहनों ” को तीन हजार रूपये प्रतिमाह दिए जाएंगे।
विपक्ष कह रहा है कि यह विधानसभा चुनाव में महिलाओं के वोट खरीदने की योजना है। विपक्ष का क्या, वह तो कहता ही रहता है। उसकी परवाह करने की परंपरा अब भारतीय राजनीति में समाप्त हो गई है। अब बात दुपरिया गांव की! यह गांव विदिशा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर है। शमसाबाद विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है। इसका थाना नटेरन में है। इस गांव में एक परिवार गुसाईं धीरेंद्र गिरी का भी है। धीरेंद्र चार पुश्त से गांव में रह रहे थे। उनका मूल काम मंदिर और कुछ लोगों की चौखट पर दिया जलाना था। खेती की जमीन थी नहीं। सरकार ने भी नहीं दी! क्योंकि न तो वे आदिवासी थे और न दलित! सो उनकी ओर किसी ने नहीं देखा। वे पूजापाठ करके अपना परिवार पाल रहे थे। गांव में अकेला पुजारी परिवार था सो दान दक्षिणा से गुजारा हो जाता था।
छात्रा ने किया सुसाइड
उनकी एक बेटी थी और दो बेटे। बेटी विदिशा के सरकारी कालेज में बीकॉम की पहली साल की पढ़ाई कर रही थी। बेटे अपने अपने स्तर से काम करके पढ़ने और आगे बढ़ने की कोशिश में लगे हैं। गांव के एक दबंग परिवार का एक लड़का पुजारी की बेटी पर बुरी नजर रखता था। इसी साल मार्च के महीने में उसने दिन दहाड़े पुजारी की बेटी को छेड़ा। गांव में कोई बचाने नहीं आया। आता भी क्यों, छेड़ने वाले का परिवार भोपाल में बड़े बड़ों के घर आता जाता रहता था। लड़की ने 15 मार्च 2023 को नटेरन थाने में लिखित शिकायत की। जैसा कि तय था पुलिस ने कुछ नहीं किया। करीब दो महीने बाद उस युवक ने 14 मई 23 को सबके सामने लड़की को पीटा।पू रे परिवार को धमकाया। अगले दिन फिर धमकाया।
लड़की परिजनों के साथ थाने गई तो बीजेपी नेताओं का फोन पहले ही थाने पहुंच चुका था। पुलिस ने पहले तो रिपोर्ट लिखने से ही मना कर दिया। बाद में लिखी तो पुजारी परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर दिया। गांव में जांच करने आए पुलिस के हेड कांस्टेबल ने सबके सामने पुजारी की बेटी से कहा – कॉलेज जाओगी तो छेड़छाड़ तो होगी ही। आरोप है कि छेड़छाड़ करने वाले दबंग परिवार ने मामला वापस लेने का दवाब बनाया। धमकाया। पूरे परिवार को परेशान देख पुजारी की होनहार बेटी ने 25 मई को एक सुसाइड नोट लिख कर खुद को फांसी लगा ली। उसने सोचा और लिखा कि मेरे न रहने से समस्या शायद खत्म हो जाएगी। अपने नोट में वह सब आरोपियों के नाम लिख गई।
लड़की के मर जाने के बाद नटेरन पुलिस ने आरोपी व उसके साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। लेकिन गिरफ्तार सिर्फ एक को किया। 27 मई को मुख्य आरोपी पकड़ा गया और 23 जून को वह जमानत पर जेल से बाहर आ गया। आता क्यों नहीं ? आखिर बीजेपी समर्थक जो था। साथ ही उसी समाज का भी जिसका आज प्रदेश पर “राज” है। थाना, विधायक और सरकार सब उसके साथ थे। इसलिए न तो मामा का बुलडोजर उसके घर की ओर आया और न ही पुलिस ने दूसरे आरोपियों को पकड़ा। कह दिया कि पहले हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे फिर आरोपियों को पकड़ेंगे।
उच्च स्तरीय जांच के आदेश
जेल से बाहर आने के बाद आरोपी और उसके साथी पुजारी धीरेंद्र गिरी को मामला खत्म करने और समझौता करने के लिए धमकाने लगे। धीरेंद्र की किसी ने मदद नहीं की। आखिर “सरकार” से पंगा कौन लेता। परेशान धीरेंद्र गिरी ने भी वही रास्ता चुना जो उनकी बेटी ने चुना था। उन्होंने भी आरोपियों के नाम दो कागजों पर लिखे और दो दिन पहले अपनी जान दे दी। कहानी खत्म! अब तक न कोई बुलडोजर दुपरिया गया और न ही मामा का मौन टूटा। हां कांग्रेस नेताओं के पुजारी के परिवार से मिलने की सूचना के बाद गृहमंत्री ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं।
नटेरन थाने के थानेदार और हेड कांस्टेबल को हटा दिया गया है। अब जांच होगी। वह भी पुलिस अफसर ही करेंगे। उसमें क्या होगा इस बात का सहज आंकलन किया जा सकता है। अब एक और घटना की बात करते हैं। यह घटना उसी इंदौर शहर की है जहां आज मुखमंत्री ने रैंप वॉक करके सरकारी खजाने से अपनी लाड़ली (वोटर) बहनों के खाते में एक एक हजार रुपए डाले हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इंदौर को एमपी की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है। मिनी मुंबई तो वह है ही। शहर का महत्व इसी से पता चलता है कि सरकार ने वहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया है।
इंदौर में भी आया मामला
इसी इंदौर के तिलक नगर थाने में पिछले सप्ताह एक महिला को बुरी तरह पीटा गया। एक व्यक्ति ने अपनी ही पत्नी और उसके चचेरे भाई के खिलाफ लाखों रुपए चोरी करने की शिकायत थाने में की थी। बताया गया है कि शिकायत कर्ता सरकारी महकमों में अच्छा रसूख है। इसलिए थानेदार ने उससे “सुपारी” ले ली। करीब 45 साल की उस महिला को धार से इंदौर थाने बुलाया गया। उसे और उसके चचेरे भाई को कई बार बुलाकर थाने में बैठाए रखा गया। वह और उसके परिजन लगातार यह कहते रहे कि चोरी का आरोप गलत है। पारिवारिक झगड़े में पुलिस को लाया जा रहा है। लेकिन उसकी सुनता कौन?
कुछ दिन पहले थाने में तैनात एक सब इंस्पेक्टर ने उस महिला को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया। महिला के साथ उसका चचेरा भाई भी आया। पुलिस की “सुपारी” के प्रति प्रतिबद्धता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूछताछ से पहले ही थाने के रोजनामचे में यह दर्ज कर दिया गया कि महिला प्रताड़ना का आरोप लगा सकती है। इसके बाद सब इंस्पेक्टर के निर्देश पर एक पुरुष कांस्टेबल और एक महिला कांस्टेबल ने उस महिला को बुरी तरह पीटा। पिटाई से उसका पूरा शरीर नीला पड़ गया। परिजनों ने जब देखा तो अस्पताल ले गए। जांच में पता चला कि महिला का पूरा शरीर नीला है। उसके शरीर पर जख्म हैं। उसकी पसलियां भी टूट गईं हैं।
परिजनों ने की शिकायत
इस पर परिजनों ने पुलिस के बड़े अधिकारियों से शिकायत की। मामला गंभीर था इसलिए बड़े अफसर चेते। उन्होंने पुरुष और महिला कांस्टेबल के खिलाफ मामला दर्ज कराया। उन्हें थाने से हटा भी दिया, लेकिन न तो तिलक नगर थाने के थानेदार और न ही सब इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई की। दोनों अभी भी उसी थाने में तैनात हैं। सबसे अहम बात है कि यह मामला इंदौर शहर का है। जिस आदमी ने घर से लाखों रुपए चोरी होने की शिकायत की उससे यह नहीं पूछा गया कि वह इतनी बड़ी रकम कहां से लाया और घर में क्यों रखे था। न ही पुलिस ने इनकम टैक्स वालों को खबर की।
मामला सीधे सीधे सुपारी का था इसलिए बेचारी महिला और उसके भाई को थाने में बेरहमी से पीटा। बचाव की तैयारी भी रोजनामचा लिख कर ली थी। सबसे गंभीर बात यह है कि इन दोनों और ऐसे ही अन्य मामलों में न मुख्यमंत्री कुछ बोले और न ही गृहमंत्री। पूछने पर गृहमंत्री ने जांच की बात कह कर अपना दायित्व पूरा कर दिया। मुख्यमंत्री लगातार खुद को लड़कियों का मामा और बहनों का लाडला भाई बता रहे हैं। विधानसभा चुनाव सामने हैं। इसलिए यह बात और तेज़ी से कह रहे हैं। लाखों महिलाओं को सरकारी खजाने से रुपए भी दे रहे हैं। लेकिन इस सब के बाद भी अपने राज्य में महिलाओं को सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं पर अत्याचार के मामले में एमपी देश में अग्रणी है।
अपना एमपी गजब है
हालांकि उनका बुलडोजर चल रहा है लेकिन वह जाति धर्म और चेहरे देख कर अपना काम करता है। जहां तक पुलिस का सवाल है,पूरे राज्य में कानून व्यवस्था की जो हालत है उससे साफ दिख रहा है कि पुलिस सिर्फ “सुपारी” ही उठा रही है। नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से निचले स्तर पर नियंत्रण कमजोर हुआ है। खासतौर पर इंदौर जैसे शहर में तो बड़े अफसर महज शो पीस बन कर रह गए हैं। इंदौर के थानों की बोली और वसूली का आंकड़ा करोड़ों का बताया जाता है। वहां के थानेदारों का रुतबा इसी से जाहिर है कि खुद पुलिस कमिश्नर थानेदार को हटा नही सकता है। हां थानेदार चाहे तो कभी भी बड़े अफसरों को हटवा सकता है। अभी कुछ महीने पहले ही एक थानेदार द्वारा कुछ उद्योगपतियों से करोड़ों की वसूली का मामला सामने आया था। लेकिन उसका कुछ नही हुआ। बस इंदौर से हटाकर दूसरे जिले में भेज दिया गया।
राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के हर जिले में कमोवेश ऐसे ही हालात हैं। एक तथ्य यह भी है कि पुलिस की मुख्य भूमिका सरकार की रोज होने वाली इवेंट्स के “मैनेजर” तक सिमट गई है। महिलाओं को लेकर प्रदेश में जो हाल हैं उनसे यह साफ जाहिर होता है कि मामा के राज में न बहन सुरक्षित है और न ही भांजी। दावा यह था कि बलात्कारियों को फांसी चढ़ा देंगे, लेकिन आज तक एक भी आरोपी फांसी नहीं चढ़ा। हालांकि निचली अदालतों ने फांसी की सजा करीब दो दर्जन से ज्यादा बलात्कारियों को दी है। लेकिन बड़ी अदालतों में मामले अटके पड़े हैं। शायद यही वजह है कि फांसी के कानून का कोई डर कहीं दिखाई नहीं दिया।
सिर्फ तमाशा देखता है समाज
हां बाबा जी के तोतों की तरह मुख्यमंत्री अपनी बात लगातार दोहराते रहते हैं। दूसरी तरफ अपराधी अपना काम करते रहते हैं। पुलिस सुपारी लेती है। नेता भाषण देते हैं। विपक्ष आरोप लगाता है और समाज..वह सिर्फ तमाशा देखता है। हां अगर वोट की बात हो तो सब एकदम सक्रिय हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि यौन उत्पीड़न , बलात्कार और हिंसा झेलना राज्य की छोटी बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाओं की नियति बन गई है। सरकार भी जमीनी हकीकत से भली भांति वाकिफ है। शायद यही वजह है कि लाडली लक्ष्मी के बाद लाड़ली बहना योजना लाई गई है। एक हजार रुपया महीना देकर तस्वीर का दूसरा रुख दिखाने की कोशिश की जा रही है।
विपक्ष भी तमाशा देख रहा है। खुद थोड़ा बहुत नाटक भी कर रहा है और नारीवादी संगठन..! वे तो शायद अब अस्तित्वहीन हो गए हैं। कुछ भी हो अखबार और न्यूज चैनल प्रदेश की शानदार तस्वीर दिखा रहे हैं। पुरस्कार पा रहे हैं। लेकिन इन्हीं अखबारों में रोज महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों की खबरें भी जगह पा रही हैं। प्रदेश में विश्वस्तरीय आयोजनों की चकाचौंध के बीच में महिलाओं पर बात भी नहीं हो रही है। लाडली लक्ष्मी आत्महत्या करे या लाड़ली बहन थाने में बेरहमी से पीटी जाए। किसी को क्या फर्क पड़ता है और सरकार…! वह तो “रुपयों की चादर” से सब कुछ ढकने की कोशिश कर ही रही है। आखिर अपना एमपी गजब जो है। है कि नहीं?
वरिष्ठ पत्रकार, ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के हैं