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उम्र के बाद वाली दोस्ती (कविता)

Manoj Rautela by Manoj Rautela
06/06/20
in साहित्य
उम्र के बाद वाली दोस्ती (कविता)

नितिन राठौड़ 'नवाब साहब'

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उम्र के बाद वाली दोस्ती (कविता)

बहुत आसान है कह देना कि एक उम्र के बाद वाली दोस्ती बस टाइमपास होती है पर क्यों होता है किसी के पास इतना टाइम जो उसे ऐसे रिश्तों में गुज़ारना पड़ता है, जब साथ रहने वाले न समझ पाएं कि हम चाहते क्या हैं उनसे..जब मुश्किल लगने लगे अकेले ये भयावह सन्नाटा…तब मन चल पड़ता है किसी ऐसे रिश्ते की ओर जिसका कोई वजूद ही नही दुनिया की नज़र में….और ढूंढ लेता है अपने मन का सुकून,कितना मुश्किल है समाज में रहते हुए कोई ऐसा रिलेशन बनाना जो समाज स्वीकार न करता हो…. उस समाज की ख़ुशी के लिए दबानी पड़ती हैं अपनी भावनाएं…नही कर सकते न हम अपनी लाइफ में किसी के साथ विश्वासघात,मगर ऐसा ना कर के भी हासिल क्या होता है, एक अकेलापन, खोखली हँसी, और खाली तन और रीता मन।

तो क्यों ना चाह हो ऐसे किसी की….जो अगर मिल जाये तो मिल जाता है कोई ऐसा जिसे आपकी परवाह हो…जिसे फर्क पड़ता हो आपके खुश होने या आंसू बहाने से,जहाँ सिर्फ शब्दों से महसूस कर लिया जाता है एक दूसरे की आत्मा को…जहाँ किसी के साथ दिल खोल कर हंसने का मन कर जाये,

कभी मन भारी हो तो बस कुछ शब्दों से उसके काँधे पर सर रख के रो लिया जाये….और उन्ही शब्दों में लिपटा प्यारा एहसास दिलाये आपको कि आप अकेले नही हो…कोई है आपके साथ जो आपके मुस्कुराने की वजह बनना चाहता है,कोई है जिसके कुछ शब्द आपकी आँखों में शर्माहट भरी मुस्कुराहट ले आते हैं …कभी उसकी अनदेखी दुखा देती है दिल को….सिर्फ शब्दों से ही मना भी लिया जाता है,सिर्फ शब्दों का ही तो खेल है…न कभी देख सके एक दूसरे को न छू पाने की चाह….ना किसी के शरीर की लालसा…बस भावनाओं की डोर जो बांध ली जाती है बिन कहे बिन सुने बस यूँ ही अनजाने में,और क्या बुरा है जिसे मन पर अधिकार दिया हो, जिसने मन का अधूरापन पूरा किया हो, उससे अगर देह का सानिध्य दे दिया जाए तो,क्यों मन से ज्यादा तन का महत्त्व है,शाश्वत तो मन है, चिर युवा, अजर और अमर भी, और जिसने भीतर छू लिया हो, उसकी बाहरी छुवन से ऐतराज कैसा। और क्यों।

उतनी ही ख़ुशी मिलती है जितनी किसी के साथ असल में वक़्त गुज़ार कर मिलती है..अलग होने पर दुःख भी उतना ही होता है….टूट जाता है इंसान उतना ही जब दूसरा छोड़ कर चला जाता है,तो इसके पहले की हालात बदल जाये, दुनिया समाज या रोजमर्रा की उलझनें वक़्त ना दें,क्यों ना मिले हर लम्हे को दुगुना कर दिया जाए, जैसे ठंडी बहती शीतल हवा को, मैन करता है, जोर की सांस लेकर अंदर तक भर लिया जाए।कोई है जो चंद अशआर के ज़रिये आपके और पास आना चाहता है…कोई है जिसे सोचकर आप मुस्कुरा सकते हैं बेवजह…!!

–नितिन राठौड़–

(नवाब साहब)

 

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