प्यार की एक नई समझ एक नई परिभाषा गढ़ती दर्शकों के सामने आई है लेखिका /निर्देशिका रोहिना गेरा की फिल्म ‘सर’ जिसकी पूरी टाइटल है –“Is love enough Sir”
तेज रफ्तार भागती दौड़ती जिंदगी में प्यार के मायने बताया गया है आपसी समझ और सम्मान को जहां शब्दों के कोई मायने ही नहीं “Something I feel I never felt its kind of trust” फ़िल्म के बीच में कहीं आए इस संवाद पर फिल्म केंद्रित है l
फिल्म की कहानी है- जवान विधवा कामवाली बाई की जो अपने काम, ज़िम्मेदारियों और इमेज के प्रति हर पल सतर्क और चौकन्नी रहती है दूसरी तरफ उसका मालिक अश्विन सर गंभीर और परिवार के लिए अपनी खुशियों को ताख़ पर रख देने वाला रईस युवा नायक है, जिसे लोग क्या कहेंगे की कतई परवाह नहीं.
फिल्म बताती है खामोशियों को सुनना प्यार है, चुप्पियों को तोड़ने की कोशिश ना करना प्यार है. अभी जहां ज्यादा प्यार का मतलब है ज्यादा बातें हैं ज्यादा से ज्यादा फोन कॉल्स जबकि इन्हीं ज्यादा बातों में रिश्ते उलझ कर टूट जाते हैं, प्रेम रेशम से भी कोमल भावना है l जहां शब्दों का जरा सा भी उलझाव प्रेम के तंतुओं में टूटन पैदा कर देता है. प्यार में साथ ज़्यादा से ज़्यादा हंसने की ख्वाहिश और कवायद उम्र भर रोने की वजह बन जाती है. हैरानी की बात ये कि फिल्म में नायक-नायिका कहीं भी साथ खुलकर हंसे नहीं हैं. हंसाने और खुश रखने के बीच के फर्क को बताती है फिल्म सर.
प्रेम को विकसित करने का निर्देशिका का ट्रीटमेंट काबिले तारीफ है. प्यार-परवाह का ही दूसरा नाम है जो फिल्म के पहले दृश्य से आखिरी दृश्य तक देखा जा सकता है.
प्रेम में चुंबन आलिंगन एक संपूर्ण पैकेज तो है पर खुश किस्मत हैं वो प्रेमी जोड़े जिनका प्यार माथे के प्यार से शुरू होता है. फिल्म कई मुद्दों पर ध्यान खींचती है जैसे कि ज्यादा पैसे होने का मतलब कहीं भी परेशानियों का कम होना नहीं होता. हर अमीर-गरीब अपनी तरह की मजबूरियों में बँधा हुआ है जैसे जिंदगी समझौते का ही दूसरा नाम हो. जब रत्ना कहती है -“मैंने सोचा था अमीर लोगों की लाइफ आसान होती होगी सर पर आप भी तो.. ”
फिल्म का पहला दृश्य विधवा नायिका के चूड़ी पहनने से शुरू होता है जो गांव के जानलेवा बंदिशों छोटापन और शहर के खुलेपन के फर्क को बताता है l गांव के पुरुष अपने साथ गांव का छोटापन भी लाते हैं, वहीं दोनों कामवाली औरतें अपनी सोच बड़ी कर के बड़े ही प्रोफेशनल तरीके से अपने अपने काम को हैंडल करती दिखती हैं, किसी ने सच ही कहा है औरतें ही एक दिन दुनिया बदल देंगीं !
हिंदी फिल्म सर की नायिका जैसी नायिका अभी भारतीय सिनेमा के लिए बिल्कुल नयी है किसी भी बात में एक पल को अपनी हैसियत ना भूलने वाली नायिका, रोमांटिक पलों में भी खुद को संभालने वाली नायिका जिसके सही और गलत का फैसला भी खुद नायिका ही करती है.
अकेले होने पर भी हर बार घर में एंट्री के वक्त चप्पल हाथ में लेकर आना, स्टील के गिलास में चाय पीना, जमीन में बैठकर खाना खाना, सर को बिना जताये बिना दख़ल दिए उनकी परवाह करना. नायक नायिका की ईमानदारी एक दूसरे के लिए धीरे-धीरे प्रेम में बदल जाती है जो शरीर की नहीं मन की जरूरत है. अंत में नायक ने भी नायिका के स्तर को पैसे से ऊंचा न करके उसके व्यक्तित्व को ऊंचा किया है.
कहानी में किरदार कम है संवाद उससे भी कम रफ्तार पसंद लोगों को फ़िल्म कुछ रुकी रुकी सी लगेगी संवाद के स्थान पर दृश्यों का विस्तार किया गया है. जो कि एक खास किस्म के दर्शकों को अपनी ओर खींचेगी. प्रेमी युगल के दायरे, निजी स्पेस और वाक् संयम पर बनी अनोखी प्रेम कहानी है ‘सर’
ग़ैर हिंदी भाषी टीम के लिए हिंदी में इतनी शानदार फ़िल्म बनाने के लिए फ़िल्ममेकर्स वाक़ई बधाई के पात्र हैं. हिंग्लिश में बनी फ़िल्म सभी दर्शकों को आसानी से समझ आएगी, अनोखी लव स्टोरी में मोहित चौहान का- “दिल को थोड़ा ब्रेक दे” सभी ख़ास ओ आम दर्शक के लिए गाया गया लगता है.
दमदार अभिनय के लिए तिलोत्तमा शोमे, विवेक गोम्बर और गीतांजलि कुलकर्णी को दर्शक बहुत दिनों तक सर वाली हीरोइन और हीरो के नाम से याद रखेंगे. गुस्सा, नफरत,साजिश, हिंसा, सेक्स के बिना प्रेम के विकसित करने के निर्देशिका रोहेना गेरे के बेमिसाल ट्रीटमेंट के लिए फ़िल्म बरसों बरस याद की जाएगी !