नई दिल्ली। दुनियाभर की मुद्राओं के सापेक्ष डालर जिस तेजी से मजबूत हो रहा है, उसकी चुभन अफ्रीका के कम विकसित देश ज्यादा महसूस कर रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद इनके विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से सूख रहे हैं। हालात को समझते हुए भारत अफ्रीकी देशों को मनाने की कोशिश कर रहा है कि उन्हें भारतीय रुपये में कारोबार को तरजीह देनी चाहिए। कुछ दिन पहले ही आरबीआइ ने घरेलू आयातकों व निर्यातकों को डालर के अलावा दूसरी मुद्राओं में कारोबार करने की छूट दी है। माना जा रहा है कि अगर भारत-अफ्रीका के बीच होने वाले 90 अरब डालर के द्विपक्षीय कारोबार का एक हिस्सा भी रुपये में होने लगे तो इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को गिरने से बचाने में काफी मदद मिलेगी।
अफ्रीका के पास हैं काफी संसाधन: दम्मु रवि
भारत-अफ्रीका ग्रोथ पार्टनरशिप सम्मेलन में शामिल होने आए अफ्रीका के कई देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए मंगलवार को विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) दम्मु रवि ने कहा कि आरबीआइ ने हाल ही में भारतीय रुपये में अंतरराष्ट्रीय कारोबार की पूरी छूट दी है। हम मानते हैं कि इससे हम जल्द ही एक दूसरे के साथ राष्ट्रीय मुद्राओं में कारोबार करने की शुरुआत कर सकते हैं। इसकी अपार संभावनाएं हैं। इससे हमें दूसरी मुद्राओं में कारोबार करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। अगर हमारे बीच इस बारे में उचित व्यवस्था करने की सहमति बन जाती है तो इससे कई तरह की नई संभावनाएं सामने आएंगी। अफ्रीका के पास काफी संसाधन हैं। अगर हम मिल कर राष्ट्रीय करेंसी में कारोबार करते हैं तो इससे इन संसाधनों का ज्यादा बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। भारत के इस प्रस्ताव के बारे में कुछ अफ्रीकी देशों ने उत्साह दिखाया है और इस बारे में विस्तृत चर्चा की पेशकश की है। सूत्रों के मुताबिक सिर्फ अफ्रीकी देशों के साथ ही नहीं बल्कि भारत अब उन सभी देशों के साथ स्थानीय मुद्रा में कारोबार करने को प्रोत्साहित करेगा, जिनके विदेशी मुद्रा भंडार कम हैं या जिनकी मुद्राओं की कीमत अमेरिकी डालर की बढ़ती ताकत की वजह से बेहद कमजोर हो गई है। मध्य एशिया के देश भी इस श्रेणी में शामिल हैं।
मिस्त्र की मुद्रा (पाउंड) में ऐतिहासिक हुई गिरावट
भारत का यह प्रस्ताव तब आया है जब अफ्रीका के साथ उसका द्विपक्षीय कारोबार काफी तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में भारत और अफ्रीका का द्विपक्षीय कारोबार 56 अरब डालर का था जो वर्ष 2021-22 में बढ़ कर 89.5 अरब डालर का हो गया है। उद्योग चैंबर सीआइआइ ने एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2030 तक इनका द्विपक्षीय कारोबार 200 अरब डालर का हो जाएगा, जबकि अफ्रीका में होने वाला भारतीय निवेश मौजूदा 74 अरब डालर से बढ़कर 150 अरब डालर का हो जाएगा। महंगाई की मार झेल रहे हैं अफ्रीकी देशपेट्रो उत्पादों और खाने पीने की चीजों की बढ़ती वैश्विक महंगाई की मार अफ्रीका देश भी झेल रहे हैं। नाइजीरिया और अंगोला जैसे तेल उत्पादक देशों में भी महंगाई दर क्रमश: 25 प्रतिशत और 20 प्रतिशत के करीब है। यहां की दूसरी सबसे बड़ी इकोनमी मिस्त्र की मुद्रा (पाउंड) में ऐतिहासिक गिरावट हुई है और अब यह देश आइएमएफ से विशेष पैकेज हासिल करने की कोशिश में है।
ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीकी देशों के कुल वैश्विक कारोबार का 95 प्रतिशत डालर में होता है। कुछ देशों (अंगोला, मेडागास्कर, लाइबेरिया आदि) का तो सौ प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डालर में होता है। डालर की मजबूती से इन देशों की मुद्राओं को बचाने के लिए ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट ने सलाह दी है कि इन्हें दूसरी मुद्राओं में ज्यादा कारोबार की शुरुआत करनी चाहिए।