ऋषिकेश : एम्स में दो बच्चों की हुई सफल टैट्रोलोजी ऑफ फैलोट सर्जरी, गंभीर बिमारी से 3 साल से थे ग्रसित, निदेशक ने मेडिकल टीम को दी बधाई. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के कॉर्डियक थोरसिक सर्जरी विभाग ने हाल ही में दो बच्चों की जन्मजात टैट्रोलोजी ऑफ फैलोट (टीओएफ) बीमारी की सफलतापूर्वक सर्जरी को अंजाम दिया गया। बताया गया कि दोनों बच्चे तीन साल से इस बीमारी से ग्रसित थे।
इस सफलता के लिए एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने चिकित्सकीय टीम की सराहना की है। उन्होंने बताया कि संस्थान में पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जरी प्रोग्राम सफलतापूर्वक संचालित की जा रही हैं। यह मेडिकल विभाग की सबसे जटिल ब्रांच है, जिसमें किसी भी केस को करते समय आधुनिक मशीनों के साथ साथ संपूर्ण टीम का सहयोग जरुरी होता है। इससे जुड़े ऑपरेशन काफी जटिल एवं नाजुक होते हैं तथा आपरेशन के दौरान पेशेंट की जान जाने का खतरा बना रहता है। बावजूद इसके दिल की अनेक जन्मजात बीमारियां हैं जो कि जानलेवा हैं, सर्जरी के बिना इनका इलाज असंभव होता है, मगर सर्जरी के पश्चात अच्छा जीवन संभव हो जाता है। सीटीवीएस विभाग के कॉर्डियक थोरेसिक सर्जन डा. अनीश गुप्ता के अनुसार एम्स में पिछले डेढ़ वर्ष में लगभग 100 से अधिक मरीज अपनी जन्मजात हृदय की बीमारियों से निजात पा चुके हैं,जिसमें शिशु, किशोर व युवा भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि टैट्रोलॉजी ऑफ फैलोट एक गंभीर बीमारी है,जिसमें धीरे धीरे हार्ट फेल हो जाता है। हाल में संस्थान में 3 साल के दो बच्चों का सफल टीओएफ रिपेयर किया गया है, जिसमें एक चकराता, देहरादून निवासी बच्ची व रुड़की हरिद्वार का एक बच्चा शामिल हैं।
डा. अनीश के मुताबिक कई बार इस ऑपरेशन में फेफड़े की नली का रास्ता खोलते वक्त पल्मोनी वाल्व काटना पड़ता है, जिससे ऑपरेशन की जटिलता बढ़ जाती है। साथ ही कुछ दशकों बाद मरीज को वाल्व बदलने की आवश्यकता प आवश्यकता पड़ती है। जटिलतम शल्य क्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देने पर दोनों बच्चों के परिजनों ने इसके लिए एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत का धन्यवाद ज्ञापित किया। साथ ही उन्होंने बतया कि संस्थान निदेशक प्रो. रवि कांत के सतत प्रयासों से ही उत्तराखंड में पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जरी की सुविधा उपलब्ध हो पाई है,जिससे उनके बच्चों को नवजीवन मिल सका है। क्या है टेट्रोलोजी ऑफ फैलोट (टीओएफ):
1- हृदय की जन्मजात बीमारी जिसमें दिल में छेद होने के साथ साथ फेफड़े में खून ले जाने वाला रास्ता सिकुड़ा होता है। 2-गंदा खून दिल के छेद से होते हुए साफ खून में मिल जाता है,जिससे मरीज का शरीर नीला पड़ जाता है। 3- इस जन्मजात बीमारी के कारण सांस फूलना, बलगम में खून आना, दिमाग में मवाद भरना, दौरा पड़ना, लकवा आदि भी हो सकता है।