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पलायन रोकने के लिए करना होगा ग्रामीण भारत का शहरीकरण

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
06/05/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
पलायन रोकने के लिए करना होगा ग्रामीण भारत का शहरीकरण
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सद्‌गुरु: कुछ समय पहले, मैं मुंबई में था. एक तरफ बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतें थीं; दूसरी तरफ एक झुग्गी-झोपड़ी बस्ती थी. यह मानसून के बाद का समय था. बरसात के दिनों में अक्सर सीवेज ओवरफ्लो हो जाता है. पूरी झुग्गी में, जो शायद डेढ़ सौ एकड़ या उससे अधिक में फैली हुई है, लगभग एक फुट कीचड़ थी और हर कोई उसमें चल रहा था और वहां रह रहा था जैसे कि यह सामान्य बात हो. प्रवासी इसी स्थिति में रह रहे हैं.

वैसे भी, लगभग 11-12 करोड़ लोग, जो भारत में शहरी आबादी का लगभग छब्बीस प्रतिशत है, झुग्गी-झोपड़ियों में रह रहे हैं. यह उम्मीद की जाती है कि 2035 तक, 22 करोड़ लोग ग्रामीण भारत से शहर को पलायन करेंगे. ऐसा होने पर आप शहरों की दुर्दशा की कल्पना कर सकते हैं. अगर हमारे हर शहर में एक करोड़ अतिरिक्त लोग आ जाते हैं, तो इन जगहों पर कोई भी अच्छी तरह से नहीं रह सकता है.

लेकिन ऐसा क्या है जो लोगों को उस जमीन को छोड़ने पर विवश कर रहा है जिस पर उनके परिवार सैकड़ों वर्षों से रहते आ रहे हैं? लोग भाग जाना चाहते हैं क्योंकि वहां कोई आजीविका नहीं है. यदि वे अपने गांव में एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते, तो अधिकांश इतनी जल्दी में पलायन नहीं करते. वे परिवार के एक सदस्य को यह देखने के लिए शहर भेजते कि क्या हो रहा है, कैसे कमाएं, कैसे घर बनाएं और फिर जाते. लेकिन अभी, हर कोई बिना किसी योजना के पलायन कर रहा है क्योंकि वे ऐसा करने के लिए मजबूर हैं.

अगर हम पलायन रोकना चाहते हैं तो हमें ग्रामीण भारत का शहरीकरण करना होगा. सबसे आसान काम जो हम कर सकते हैं वह है सरकारी स्कूलों को अपग्रेड करना. बिल्डिंग और बुनियादी ढांचे हैं लेकिन शिक्षण के बुनियादी ढांचे और शिक्षा की संस्कृति अधिकांश जगहों पर नहीं हैं. देश में अभी कम से कम आठ से दस करोड़ 15-16 साल के बच्चे होंगे जो सोचते हैं कि वे पढ़े-लिखे हैं लेकिन वे दो और दो नहीं जोड़ सकते. अगर हम इन स्कूलों को बिना किसी बंधन के निजी संस्थाओं को सौंप देते हैं, तो ऐसे कई उद्योग और व्यवसाय हैं जो सरकारी धन के पूरक के रूप में, अपने निजी धन से सौ स्कूलों को अच्छी तरह से चला सकते हैं.

इस तरह की शिक्षा का एक और नुकसान यह है कि बच्चे अपने माता-पिता से खेती या बढ़ईगीरी जैसे कौशल भी नहीं सीख पाते हैं. उनके पास कोई शिक्षा या कौशल नहीं है और न ही वे उच्च शिक्षा के लिए जा रहे हैं. यह एक फटने को तैयार बम है, क्योंकि जिन युवाओं के पास रोजगार की कोई संभावना नहीं है, वे देश में आपराधिक, उग्रवादी और अन्य प्रकार की नकारात्मक गतिविधियों के प्रमुख उम्मीदवार हैं. ऐसे में उनका किसी कौशल में दक्ष होना बेहद जरूरी है. अगर हर गांव में नहीं, तो कम से कम हर तालुक में कौशल विकास केंद्र जरूर होने चाहिए. निजी एजेंसियों को इसे हाथ में लेना चाहिए क्योंकि हर चीज के लिए सरकार का इंतजार करने में समय लगेगा.

अगली बात यह है कि हर गाँव में एक सिनेमा थियेटर शुरू किया जाए क्योंकि लोग शहरों में सिर्फ सिनेमा देखने के लिए आ रहे हैं. और एक बार आने के बाद घर वापस नहीं जाते. कुछ खेल सुविधाएं भी स्थापित की जानी चाहिए. अगर बड़े स्टेडियम नहीं, तो युवाओं के लिए कम से कम कुछ व्यायामशाला जरूर बननी चाहिए क्योंकि देश में शराब और नशीली दवाओं की बढ़ती खपत अगले 10-15 वर्षों में एक गंभीर समस्या बन जाएगी. बहुत समय पहले जब मैंने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के साथ काम किया था, उनमें से लगभग अस्सी प्रतिशत लोग शाम को शराब पीते थे. जिस क्षण मैंने एक व्यायामशाला शुरू की और उसमें सभी युवाओं को शामिल किया, उनमें से सत्तर प्रतिशत से अधिक ने शराब पीनी छोड़ दी क्योंकि वे सभी अपनी फिटनेस के बारे में चिंतित थे.

मनोरंजन, खेल, शिक्षा और कौशल विकास तक ग्रामीण आबादी की पहुंच होनी चाहिए. यदि हम ऐसा करते हैं तो निश्चित रूप से हम गांवों से पलायन को रोक सकते हैं. हम इसे जबरदस्ती नहीं रोक सकते. हम केवल आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करके और कस्बों और गांवों को रहने के लिए अधिक आकर्षक बनाकर ही ऐसा कर सकते हैं.

भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है. 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है. वे दुनिया के सबसे बड़े जन-अभियान, जागरूक धरती – मिट्टी बचाओ के प्रणेता हैं, जिसने 3.91 अरब लोगों को छुआ है.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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