देहरादून l उत्तराखंड के पहले आर्किड संरक्षण केंद्र का शुक्रवार को चमोली जिले के मंडल में उद्घाटन हुआ, जहां इस पौधे की 70 विभिन्न प्रजातियां मौजूद हैं। उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (शोध) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि प्रदेश के वन विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा विकसित आर्किड केंद्र को चार भागों- संरक्षण एवं प्रदर्शन क्षेत्र, 1.25 किमी लंबी आर्किड ट्रेल, इंटरप्रेटेशन केंद्र और आर्किड नर्सरी, में बांटा गया है ।
उन्होंने बताया कि आर्किड की 70 विभिन्न प्रजातियों में से ज्यादातर प्रजातियां औषधीय गुणों से युक्त और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कई प्रजातियां जैसे ‘लेडीज स्लीपर’ संकटग्रस्त पादपों की श्रेणी में हैं । पिछले दो वर्षों में केंद्र को विकसित करने की प्रक्रिया के दौरान मंडल में आर्किड की कुछ नई प्रजातियां भी मिलीं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था ।
उत्तराखंड में कुल मिलाकर आर्किड की करीब 250 प्रजातियां प्राप्त हो चुकी हैं और भारी वर्षा और अत्यधिक समृद्ध वनाच्छादित क्षेत्र होने के कारण मंडल घाटी में खास तौर पर ये बहुतायत में पाई जाती हैं। वन अधिकारी ने कहा कि आर्किड केंद्र बनाने का मुख्य उद्देश्य आर्किड प्रजातियों का संरक्षण करने, पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के अवसर प्रदान करना है ।
उन्होंने बताया कि पादप जगत में आर्किड का वही स्थान है जो प्राणि जगत में बाघ का है । पारिस्थितिकीय परिवर्तन के प्रति आर्किड बहुत संवेदनशील होते हैं और इसलिए किसी पारिस्थितकी तंत्र के स्वास्थ्य को मापने के लिए इसे एक अच्छा मानदंड माना जाता है । निर्माण कार्य, वनों के कटने तथा आर्किड की तस्करी जैसे गतिविधियों के कारण उनके अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है ।
उत्तराखंड में औषधीय गुणों से युक्त इसकी हाथा जडी, जीवक, रिद्धि, वृद्धि, ऋषभक, सलम मिश्री आदि प्रजातियां पाई जाती हैं । चतुर्वेदी ने कहा कि सिक्किम और उत्तर पूर्वी राज्यों ने पर्यटन और लोगों की आजीविका के मद्देनजर आर्किड के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया है ।
खबर इनपुट एजेंसी से